भास्कर पीड़ित के साथ दिल्ली पहुंचा, तो पता चला कि फर्म वाली जगह पर इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान है।
फूड डिलीवरी बाॅय राेहित सिंह जब 720 रु. टीडीएस क्लेम करने सीए के पास पहुंचा ताे पता चला कि वह 23 कराेड़ रु. टर्न ओवर की दाे फर्मो का मालिक है। उसके नाम से पिछले दिनाे ही 23 करोड़ के विक्रय का लेन-देन हुआ है, जिसमें करीब 4 करोड़ की जीएसटी लायबिलिटी क
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फर्मों का रजिस्ट्रेशन दिल्ली से हुआ है। राेहित दिल्ली भी गया लेकिन रिकाॅर्ड में उसी का नाम है। पड़ताल में पता चला कि राेहित के नाम से आर.के. और वी.के. एंटरप्राइजेस है। दाेनाें से 23 कराेड़ का ट्रांजेक्शन हुआ है। फर्मों ने स्क्रैप का काम दिखाकर लेन-देन किया है।
भास्कर एक्सपर्ट : बगैर सरकारी मशीनरी मिलीभगत संभव नहीं
कर सलाहकार संदीप अग्रवाल से केस स्टडी कराई गई। उन्हाेंने दावा किया कि बगैर सरकारी मशीनरी के शामिल हुए ये फ्राॅड संभव नहीं है। इसकी वजह ये है कि 2023 में किसी फर्म का रजिस्ट्रेशन होने के बाद उसको मालिक के आधार ओटीपी से वेरीफाई करना होता था। पीड़ित रोहित का कहना है उसके पास कोई ओटीपी नहीं आया। जीएसटी वेबसाइट पर दोनों फर्मों के जो मोबाइल नंबर है वह भी रोहित के नहीं हैं।
अब ऐसे में 15 दिन अधिक हाेने पर विभागीय अधिकारी के वेरिफिकेशन से जीएसटी नंबर का एप्रूवल संभव हाे सकता था। इस केस में भी लगभग ऐसा ही हुआ है। जीएसटी नंबर नई दिल्ली से जारी हुआ है। इसमें बड़े स्तर पर जांच हाे ताे दाेषी सामने आ जाएंगे। वजह ये है कि जीएसटी क्लेम उठकर दूसरी कंपनी या फर्म में एडजेस्ट कराया गया है। यानी फर्म ने सीधे तैर पर बैंक ट्रांजेक्शन का उपयोग नहीं किया है। फिर एक फर्म बंद की है और दूसरी स्व. माेटाे बंद है। ये भी जांच का विषय है।