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- Delhi JNU University Students Protest Controversy; Kanhaiya Kumar | Afzal Guru ABVP
7 मिनट पहले
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9 फरवरी 2016 की एक सर्द शाम। दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी JNU के गंगाराम ढाबे पर छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार चाय पी रहे थे। तभी एक स्टूडेंट भागकर वहां पहुंचा और हांफते हुए बोला, ‘तुम कैसे प्रेसिडेंट हो, साबरमती ढाबे पर झगड़ा हो रहा है और तुम यहां बैठकर चाय पी रहे हो।’
कन्हैया ने चिढ़कर जवाब दिया, ‘ये मेरा काम नहीं है कि मैं झगड़ा रोकूं, मैं प्रेसिडेंट हूं, कोई गार्ड नहीं।’
स्टूडेंट गुस्से से बोला, ‘तुम यहीं बैठो, वहां ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के लोग कल्चरल प्रोग्राम ऑर्गेनाइजेशन से मारपीट कर रहे हैं।’
JNU के साबरमती ढाबे पर स्टूडेंट्स। 9 फरवरी 2016 को JNU के साबरमती ढाबे से ही विवाद शुरू हुआ था।
कन्हैया ने देखा कि ब्रह्मपुत्र हॉस्टल के उनके कुछ साथी तेजी से दौड़े जा रहे थे। वो भी भागकर ढाबे के पास बने बैडमिंटन कोर्ट पहुंचे तो भीड़ लगी थी।
एक छात्र भीड़ से कन्हैया के पास आकर बोला ‘आप कहां थे प्रेसिडेंट साहब, देखो क्या हो रहा है।’ कन्हैया ने पूछा -क्या हो रहा है, तो जवाब मिला -अफजल गुरु की बरसी मना रहे हैं।
इस घटना का जिक्र कन्हैया कुमार ने अपनी किताब ‘बिहार से तिहाड़ तक’ में किया है।
अगली सुबह सोशल मीडिया और देशभर के मीडिया चैनल्स पर JNU में हुए इवेंट के वीडियो चल रहे थे। वीडियो में छात्र ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’, ‘तुम कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा’ और कई देश विरोधी नारे लगा रहे थे।
आज रकस के चौथे एपिसोड में बात JNU में हुई इसी घटना की, जिसने पूरे देश में ये बहस छेड़ दी कि वास्तव में देशभक्त या देशद्रोही होने की क्या परिभाषा है। राजनेता, फिल्मी सितारों समेत आम जनता भी 2 धड़ों में बंट गई। एक ओर थे इन छात्रों और पूरे JNU को देशद्रोही बताने वाले लोग और दूसरी ओर अपनी आवाज उठाने और अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी करने वाले लोग।
उमर खालिद 2016 में JNU में हिस्ट्री सब्जेक्ट में एमफिल के स्टूडेंट थे।
दरअसल 9 फरवरी की सुबह ही JNU के डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फ्रंट यानी DSU ने एक कल्चरल ईवनिंग का कॉल किया था। इसके पैम्फ्लेट भी पूरे कैंपस में बांटे गए थे।
इस इवेंट का नाम था- ‘ए कंट्री विदाउट ए पोस्ट ऑफिस’ और टॉपिक था, तीन साल पहले 9 फरवरी को ही संसद हमले के आरोपी अफजल गुरु को हुई फांसी का विरोध। ABVP से जुड़े कुछ छात्रों को जब ये पैम्फ्लेट मिले तो वे सीधा इसकी शिकायत लेकर यूनिवर्सिटी प्रशासन के पास पहुंचे।
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने ABVP के छात्रों की शिकायत पर एक्शन लिया और कल्चरल ईवनिंग की परमिशन कैंसिल कर दी।
तत्कालीन रजिस्ट्रार भूपिंदर जुत्शी ने फौरन ABVP के छात्रों की शिकायत पर एक्शन लिया और कल्चरल ईवनिंग की परमिशन कैंसिल कर दी। इसे ABVP के हाथों अपनी हार और अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट बताते हुए DSU ने जेएनयू छात्र संघ (JNUSU) और बाकी लेफ्ट स्टूडेंट यूनियंस से मदद मांगी।
शाम 5:30 बजे DSU की अगुआई में छात्र साबरमती ढाबे के पास बैडमिंटन कोर्ट में इकट्ठा होने लगे। JNU प्रशासन ने वहां सिक्योरिटी गार्ड्स तैनात कर दिए। प्रशासन ने DSU को हिदायत दी कि अगर इवेंट करना भी है, तो माइक के इस्तेमाल की इजाजत नहीं मिलेगी। DSU इसके लिए राजी हो गया।
