6 मिनट पहले
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देव आनंद। हिंदी सिनेमा के एक ऐसे स्टार जिनकी लोकप्रियता केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी थी।
लाहौर से ग्रेजुएशन करने के बाद 1943 में जेब में 30 रुपए लेकर देव आनंद बॉम्बे आए और फिर सुपरस्टार बन गए। 3 दिसंबर, 2011 को उनका निधन हो गया था।
देव आनंद के 101वें जन्मदिन के मौके पर नजर डालते हैं उनसे जुड़े दिलचस्प किस्सों पर…
किस्सा 1: जब देव आनंद जैसी स्माइल के लिए फैंस तुड़वाने लगे दांत
1943 में जब देव आनंद लाहौर से बॉम्बे आए थे तो शुरुआत में उन्हें क्लर्क की नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार के दफ्तर में उन्होंने सैनिकों की चिट्ठियां पढ़ने का काम किया, लेकिन इसमें मन नहीं रमा तो एक्टर बनने की ठानी। एक दिन उनकी मुलाकात फिल्म प्रोड्यूसर बाबूराव से हुई। देव आनंद की कदकाठी, चाल-ढाल और हावभाव से बाबूराव इंप्रेस हो गए और उन्हें 1946 में आई फिल्म ‘हम एक हैं’ में रोल दे दिया।
इस बारे में देव आनंद ने अपनी किताब ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में लिखा था – ‘फिल्म की शूटिंग के दौरान मुझसे कहा गया कि मेरे दांतों के बीच गैप है जिसके लिए फिलर देना पड़ेगा। मैंने इनकार नहीं किया और फिलर भर दिया गया, मगर मुझे ये अटपटा लग रहा था। मैंने फिल्म के मेकर्स से फिलर हटाने की गुजारिश की और उन्होंने फिलर हटा दिया। मैं इस बात से खुश था कि फिल्मों में मैं जैसा था जनता ने मुझे वैसे ही पसंद किया था।’
‘हरे रामा हरे कृष्णा’, ‘जॉनी मेरा नाम’ जैसी हिट फिल्मों के बाद देव आनंद इतने मशहूर हो गए थे कि लड़के उनके जैसे दांतों का शेप रखने के लिए अपने दांत तक तुड़वाने लगे थे।
किस्सा 2: जब इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति ने देखी शूटिंग
इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो भी देव आनंद के फैन थे। इससे जुड़ा एक किस्सा देव आनंद ने अपनी किताब रोमांसिंग विद लाइफ में शेयर किया था। उन्होंने कहा था, फिल्म ‘काला पानी’ की शूटिंग देखने इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो आए थे।
उस दिन हम ‘बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए’ गाने की शूटिंग कर रहे थे। हमें पहले ही बता दिया गया था कि वो सेट पर आएंगे। हमने दो घंटे उनका इंतजार किया, लेकिन वे नहीं आए तो हमने गाना शूट कर लिया। शूटिंग खत्म होते ही राष्ट्रपति आ गए। हमने उनके लिए दोबारा शूटिंग की। उन्होंने शूटिंग के दौरान खूब तालियां बजाई थीं।
जवाहरलाल नेहरु के साथ देव आनंद।
किस्सा 3: जब देव आनंद की बात सुनकर हंस पड़े जवाहरलाल नेहरु
ये किस्सा 1947 का है जब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने देव आनंद को खाने पर बुलाया था। इस दौरान देव आनंद के साथ राज कपूर और दिलीप कुमार भी मौजूद थे। तीनों रियल लाइफ में काफी गहरे दोस्त थे।
देव आनंद ने इस मुलाकात का किस्सा अपनी किताब रोमांसिंग विद लाइफ में शेयर करते हुए लिखा है, जब हम उनसे (नेहरु) मिलने पहुंचे तो उन्होंने हम तीनों को गले लगाया। वो बीमार चल रहे थे, लेकिन फिर भी हमसे बेहद गर्मजोशी से मिले। राज कपूर ने उनसे पूछा, ‘पंडितजी हमने सुना है आप जहां भी जाते थे महिलाएं आपके पीछे भागा करती थीं।
नेहरू ने कहा, मैं इतना पॉपुलर नहीं जितने तुम लोग हो। फिर मैंने उनसे सवाल किया, आपकी स्माइल ने लेडी माउंटबेटन को इम्प्रेस कर दिया था। क्या ये बात सच है?
