Diwali Laxmi Puja Timings 2025; Puja Samagri, Shubh Muhurat | Diwali 2025 | दीपावली आज, पूजा का पहला मुहूर्त दोपहर 3:30 से: जानिए लक्ष्मी, गणेश, कुबेर की पूजन विधि और दिवाली की 5 कहानियां

12 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

आज दीपावली है। अमावस्या तिथि दोपहर 3:30 पर शुरू होगी, इसलिए लक्ष्मी पूजा का पहला मुहूर्त यहीं से शुरू होगा। अगले दिन सुबह 5.25 तक लक्ष्मी पूजन कर सकते हैं। कुल 8 मुहूर्त रहेंगे।

दीपावली की 5 कहानियां…

प. बंगाल में दिवाली पर होती है काली पूजा, दक्षिण भारत में राजा बलि से जुड़ा है दीपोत्सव…

1. समुद्र मंथन से लक्ष्मी आई जब देवताओं और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया, तो उसमें से 14 रत्न निकले। उन्हीं में से एक थीं देवी लक्ष्मी। मान्यता है कि लक्ष्मी पहले भी मौजूद थीं, लेकिन किसी बात से नाराज होकर वे समुद्र में छिप गईं। करीब 1000 साल बाद वे समुद्र मंथन के जरिए फिर निकलीं। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या थी। देवी लक्ष्मी के प्रकट होने के इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया गया। यही कारण है कि कार्तिक अमावस्या पर हम दीपावली का त्योहार लक्ष्मी पूजा करके मनाते हैं।

2. मां काली ने दैत्यों का संहार किया दीपावली पर जब देश लक्ष्मी पूजा कर रहा होता है, प. बंगाल में काली मां की पूजा होती है। देवी दुर्गा के रूप में मां काली को लेकर मान्यता है कि उन्होंने अकेले कई असुरों से युद्ध किया, रक्तबीज जैसे राक्षसों से भी। इन असुरों का वध जिस रात हुआ, वह कार्तिक अमावस्या थी। उनके वध की खुशी और मां काली की आराधना में उस रात दीप जलाए जाते हैं। दीपावली मनाने का एक कथा यह भी है।

3. राजा बलि की धरती पर वापसी यह कहानी दक्षिण भारत, विशेषकर केरल, में अधिक मानी जाती है। दैत्यों के राजा बलि ने एक बड़े यज्ञ का अनुष्ठान किया। देवताओं को लगा कि यज्ञ के बाद वे देवलोक पर भी अधिकार जमा लेंगे, तो उन्होंने विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु वामन बनकर आए और बलि से तीन पग भूमि मांगी। दो पगों में आकाश और पृथ्वी नाप ली, तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर उन्हें पाताल भेज दिया। मान्यता है, दैत्य होते हुए भी बलि गुणों में देवताओं जैसे थे और उनकी प्रजा उनसे बहुत प्रसन्न थी। पाताल जाने के बाद बलि ने विष्णु से वर्ष में एक दिन अपनी प्रजा से मिलने की अनुमति मांगी। यह अनुमति मिली। दक्षिण में उसी एक दिन बलि के आगमन की खुशी में दीपोत्सव मनाया जाता है।

4. भगवान राम वनवास से लौटे श्रीराम, सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे। वहां उनका राज्याभिषेक हुआ और रामराज्य की शुरुआत मानी गई। वाल्मीकि रामायण में अश्विन मास की चतुर्थी–पंचमी का उल्लेख मिलता है; राज्याभिषेक के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में नगर दीपों से सजाया गया। कार्तिक अमावस्या की काली रात दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तभी से हर साल यह त्योहार मनाया जाता है।

5. युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ कौरव–पांडव विभाजन के बाद पांडवों को खांडवप्रस्थ का जंगल मिला। कृष्ण की सहायता से उसे इंद्रप्रस्थ जैसा आधुनिक राज्य बनाया गया। युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का भव्य आयोजन किया। अनेक राजाओं की सभा लगी; उसी दिन इंद्रप्रस्थ की प्रतिष्ठा भी हुई और बड़े पैमाने पर उत्सव मनाया गया। युधिष्ठिर “धर्मराज” कहलाए। राज्य-स्थापना से जनता में प्रसन्नता हुई, इसलिए वहां दीपावली का उत्सव मनाया गया।

ये खबर भी पढ़ें:

जानिए दीपावली पर लक्ष्मी जी की कैसी तस्वीर पूजें: खड़ी हुई और उल्लू पर बैठी हुई लक्ष्मी की पूजा नहीं करनी चाहिए

दीपावली पूजा में आमतौर पर कमल पर बैठी लक्ष्मी जी की तस्वीर की पूजा होती है। देवी लक्ष्मी के रूपों के बारे में अलग-अलग मान्यता है। जानकारों का कहना है कि जिस फोटो में देवी खड़ी हैं, उस रूप की पूजा नहीं करनी चाहिए। साथ ही ये भी कहा जाता हे कि उल्लू पर बैठी लक्ष्मी की पूजा भी नहीं करनी चाहिए। जानिए देवी के किस रूप की पूजा करनी चाहिए। पूरी खबर पढ़ें…

खबरें और भी हैं…

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *