Dog squad caught the killers of the elderly couple: SIMI terrorists and those who placed explosives on the Khandwa-Burhanpur track have also been traced | डॉग स्क्वॉड ने पकड़वाए बुजुर्ग दंपती के कातिल: सिमी आतंकियों को ढूंढा, खंडवा-बुरहानपुर ट्रैक पर विस्फोटक रखने वालाें को भी ट्रेस कर चुके – Madhya Pradesh News

25 दिसंबर की देर रात मऊगंज जिले में एक बुजुर्ग दंपती की बेरहमी से हत्या कर दी गई। डबल मर्डर केस का कोई चश्मदीद नहीं था। ऐसे में पुलिस ने डॉग स्क्वॉड की मदद ली। खोजी डॉग घटनास्थल पर पहुंचा। कुछ देर बाद वो सीधे एक शख्स के पास जाकर बैठ गया, जो इस मामले

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ये कोई पहला केस नहीं है जिसे डॉग स्क्वॉड की मदद से पुलिस ने सुलझाया हो। दो साल में डॉग की मदद से पुलिस ने ऐसे 18 केस सुलझाए हैं जिसमें 100 फीसदी योगदान डॉग का ही रहा है। इसके अलावा भी ऐसे केस हैं जिनमें डॉग स्क्वॉड की मदद ली गई और पुलिस को क्लू मिले।

इस समय भोपाल समेत सभी जिलों में कुल 111 पुलिस डॉग हैं। इनमें ज्यादातर विदेशी नस्ल के हैं। इन्हें किस तरह प्रशिक्षण दिया जाता है, क्या प्रोसेस होती है और भविष्य में डॉग स्क्वॉड को किस अपराध के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है, पढ़िए रिपोर्ट…

वो पांच केस, जिसमें पुलिस ने डॉग स्क्वॉड की मदद ली…

1. जबलपुर सेंट्रल जेल से फरार कैदी: झाड़ियों से ढूंढकर निकाला 26 सितंबर 2024 की सुबह 7 बजे जबलपुर सेंट्रल जेल के बैरक नंबर 9 से रमेश कोल नाम का कैदी फरार हो गया। उसे अपहरण–रेप सहित पाक्सो एक्ट में आजीवन कारावास की सजा हुई है। जेल प्रशासन ने पहले अपने स्तर पर उसे तलाशने की कोशिश की। इसके बाद सिविल लाइंस थाने में उसके फरार होने का प्रकरण दर्ज कराया गया। पुलिस ने डॉग स्क्वॉड को मौके पर बुलाया।

डॉग गंगा को लेकर हैंडलर निलेश शुक्ला रमेश कौल के बैरक में पहुंचे। वहां आरोपी के कपड़ों की गंध के आधार पर डॉग गंगा को छोड़ा गया। बैरक से निकल कर डॉग दूसरी ओर बने तालाब तक गया। इससे पहले की दीवार फांदने के लिए रमेश कौल ने बल्ली को सीढ़ी बनाया था। हाइटेंशन बाउंड्रीवॉल वह पार नहीं कर पाया तो वहीं तालाब के पास की झाड़ियों में छिपा था।

2. मऊगंज का डबल मर्डर केस : डॉग आरोपी के घर जाकर बैठ गया

3. अंधे कत्ल का आरोपी : घर पर नहीं मिला तो जंगल में ढूंढ़ा 21 सितंबर 2024 को मंडला जिले के आवास टोला में राजू भारतिया की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। आरोपी ने डंडे व ईंट–पत्थर से हत्या की वारदात काे अंजाम दिया था। मोहगांव पुलिस को सुबह 10 बजे सूचना मिली। इसके बाद मौके पर डॉग मोना को लेकर हैंडलर बीरबल पहुंचा।

घटनास्थल से डॉग मोना सीधे आरोपी राजेंद्र यादव के घर तक गई। इसके बाद वह वहां से जंगल के अंदर भागी। पुलिस टीम भी पीछे–पीछे गई। लगभग एक किमी दूरी पर राजेंद्र यादव छिपा मिला। पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ की तो उसने बताया कि सम्पत्ति विवाद में उसने इस हत्या को अंजाम दिया। राजू रिश्ते में उसका जीजा लगता था।

4. भोपाल जेल ब्रेक: फरार सिमी आतंकियों की लोकेशन तक ले गए एमपी पुलिस डॉग के इतिहास में सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर भोपाल जेल ब्रेक कांड का खुलासा जुड़ा हुआ है। 23 वाहिनी में पदस्थ इंस्पेक्टर केशर सिंह काकोड़िया ने इस केस को याद करते हुए दैनिक भास्कर को बताया कि 30 अक्टूबर 2016 की रात डेढ़ बजे भोपाल सेंट्रल जेल से सिमी के 8 आतंकी एक जेल प्रहरी की हत्या कर फरार हो गए थे। आतंकियों ने जेल की 24 फीट दीवार लांघी थी।

काकोड़िया के मुताबिक, हमें सुबह 6 बजे सूचना मिली थी। एक ट्रैकर और स्निफर डॉग को लेकर प्रधान आरक्षक मुन्ना लाल पटेल अपने दो साथियो के साथ मौके पर भेजे गए। सिमी के सभी आतंकी सेंट्रल जेल के अंडा सेल में रखे गए थे। दोनों डॉग को इस सेल से सिमी आतंकियों के प्रयोग किए गए कपड़ों की गंध सूंघा कर छोड़ा गया।

5. रेलवे ट्रैक पर डेटोनेटर: रखने वाले को 12 किमी दूर जाकर पकड़ा 18 सितंबर 2024 को खंडवा-मंबई रेलवे ट्रैक पर डेटोनेटर फटने से आर्मी की स्पेशल ट्रेन को जंगल में रोकना पड़ा था। आरपीएफ ने जांच शुरू की तो पता चला कि ट्रैक पर 10 डेटोनेटर रखे गए थे। उस समय देश भर में ट्रेन को डिरेल करने की साजिश सामने आ रही थी। आरपीएफ ने इसी एंगल पर जांच शुरू की।

आरपीएफ ने इस हाई प्रोफाइल केस की जांच के लिए भुसावल में प्रशिक्षित स्निफर जेम्स की मदद ली। जेम्स को घटनास्थल से छोड़ा गया। वह 12 किमी खेत के रास्ते होते हुए डोंगरगांव तक पहुंचा। वहां रेल कर्मचारी साबिर के पास जाकर बैठ गया।

आरपीएफ ने उसे हिरासत में लेकर पूछताछ की तो पता चला कि उसी ने रेलवे से 10 डेटोनेटर चुराए थे। उसने अपने एक साथी को फंसाने के इरादे से ट्रैक पर डेटोनेटर रखा था। रेलवे विभाग ऐसे डेटोनेटर कोहरे के समय सिग्नल का संकेत देने में करता है।

साबिर को कोर्ट में पेश करती आरपीएफ की टीम।

साबिर को कोर्ट में पेश करती आरपीएफ की टीम।

अब जानिए पुलिस डॉग इतने सटीक कैसे 23वीं वाहिनी में पदस्थ इंस्पेक्टर केशर सिंह काकोड़िया ने बताया कि ऐसे खोजी डॉग तैयार करने में नौ महीने लगते हैं। 3 से 6 महीने के बच्चे को यहां ट्रेनिंग सेंटर में लाया जाता है। फिर उन्हें लगातार नौ महीने तक अलग–अलग 4 विधा में ट्रेंड किया जाता है। ट्रैकर डॉग चोरी, लूट, मर्डर डकैती जैसे मामलों में प्रशिक्षित किया जाता है। दूसरा नारकोटिक्स में दक्ष किया जात है। इसमें मादक पदार्थों का पता लगाने और तस्करी से जुड़े लोगों को पकड़ने में मदद मिलती है।तीसरा विस्फोटक में दक्ष डॉग होते हैं। इस तरह के प्रशिक्षित डॉग सूंघ कर विस्फोटक का पता लगा लेते हैं।

तीन चरण में किए जाते हैं ट्रेंड इंस्पेक्टर काकोड़िया के मुताबिक डॉग प्रशिक्षण का तीन चरण होता है। पहले चरण में डॉग को बुनियादी आदेश–निर्देश सिखाया जाता है। इसके बाद दूसरे चरण में नोज वर्क में ट्रेंड किया जाता है। इसमें डॉग को अलग–अलग गंध के आधार व्यक्ति या वस्तुओं की पहचान करना सिखाया जाता है।