उस शाम इवेंट में मौजूद रहीं JNU की मौजूदा Phd स्कॉलर अंशु कुमारी बताती हैं, ‘जब कल्चरल ईवनिंग शुरू हुई तो इसके विरोध में ABVP के छात्र भी वहां पहुंच गए। छात्र आमने-सामने आए तो नारेबाजी शुरू हो गई। ABVP के छात्र ‘सारा का सारा है, ये कश्मीर हमारा है’ और ‘चीन के दलालों को, धक्के मारो सालों को’ नारे लगा रहे थे। जवाब में DSU के छात्र ‘कश्मीर मांगे आजादी, हम ले के रहेंगे आजादी’ के नारे लगाने लगे।
कन्हैया कुमार समेत 21 लोगों के खिलाफ दायर हुई चार्जशीट
इस घटना के अगले दिन यानी 10 फरवरी को मीडिया में सर्कुलेट हुए वीडियो में JNU के छात्र अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के समर्थन में नारे लगाते दिखे। दिल्ली पुलिस ने वीडियो में दिखाई दे रहे JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार के साथ ही प्रोग्राम ऑर्गेनाइज करने वाले छात्र उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य समेत 21 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया।
इस चार्जशीट में आरोप था कि 9 फरवरी की शाम JNU कैंपस में संसद हमले के आरोपी अफजल गुरु, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के को-फाउंडर मकबूल भट्ट को फांसी दिए जाने के विरोध में एक प्रोग्राम ऑर्गेनाइज किया गया था।
कन्हैया कुमार छात्र संघ के प्रेसिडेंट थे और आरोप था कि जब ये प्रोग्राम किया जा रहा था, तब वो भी इसमें शामिल थे।
अंशु कुमार बताती हैं, ‘जब ये सब घटा तब मैं भी वहां मौजूद थी। वहां ऐसा कोई भी प्रोग्राम नहीं किया जा रहा था। ये एक नॉर्मल डिस्कशन था। यहां सिर्फ ये डिस्कशन हो रहा था कि अफजल गुरु को फांसी से पहले उसके परिवार से मिलवाया जाना चाहिए था। ये किसी भी नागरिक का हक है भले ही वो कोई बड़ा अपराधी हो।’
हालांकि इस कल्चरल ईवनिंग के पैम्प्लेट में इस आयोजन का मकसद ‘अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की ज्यूडिशियल किलिंग का विरोध’ लिखा गया था।
इस कल्चरल ईवनिंग के पैम्प्लेट में इस आयोजन का मकसद ‘अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की ज्यूडिशियल किलिंग का विरोध’ लिखा गया था।
राजद्रोह की धाराओं में दर्ज किया गया केस
दिल्ली पुलिस की ओर से दाखिल की गई चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कन्हैया कुमार, उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य, आकिब हुसैन, मुजीब हुसैन गट्टू, मुनीब हुसैन गट्टू, उमर गुल, रईस रसूल, बशारत अली और खालिद बशीर भट्ट को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया।
उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 124A, 323, 465, 471, 143, 149, 147 और 120B के तहत आरोप दायर किए गए थे। इनमें सबसे खास था 124A यानी देशद्रोह।
JNU कैंपस में एक प्रोग्राम की तस्वीर में अनिर्बान भट्टाचार्य और उमर खालिद। कन्हैया कुमार समेत उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य पर केस दायर किया गया।
दिल्ली के वसंतकुंज नॉर्थ पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR नंबर 110/2016 के मामले में दायर चार्जशीट में जेएनयू के सुरक्षाकर्मियों के अलावा ABVP के छात्र नेताओं की गवाहियां दर्ज हैं। सबूतों में ईमेल, एसएमएस और वीडियो फुटेज का हवाला भी दिया गया है।
चार्जशीट में पुलिस ने दावा किया, ‘जेएनयू की उस शाम अफजल गुरु पर आयोजित कार्यक्रम से पहले उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य ‘भारत के कब्जे से कश्मीर की आजादी’ पर ईमेल के जरिए बात कर रहे थे। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे… और भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी’ जैसे नारे लगने से उनके इरादों का साफ पता चलता है।
JNU को देश विरोधियों का अड्डा कहा जाने लगा
