नई दिल्लीकुछ ही क्षण पहले
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देश में साइबर क्राइम तेजी से बढ़ता जा रहा है। लोगों को निशाना बनाने के लिए नए-नए तरीके खोजे जा रहे हैं। धोखाधड़ी के लिए एक नया तरीका डिजिटल हाउस अरेस्ट काफी इस्तेमाल किया जा रहा है।
रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2023 के दौरान देश में 30 हजार करोड़ रुपए से अधिक की धोखाधड़ी हुई। हाउस अरेस्ट में नकली पुलिस स्टेशन, सरकारी कार्यालय स्थापित करने और ED जैसी वर्दी पहनने जैसे हथकंडे भी अपनाए जा रहे हैं।
पिछले एक दशक में, भारतीय बैंकों ने धोखाधड़ी के 65,017 मामलों की सूचना दी है, जिसके कारण कुल 4.69 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। साइबर अपराधी बेखबर लोगों को धोखा देने के लिए UPI, क्रेडिट कार्ड, ओटीपी, जॉब और डिलीवरी स्कैम सहित कई तरह के तरीके अपनाते हैं।
गिरफ्तारी का भी नाटक किया जाता है
साइबर ठगी में अपराधी पीड़ित को गिरफ्तार करने का नाटक भी कर सकते हैं। वे नकली पुलिस स्टेशन या सरकारी कार्यालय स्थापित करने और सरकारी वर्दी पहनने जैसे तरीके भी अपनाते हैं। इसे डिजिटल गिरफ्तारी कहा जाता है। डिजिटल गिरफ्तारी का सबसे पहला मामला उत्तर प्रदेश के नोएडा में दर्ज किया गया। यहां पिछले साल दिसंबर में एक व्यक्ति को मनगढ़ंत मनी-लॉन्ड्रिंग मामले में फंसाया गया।
अपराधियों ने पीड़ित के सामने खुद को सीबीआई के आईपीएस अधिकारी और बंद हो चुकी एयरलाइन के संस्थापक के रूप में पेश किया। इस ठगी से पीड़ित को 11 लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ। साथ ही उसे एक दिन तक डिजिटल गिरफ्तारी द्वारा प्रताड़ित भी किया गया।
राजस्थान के डिजिटल अरेस्ट के दो मामले
केस नबंर 1- दो दिन डिजिटल अरेस्ट रहा जयपुर का व्यापारी, गंवाए 50 लाख
राजस्थान के जयपुर के बजाज नगर में रहने वाले एक व्यापारी के पास 16 अप्रैल को एक फोन आया। सामने वाले व्यक्ति ने कहा कि वो दिल्ली एयरपोर्ट से बोल रहा है। आपके द्वारा चाइना भेजे जा रहे पार्सल में 300 ग्राम हेरोइन, फर्जी पासपोर्ट व 15 सिम कार्ड मिले हैं। इस दौरान पीड़ित ने बताया कि उसने कोई पार्सल नहीं भेजा। कुछ समय बाद खुद को क्राइम ब्रांच का अधिकारी बता रहे व्यक्ति ने वेरिफिकेशन के लिए आधार कार्ड मंगवा लिया।
जांच के बाद व्यापारी के आधार कार्ड से 9 राज्यों में बैंक अकाउंट खोलना बताया गया। साथ ही, इनका उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी संगठनों द्वारा काम में लिए जाने की जानकारी व्यापारी को दी गई। ठगों ने दिल्ली क्राइम ब्रांच और सीबीआई का नोटिस दिखाया। व्यापारी को दो दिन ऑनलाइन मॉनिटरिंग पर रखा और नेशनल सिक्योरिटी से जुड़ा मामला बताकर अलग-अलग जांच अधिकारियों से बात कराई।
आरोपियों ने जांच के बाद पैसा वापस देने का झांसा देकर व्यापारी के बैंक अकाउंट में जमा 50 लाख रुपयों को एक डमी अकाउंट में ट्रांसफर कराया। पैसा ट्रांसफर होते ही आरोपियों ने ऐप के जरिए किए कॉल को डिस्कनेक्ट कर दिया। जब व्यापारी ने दोबारा उन नबंरों पर कॉल करने का प्रयास किया तो उसे ब्लॉक कर दिया। अब ठगी के शिकार व्यापारी ने कमिश्नरेट के साइबर पुलिस थाने में केस दर्ज कराया है।