तीसरे चरण में प्रैक्टिकल और फिर पासिंग आउट हो जाता है। ये प्रशिक्षण नौ महीने का होता है। डॉग के साथ ही उसके हैंडलर (डॉग को गाइड करने वाले आरक्षक) का भी प्रशिक्षण होता है।

10 साल की सेवा के बाद रिटायरमेंट नौ महीने के इस प्रशिक्षण के बाद डॉग को जरूरत के अनुसार जिलों में भेज दिया जाता है। ये पुलिस विभाग में 10 वर्ष की सेवा में रहते हैं। इसके बाद उन्हें रिटायर कर दिया जाता है। ऐसे सभी डॉग को 23 वाहिनी में ही रखा जाता है। यहां डॉग वृद्धाश्रम में रखा जाता है। वर्तमान में इसमें 44 डॉग मौजूद हैं। जबकि प्रदेश में भोपाल सहित सभी जिलों में कुल 111 पुलिस डॉग मौजूद हैं। 43 प्रशिक्षित डाॅग वाहिनी में मौजूद हैं।

काकोड़िया बताते हैं कि पुलिस डॉग ने पिछले दो साल में 18 केस सुलझाए हैं। इसमें हत्या, चोरी, लूट व नारकोटिक्स की वारदातें शामिल हैं। ये ऐसे केस हैं, जिसे पूरी तरह से डॉग की मदद से हल किया गया। 2024 में 145 मामलों में डॉग स्क्वॉड की मदद ली गई थी। इसमें 12 केस को डॉग की मदद से पुलिस ने सुलझाया। जबकि 24 केस में डॉग से मदद नहीं मिल पाई।

एल्कोहल के मामले में दिया जाएगा प्रशिक्षण 23 वाहिनी में फरवरी में एल्कोहल की विधा में भी डॉग को प्रशिक्षित करने की तैयारी में है। फरवरी में 52 डॉग का प्रशिक्षण शुरू होगा। तीन से छह महीने के डॉग पप्स को 22 लाख रुपए में हैदराबाद से खरीदने का टेंडर हो चुका है। इसमें 14 जर्मन शैफर्ड, 8 डाबरमैन, 22 लेब्रोडोर और 8 बेल्जियम मेलोनाइज नस्ल के डाॅग पप्स शामिल हैं। यह पहली बार होगा जब इन डाॅग को शराब ट्रैक करने के लिए ‘एल्कोहल ट्रेनिंग’ दी जाएगी।

रोज 400 ग्राम खाते हैं मीट, 15 दिन में हेल्थ चेकअप अलग–अलग विधा में दक्ष इन डॉग को प्रतिदिन औसतन 400 ग्राम मीट खाने को दिया जाता है। बीमारी और कमजोरी की हालत में अलग से सप्लीमेंट्री फूड दिया जाता है। हालांकि ये डॉक्टर की सलाह पर तय होता है। सभी डॉग की 15 दिन में हेल्थ चेकअप होता है।

23वीं वाहिनी में इसके लिए अस्पताल बना हुआ है। जबकि जिलों में वेटरनरी के डॉक्टरों के पास इलाज के लिए जाना होता है। इसके लिए एक प्रोफार्मा तय है, इसमें जिलों को भी हर 15 दिन में हेल्थ चेकअप रिपोर्ट भर के 23 वीं वाहिनी मुख्यालय को भेजना होता है।

औसतन एक ट्रेंड डॉग से 10 साल की सेवा ली जाती है। इसके बाद इनकी क्षमता खासकर सूंघने की कम होने लगती है, जिसके चलते इन्हें सेवा से रिटायर कर दिया जाता है। हालांकि 10 वर्ष सेवा उनके हेल्थ पर निर्भर है। किसी हादसे में घायल या बीमारी होने पर बीच में भी रिटायर कर दिया जात है।

ऐसे प्रशिक्षित डॉग को रिटायरमेंट के बाद 23 वीं वाहिनी में बने श्वान वृद्धाश्रम में रखने का नियम है। यहीं पर ये अंतिम सांस तक रखे जाते हैं। सुरक्षा कारणों के चलते ऐसे डॉग किसी को पालने के लिए नहीं देने का नियम है।

फोटो-वीडियो इनपुट: नसीम खान, मऊगंज।

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