इसके बाद कई न्यूज और सोशल मीडिया चैनल्स ने इस खबर को प्रमुखता से दिखाया और JNU को देशद्रोहियों का अड्डा बताते हुए कई विश्लेषण भी किए। पूरे देश में JNU और उसकी विचारधारा के खिलाफ माहौल बन गया।
15 फरवरी को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने टि्वटर (अब एक्स) पर लिखा था, ‘अगर कोई भारत में रहते हुए भारत विरोधी नारे लगाता है और देश की एकता और अखंडता को चुनौती देता है, तो उन लोगों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और बख्शा भी नहीं जाएगा।’
शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने 12 फरवरी को संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ दिल्ली के JNU में विरोध प्रदर्शन की कड़ी निंदा करते हुए कहा, ‘देश भारत माता का अपमान कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता।’
9 फरवरी को हुई घटना के बाद देश में JNU और उसकी विचारधारा के खिलाफ माहौल बन गया।
सबसे पहले कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी हुई
पुलिस चार्जशीट में ये माना गया कि कन्हैया नारेबाजी के समय वहां मौजूद नहीं थे, हालांकि उन्हें इसकी जानकारी थी। चार्जशीट में उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को मुख्य आरोपी बनाया गया था।
कन्हैया अपनी किताब बिहार से तिहाड़ तक में लिखते हैं, ‘मुझे इस प्रोग्राम की कोई भी जानकारी नहीं थी। उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य अलग पॉलिटिकल ग्रुप के थे। कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन ने भी किसी प्रोग्राम की परमिशन नहीं दी थी। वो हमें देशद्रोही कह रहे हैं क्योंकि उनकी (राइट विंग) और हमारी आइडियोलॉजी में अंतर है।’
इसके बावजूद, इस मामले में सबसे पहले कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी हुई। इसके बारे में कन्हैया ने अपनी किताब में लिखा, ‘मेरी अगली सुबह न्यूज चैनल वालों के फोन कॉल्स से शुरू हुई। मैं नहीं जानता था कौन सा वीडियो सर्कुलेट हुआ है। मैं ढाबे पर ही बैठा था। तभी वसंत कुंज के SHO मेरे सामने खड़े थे। मैंने कहा ‘क्या बात है आप क्यों आए हैं।’
SHO ने कहा, ‘तुम्हारे खिलाफ FIR दर्ज हुई है। 9 फरवरी की घटना को लेकर हम सवाल-जवाब करने आए हैं। मैंने पूछा- क्या आपके पास मेरे खिलाफ कोई वारंट है। वो बोले, ‘चलो वारंट जेल में दे दिया जाएगा।’
12 फरवरी को मुझे लोधी रोड थाने में ले जाया गया और इंस्पेक्टर साहब ने कहा, ‘ये तुम्हारा देश है और तुम देश के खिलाफ नारे लगा रहे हो।’ मैंने कहा, ‘मैंने देश के खिलाफ नहीं पीएम मोदी के खिलाफ जरूर नारे लगाए हैं। क्या मोदी देश हैं?
कन्हैया को ‘राजद्रोह’ के केस में 3 दिन के लिए दिल्ली पुलिस ने कस्टडी में लिया। इसके बाद पुलिस ने इस कस्टडी को 5 दिन के लिए बढ़ाया, जिससे टेरर लिंक को ढूंढा जा सके।
कन्हैया को ‘राजद्रोह’ के केस में 3 दिन के लिए दिल्ली पुलिस ने कस्टडी में लिया।
JNU के समर्थन में छात्रों ने बनाई ह्यूमन चेन
न्यूज चैनल्स और सोशल मीडिया द्वारा लगातार एंटी-नेशनल कहे जाने के खिलाफ JNU स्टूडेंट्स ने 13 फरवरी को विरोध प्रदर्शन किया। JNU प्रशासनिक ब्लॉक को छात्रों ने ‘स्वतंत्रता चौक’ नाम दिया। कन्हैया की रिहाई की मांग को लेकर 2500 से ज्यादा छात्र और शिक्षक JNU में इकट्ठा हुए और #StandWithJNU की तख्तियां दिखाकर प्रदर्शन किया। 14 फरवरी को टीचर, स्टूडेंट्स और JNU के पूर्व छात्रों ने साथ मिलकर दिल्ली में 2 किमी लंबी ह्यूमन चेन भी बनाई।
JNU के पूर्व छात्र और थिएटर आर्टिस्ट माया राओ ने एक परफॉर्मेंस दी। JNU प्रोफेसर राजश्री दास गुप्ता समेत कई सारे प्रोफेसर छात्रों के सपोर्ट में आ गए। दासगुप्ता का कहना था कि बीजेपी सरकार देश की टॉप यूनिवर्सिटी पर अपनी आइडियोलॉजी थोप रही है।
माया राओ ने एक परफॉर्मेंस दी और कहा कि राइट विंग अपनी पहुंच यूनिवर्सिटी में बढ़ाने के लिए ये सब कर रहा है।