पीड़ित व्यापारी ने बताया कि इन्वेस्टिगेशन में सहयोग नहीं करने पर मेरे सभी बैंक अकाउंट सीज करने की धमकी दी गई थी। मैंने सोचा जब मैं किसी अवैध गतिविधि में शामिल ही नहीं हूं तो जांच में सहयोग करने में मुझे क्या आपत्ति है। इस दौरान मुझे ऑनलाइन मॉनिटरिंग में रहने के लिए कहा गया था। साइबर ठग आतंकवादियों से कनेक्शन जैसे नेशनल इश्यू पर साइकोलॉजिकल गेम में फंसाते हैं।
केस नबंर 2- झुंझुनूं की महिला प्रोफेसर से ठगे 7.67 करोड़, 3 महीने ऑनलाइन मॉनिटरिंग में रहीं
राजस्थान के झुंझुनूं जिले की एक महिला प्रोफेसर को साइबर ठगों ने तीन महीने तक ऑनलाइन मॉनिटरिंग में रखा। इस दौरान महिला प्रोफेसर से हर दो घंटे में रिपोर्ट मांगी गई कि वह किन लोगों से मिल रही है और कहां जा रही है। ठगों ने जगह के वेरिफिकेशन के लिए सेल्फी भी मांगी। महिला को आरोपियों ने डिजिटल वेरिफिकेशन के नाम पर धमकाया और पूरी संपत्ति अटैच करने की कहानी रच डाली।
आरोपियों ने तीन महीने में महिला से अलग-अलग ट्रांजेक्शन के जरिए 7.67 करोड़ रुपए ठग लिए। महिला को पहली बार 20 अक्टूबर 2023 को कॉल किया। कॉल करने वाले व्यक्ति ने खुद को ट्राई (TRAI) का अधिकारी बताते हुए महिला को कहा कि उनकी आईडी से जारी दूसरे मोबाइल नबंर का उपयोग साइबर क्राइम में हाे रहा है। इसके बाद कभी सीबीआई, ईडी तो कभी मुंबई के पुलिस अधिकारी बनकर कॉल कर प्रोफेसर को डराते रहे।
प्रोफेसर ने 29 अक्टूबर 2023 से 31 जनवरी 2024 तक 42 बार विभिन्न खातों में पैसा जमा कराया। ठगों ने उन्हें झांसा दिया कि सुप्रीम कोर्ट से मामले का निस्तारण होते ही पूरा पैसा उन्हें वापस मिल जाएगा। पुलिस जांच में सामने आया कि यह पैसा 200 बैंक अकाउंट्स में ट्रांसफर हुआ, जिनमें से कुछ खाते विदेश में हैं। ऐसे में अब पुलिस मुख्यालय ने केस की जांच सीबीआई काे सौंपने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा है।
ठगी रोकने के लिए सरकार की कार्रवाई
इंडियन साइबर क्राइम कॉर्डिनेशन सेंटर (आई4सी) और दूरसंचार विभाग (डॉट) विदेशों से आने वाली फर्जी कॉल रोकने के लिए साथ काम कर रहे हैं। जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म साइबरदोस्त और एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर इन्फोग्राफिक्स और वीडियो भी पोस्ट किए जा रहे हैं।
अनजान वीडियो कॉल रिसीव न करें, सावधानी बरतें
साइबर एक्सपर्ट का मानना है कि साइबर क्राइम में वॉट्सएप का इस्तेमाल इन दिनों बढ़ गया है। सोशल मीडिया ऐप और वॉट्सऐप पर हमें सतर्क रहना चाहिए। कभी भी अनजान वीडियो कॉल रिसीव नहीं करें।
अगर वीडियो कॉल आए तो अपने कैमरे को हाथ से ढक कर बात करें व अपना चेहरा न दिखाएं। फेसबुक, इंस्टाग्राम प्रोफाइल को प्राइवेट रखें। अनजान लोगों की फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार नहीं करें। अधिकांश मामलों में साइबर ठग वारदात से पहले इन्हीं सोशल साइट से लोगों के संबंध में जानकारी जुटाते हैं।
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