नेहरू ने जोर से हंसते हुए कहा, अपने बारे में ये कहानियां सुन कर मुझे बेहद मजा आता है।
फिर दिलीप कुमार बोल पड़े, मगर लेडी माउंटबेटन ने खुद कहा था कि आप उनकी कमजोरी थे। नेहरू फिर जोर से हंसे और बोले, लोग चाहते हैं कि मैं इन कहानियों पर यकीन कर लूं।
‘गाइड’ के लिए देव आनंद को बेस्ट एक्टर और वहीदा रहमान को बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था।
किस्सा 4: ‘गाइड’ बनाने पर लोगों ने कहा- पागल
1965 में रिलीज हुई फिल्म ‘गाइड’ देव आनंद के करियर की सबसे बड़ी फिल्मों में एक थी। यह फिल्म उस जमाने के हिसाब से काफी बोल्ड थी जिसमें एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर को दिखाया गया था। यही वजह है जब देव आनंद इस फिल्म को बना रहे थे तो फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोगों ने उन पर सवाल उठाए। ये बात देव आनंद ने खुद एक इंटरव्यू में बताई थी।
उन्होंने कहा था, जब हमने गाइड बनाई जो कि एडल्ट्री पर थी। लोगों ने मुझे कहा ये पागल हो गया है। देव अपने आपको बर्बाद कर रहा है, इसका स्टारडम खत्म हो जाएगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब फिल्म बन गई और देव आनंद ने फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक स्पेशल प्रीमियर शो रखा तो कई सेलेब्स फिल्म देखने तो आए, लेकिन उन्होंने शो के बाद एक शब्द भी नहीं कहा। जब फिल्म रिलीज हुई तो धीरे-धीरे इसे पॉजिटिव रिव्यू मिलने लगे और फिल्म देखने के लिए दर्शक सिनेमाघरों का रुख करने लगे। इसे आज भी क्लासिक फिल्म माना जाता है।
किस्सा 5: जब डाकू ने खटखटाया देव आनंद के कमरे का दरवाजा
बात 1957 की है जब देव आनंद फिल्म ‘नौ दो ग्यारह’ की शूटिंग कर रहे थे। शूटिंग मध्यप्रदेश के शिवपुरी में चल रही थी। उस दौर में उस इलाके में डाकुओं का बोलबाला था। शूटिंग का पैकअप होने के बाद देव आनंद सहित पूरी टीम एक गेस्ट हाउस में ठहरी थी। आधी रात को किसी ने देव आनंद के कमरे का दरवाजा खटखटाया।
उन्होंने अंदर से पूछा-कौन है? आवाज आई- हम हैं अमर सिंह। देव आनंद ने डरते हुए दरवाजा खोला तो सामने बड़ी-बड़ी मूंछों वाला डाकू खड़ा था। देव आनंद कुछ बोल पाते, इससे पहले ही डाकू ने एक्टर की तस्वीर निकाली और कहा-आप इस पर अपने साइन कर दीजिए। ये सुनते ही देव आनंद की जान में जान आई। उन्होंने झट से अपनी तस्वीर पर ऑटोग्राफ दिया जिसे देखकर डाकू ने कहा-देव साहब आपको कभी भी किसी चीज की जरूरत पड़े तो हमें याद कीजिएगा।
फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा में जीनत अमान और देव आनंद।
किस्सा 6: जीनत अमान ने ऑफर की सिगरेट और देव आनंद ने कहा- हीरोइन बनोगी?
देव आनंद ने बड़े भाई चेतन आनंद के साथ मिलकर 1949 में अपना बैनर नवकेतन लॉन्च किया था। इसके बैनर तले बनी सबसे सफल फिल्मों में से एक 1971 में आई फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ थी जिसमें देव आनंद की बहन के किरदार में जीनत अमान नजर आई थीं। फिल्म में जीनत की कास्टिंग के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। दरअसल, उस दौर में कोई भी एक्ट्रेस देव आनंद की बहन का किरदार नहीं निभाना चाहती थी। देव आनंद भी ऐसा चेहरा ढूंढ-ढूंढकर थक गए थे। तभी एक पार्टी में उनकी नजर मिस एशिया का खिताब जीत चुकी जीनत अमान पर पड़ी। जीनत देव आनंद के सामने बैठी थीं।
देव आनंद को जीनत में अपनी फिल्म की मेन लीड एक्ट्रेस की छवि दिख गई। देव आनंद ने देखा कि जीनत ने अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट और लाइटर निकाला। फिर सिगरेट होठों से दबाई और उसे लाइटर से जलाया। जब जीनत की नजर उन्हें देख रहे देव आनंद पर पड़ी तो उन्होंने प्यारी सी स्माइल देकर देव आनंद को भी सिगरेट ऑफर की। देव आनंद इनकार नहीं कर सके। फिर देव आनंद ने उनसे पूछा कि क्या आप फिल्मों में काम करेंगी? जीनत ने देव आनंद के चेहरे पर सिगरेट का धुआं छोड़ा और उन्हें देखती रहीं। देव आनंद ने अगला सवाल करते हुए कहा कि क्या मैं तुम्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए बुला सकता हूं।
जीनत ने पूछा, कब?
