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दिसंबर महीने में अत्याधिक ठंड से पशुओं को बचाने के लिए पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने उपयोगी जानकारी देते हुए हुए पशुपालकों को सलाह दी है कि पशुओं को सूखी जगह पर रखा जाए। नवजात बछड़ों को ठंडे मौसम में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है और उनके निमोनिया और दस्त से प्रभावित होने पर उनकी मृत्यु की आशंका रहती है।
इसलिए पशुओं को रात में छत के नीचे और दिन में धूप में रखें। शेड का निर्माण पूर्व-पश्चिम दिशा में किया जाना चाहिए ताकि दिन के समय सूर्य की किरणें शेड के अंदर आ सकें। अत्यधिक ठंड में पशुओं को जूट के कपड़े से ढक कर रखें। यदि जरूरी हो तो शेड में पल्लियां या प्लास्टिक कवर लगाएं ताकि पुशओं को सीधी ठंडी हवा से बचाया जा सके। इसके साथ ही सभी पशुओं को मुंह-खुर की बिमारी से बचाने के लिए टीका जरूर लगवाएं।
ठंड के मौसम में पशुओं की खुराक में कंसेंट्रेट मिक्सचर का ऊर्जा स्तर 5-10% बढ़ा देना चाहिए और जबकि प्रोटीन को 2-3 प्रतिशत कम किया जा सकता है। क्योंकि हरे चारे (बरसीम, लौसेर्न और राई घास) में 19-21% प्रोटीन होता है। अच्छी तरह से कटी हुई बरसीम को तूड़ी के साथ मिलाकर खिलाएं। पशुओं को गीला चारा देने से बचना चाहिए।
तूड़ी को प्रतिदिन 3 से 4 किलो की मात्रा में चारे के साथ मिलाकर पशुओं को दिया जा सकता है। गर्भवती पशुओं को संक्रमण की स्थिति में 8-12 ग्राम नियासिन, 15-30 ग्राम कोलिन क्लोराइड, 500 आईयू विटामिन ई दें और गर्भावस्था के अंतिम 21 दिनों में नमक, सोडियम बाईकार्बोनेट और खनिज मिश्रण या किसी भी प्रकार का कैल्शियम न दिया जाए।
जब मास्टिटिस (दूध थैली में सूजन) फैलने का खतरा हो तो पशुओं का विशेष ध्यान रखा जाए। दूध दुहने के बाद पशुओं की दूध की थैली पर ग्लिसरीन और बेटाडीन का मिश्रण (एक अनुपात तीन) लगाकर ठीक किया जा सकता है। ऐसा करके दूध की थैली में दरारों से बचाव किया जा सकता है।