कन्हैया के समर्थन में मद्रास यूनिवर्सिटी और कोलकाता यूनिवर्सिटी में भी छात्रों ने प्रदर्शन किए, जहां पुलिस के साथ उनकी झड़प भी हुई।
विदेशी यूनिवर्सिटीज ने भी समर्थन किया
जब खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पहुंची तो कुछ विदेशी यूनिवर्सिटीज भी #StandWithJNU कैंपेन के सपोर्ट में आ गईं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया एंड याले, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में भी स्टूडेंट्स ने कन्हैया के सपोर्ट में वीडियो बनाकर #StandWithJNU के साथ शेयर किए।
इस पूरे विरोध के दौरान छात्र मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का विरोध कर रहे थे। इसके चलते सरकार ने स्मृति ईरानी से मानव संसाधन विकास मंत्रालय लेकर उन्हें कम प्रोफाइल वाला कपड़ा मंत्रालय दे दिया।
कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद JNU में लेफ्टविंग के छात्रों ने प्रोटेस्ट मार्च निकला और इसमें देश-दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से लोग शामिल हुए।
कोर्ट में कन्हैया के साथ मारपीट हुई
15 और 17 फरवरी को कन्हैया को कोर्ट में पेश किया गया। 17 फरवरी को पुलिस कन्हैया कुमार को लेकर लोधी रोड से वसंत बिहार की तरफ से पटियाला हाउस कोर्ट जा रही थी। तभी मीडिया के कैमरों के सामने ही काले कोट पहने लोगों ने कन्हैया पर हमला कर दिया। उस समय कोर्ट परिसर में 400 से ज्यादा पुलिस वाले मौजूद थे।
50 से ज्यादा पुलिस वाले अकेले कन्हैया को घेरे थे, जिन्होंने बड़ी मुश्किल से उन्हें खींचकर निकाला और कोर्ट में पहुंचाया। बाद में कन्हैया ने आरोप लगाया कि उनसे मारपीट करने वाले कुछ लोग बतौर वकील सुनवाई के दौरान भी कोर्ट में मौजूद थे।
20 फरवरी को पुलिस ने उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के खिलाफ नोटिस जारी किया। JNU में जब उमर खालिद और भट्टाचार्य ने सरेंडर किया तब एक ह्यूमन चेन बनाई गई, ताकि मीडिया से इनको दूर रखा जा सके।
पटियाला हाउस कोर्ट में कन्हैया कुमार के साथ मारपीट का वीडियो सामने आया। जिसमें ये दावा किया गया कि मारपीट करने वाले वकील थे।
कन्हैया समेत तीनों आरोपियों को जमानत मिली
27 फरवरी को इस केस को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में ट्रांसफर कर दिया गया। 2 मार्च को कन्हैया को दिल्ली कोर्ट से जमानत मिल गई। इसके बाद उमर और अनिर्बान को भी 17 मार्च को अंतरिम जमानत दे दी गई।
हालांकि इस विवाद की चर्चा अदालत से ज्यादा न्यूज और सोशल मीडिया में हुई। सोशल मीडिया में उमर खालिद को ‘जैश-ए-मोहम्मद समर्थक’ कहा जाने लगा। ये भी कहा गया कि उमर के पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद से संबंध थे। हालात इतने बिगड़ गए कि गृह मंत्रालय को खुद सामने आकर सफाई देनी पड़ी कि इसके कोई पुख्ता सुबूत नहीं हैं।
कुछ दिन पहले ही स्कॉलरशिप 17% घटाई गई थी
कन्हैया अपनी किताब में लिखते हैं, ‘छात्रों को एंटी-नेशनल कहने के पीछे एक और बड़ी वजह थी। इस घटना से कुछ दिन पहले ही हमने रोहित वेमुला मामले में भूख हड़ताल की थी जो कि JNU में होने वाली किसी भी आम घटना जैसा ही था, लेकिन प्रॉक्टर ऑफिस ने हमारे खिलाफ नोटिस जारी कर दिया।
सरकार ने कुछ दिन पहले ही हमारे स्कॉलरशिप बजट को 17% कम कर दिया था। इसकी शिकायत लेकर हमने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से मुलाकात भी की थी, मगर कुछ नहीं हुआ। JNU को सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की सजा मिली।’
JNU के जॉइंट सेक्रेटरी ने कहा, बदनाम करने की साजिश हुई