देव आनंद ने कहा कल आ जाओ। जो भी समय तुम्हें सही लगे। जीनत अगले दिन स्क्रीन टेस्ट के लिए पहुंच गईं और इस तरह उन्हें अपनी डेब्यू फिल्म मिली।
फिल्म में जीनत अमान पर फिल्माया और आशा भोसले का गाया गाना ‘दम मारो दम’ बेहद पॉपुलर हुआ और जीनत बड़ी स्टार बन गईं।
किस्सा 7: जब सीन के बहाने की सुरैया से शादी की प्लानिंग
देव आनंद और सुरैया की अधूरी प्रेम कहानी के चर्चे फिल्म इंडस्ट्री में काफी रहे। दोनों एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे, लेकिन सुरैया की नानी अलग धर्म की वजह से इस रिश्ते की खिलाफ थीं जिसकी वजह से दोनों की शादी नहीं हो पाई।
फिल्म ‘जीत’ से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है। इस फिल्म के एक सीन में देव आनंद और सुरैया की शादी का सीन फिल्माया जाना था। सुरैया के घरवालों की सख्ती से परेशान देव और सुरैया ने फैसला किया कि इस सीन में वह असली पंडित को बुलाएंगे, असली मंत्र पढ़े जाएंगे और इन दोनों की असल में शादी हो जाएगी।
सेट पर सारा इंतजाम हो चुका था। असली पंडित भी आ गया था, लेकिन तभी एक असिस्टेंट डायरेक्टर ने यह खबर, सुरैया की नानी तक पहुंचा दी। फिर क्या, सेट पर हंगामा मच गया और नानी सुरैया को वहां से खींच कर जबरदस्ती घर लेती गईं।
इसके बाद तो सुरैया की नानी ने उनकी जल्द से जल्द शादी करने का फैसला ले लिया, लेकिन कई बार कोशिशों के बाद भी सुरैया ने किसी और से शादी नहीं की। वहीं देव आनंद ने 1954 में एक्ट्रेस कल्पना कार्तिक से शादी कर अपना घर बसा लिया।
किस्सा 8: जब गुरु दत्त की मौत पर बोले देव आनंद- चल उठ गुरु, कहां चला गया तू
देव आनंद और गुरु दत्त गहरे दोस्त थे, लेकिन 1960 में दोनों की दोस्ती के बीच अचानक दरार आ गई थी। जब देव आनंद की कई फिल्में फ्लॉप हो रही थीं तो वह गुरु दत्त के पास गए ताकि वह अपने निर्देशन के जरिए उनकी अगली फिल्म को सफल बना दें।
लेकिन गुरु दत्त ने ऐसा करने से मना कर दिया और कोई और निर्देशक को लेने को कहा। इससे देव आनंद को काफी दुख हुआ और उन्होंने फिर कभी गुरु दत्त से मदद नहीं मांगने की कसम खा ली।
दरअसल 1959 में गुरु दत्त की फिल्म ‘कागज के फूल’ फ्लॉप हो गई थी और गुरु दत्त पूरी तरह से टूट गए थे। वे खूब शराब पीने लगे थे। दूसरी तरफ देव आनंद ने अपनी फिल्मों की असफलता के बावजूद खुद को संभाले रखा और कोशिश करते रहे। वे ‘काला बाजार’ (1960), ‘जब प्यार किसी से होता है’ (1961) और ‘हम दोनों’ (1962) की सफलता के बाद फिर से स्टार बन गए।
गुरु दत्त और देव आनंद।
गुरु दत्त को अपनी गलती का एहसास हुआ और निर्देशक डी डी कश्यप को उनकी फिल्म ‘माया’ में देव आनंद को हीरो के बतौर लेने का सुझाव दिया।
गुरु दत्त फिर देव आनंद से मिले और उन्हें और वहीदा रहमान को लेकर एक फिल्म बनाने का सुझाव दिया। देव आनंद ने खुशी-खुशी उनके सुझाव पर फिल्म बनाने की हामी भर दी, लेकिन उसके चार दिन बाद 10 अक्टूबर,1964 को ही गुरु दत्त ने नींद की गोलियां खाकर खुदकुशी कर ली। गुरु दत्त के आखिरी शब्द थे, मैं बहुत थक गया हूं। थोड़ा सोना चाहता हूं।
गुरु दत्त की आत्महत्या की खबर सुनकर देव आनंद गम में डूब गए। उन्होंने ‘तीन देवियां’ की शूटिंग कैंसिल कर दी। गुरु दत्त का पार्थिव शरीर देखकर देव आनंद रो रहे थे। वह गुरु दत्त का हाथ पकड़ कर बार-बार केवल यही कह रहे थे- गुरु उठ, कहां चला गया तू।
88 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा
देव आनंद का 3 दिसंबर 2011 को दिल का दौरा पड़ने से 88 वर्ष की उम्र में लंदन में निधन हो गया था। उनके निधन के 2 महीने बाद उनकी आखिरी फिल्म चार्जशीट रिलीज हुई, जिसे उन्होंने डायरेक्ट और प्रोड्यूस किया था।