इस घटना के बारे में बात करते हुए JNU के जॉइंट सेक्रेटरी साजिद कहते हैं, ‘JNU में सवाल करने का कल्चर कोई आज का नहीं है, ये बहुत पुराना है। उस दिन वहां मैं मौजूद नहीं था, लेकिन मुझे मालूम है उस दिन क्या हुआ। ये सिर्फ स्टूडेंट्स और JNU को बदनाम करने की साजिश है, जिससे हम सवाल करना बंद कर दें। मगर सवाल आज भी जारी हैं।
इवेंट में मौजूद रहे Phd स्कॉलर और वर्तमान में ‘द क्रेडिबल हिस्ट्री’ न्यूज वेबसाइट के एसोसिएट एडिटर प्रशांत प्रत्यूष बताते हैं, ‘मैं राइट या लेफ्ट किसी भी विंग से नहीं हूं, लेकिन 9 फरवरी की शाम मैं भी वहां मौजूद था। वहां कश्मीर को लेकर एक प्रोग्राम किया जा रहा था। इसका नाम था-‘ए कंट्री विदाउट ए पोस्ट ऑफिस’। ऐसे कश्मीरी लोग जो गायब हो चुके हैं, उनकी मां-बहनें किस पते पर लेटर पोस्ट करें, इसको लेकर ही ये प्रोग्राम किया जा रहा था।
उमर खालिद पर गोली चलाई गई
13 अगस्त 2018। दिल्ली में संसद के नजदीक उमर खालिद एक चाय की दुकान पर अपने कुछ दोस्तों के साथ चाय पी रहे थे। तभी एक शख्स सफेद शर्ट में आया और उसने उमर को धक्का देकर गिरा दिया। कोई कुछ समझ पाता, उससे पहले ही शख्स ने अपनी बंदूक निकाली और उमर पर फायर कर दिया। गोली उमर के पैर के पास से निकल गई। वो शख्स फायरिंग करता हुआ नीति आयोग बिल्डिंग की तरफ भाग गया।
ये घटना कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के बाहर हुई। कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में ‘यूनाइटेड अगेंस्ट हेट’ पर प्रोग्राम होने वाला था, इसी में शामिल होने उमर पहुंचे थे। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए एडवोकेट प्रशांत भूषण, आरजेडी राज्यसभा सांसद मनोज झा, प्रोफेसर अपूर्वानंद, पत्रकार अमित सेन गुप्ता, पूर्व सांसद अली अनवर समेत अन्य लोग भी पहुंचे थे।
बाद में आरोपी की पहचान नवीन दलाल के तौर पर हुई जिसे हरियाणा के हिसार से गिरफ्तार कर लिया गया।
उमर खालिद पर 2018 में जानलेवा हमला किया गया। ये हमला संसद के नजदीक हुआ था।
पूरे देश को 2 धड़ों में बांट दिया
JNU को हमेशा से ही वामपंथियों के गढ़ के रूप में देखा जाता रहा है। वामपंथ यानी एक ऐसी विचारधारा जहां लोगों को आर्थिक, सामाजिक तौर पर बराबरी पर लाने की बात की जाती रही है।
हालांकि इस घटना के बाद JNU को लेकर अलग तरह की बहस छिड़ी हुई है। आज भी इस सोच के दोनों तरफ दो तरह के लोग हैं। एक तरफ ये सवाल बना हुआ है कि देशद्रोह क्या है? क्या नारे लगाना देशद्रोह है? क्या वामपंथ देशद्रोह की सोच है।
वहीं दूसरी तरफ वो धड़ा भी है जो मानता है कि JNU में जो भी घटा वो देशद्रोह है। ऐसा कुछ भी करने की आजादी नहीं होनी चाहिए।
वहीं JNU के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, सवाल करना JNU का कल्चर है, लेकिन JNU में इस कल्चर को खत्म किया जा रहा है। आज भी अगर स्टूडेंट्स किसी मुद्दे को लेकर प्रोटेस्ट करते हैं तो उन पर मोटा फाइन लगा दिया जाता है।
तीनों आरोपियों ने अलग-अलग राह पकड़ी
जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद कन्हैया कुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) में शामिल हो गए। 2019 में बेगूसराय से लोकसभा का चुनाव लड़े और हार गए। इसके बाद 29 सितंबर 2021 को उन्होंने कांग्रेस पार्टी जॉइन कर ली। फिलहाल वो 2024 लोकसभा चुनाव में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से चुनाव लड़ रहे हैं।
अनिर्बान भट्टाचार्य ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (NRC) और सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल (CAA) 2019 के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। हालांकि इसके बाद वे कहीं भी एक्टिव नहीं दिखाई दिए।
वहीं, उमर खालिद 2016 के बाद भी बतौर एक्टिविस्ट कई सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल हुए। खालिद को 2020 के दिल्ली दंगों में आरोपी बताया गया जिसके चलते वो अब भी जेल में हैं।