Contra Mutual Funds Investment Benefits; Return And How it Works Details | बेहतर रिटर्न के लिए कॉन्ट्रा फंड में निवेश का ऑप्शन: अंडर-परफॉर्मिंग ​​​​​​​स्टॉक्स में निवेश होता है इसका पैसा, 1 साल में मिला 57.54% तक का रिटर्न

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नई दिल्ली6 मिनट पहले

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अगर आप ऐसे स्टॉक्स में निवेश करना चाहते हैं जो अभी अच्छा परफॉर्म नहीं कर रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में वह बेहतर रिटर्न दे सकें। हालांकि, इसके लिए आपको कंपनियों के फंडामेंटल को देखना होगा, जिसके लिए काफी रिसर्च करनी होती है।

इसके लिए आपको अपने काम के अलावा अलग से समय निकालना होता है। ऐसे में अगर आपके पास इतना समय नहीं है तो आप कॉन्ट्रा म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं। कॉन्ट्रा फंड में भी निवेश करने वाले निवेशकों का पैसा ऐसी कंपनियों के स्टॉक्स निवेश किया जाता है जो वर्तमान में अच्छा परफार्म नहीं कर रहे हैं।

कॉन्ट्रा फंड क्या है?
कॉन्ट्रा म्यूचुअल फंड में निवेशकों का पैसा मौजूदा मार्केट रुझान के विपरीत निवेश किया जाता है। इसमें फंड मैनेजर्स उन कंपनियों में निवेश करते हैं, जो उस समय या तो काफी दबाव में हैं, पॉपुलर नहीं हैं, जिनकी कीमत काफी कम है या अंडर-परफॉर्मिंग हैं। यही इन्वेस्टमेंट की स्ट्रेटजी इस फंड को अन्य फंड से अलग बनाती है।

हाालांकि, कम समय के लिए निवेश करने वाले इन्वेस्टर्स को इस फंड से दूर रहना चाहिए। फंड मैनेजर्स लंबी अवधि में बेहतर रिटर्न के लिए कंपनियों में निवेश करते हैं, जिससे शॉर्ट टर्म में कम रिटर्न के साथ ही निगेटिव रिटर्न भी देखने को मिल सकता है।

बेंचमार्क क्या है?
बेंचमार्क आम तौर पर भारतीय शेयर बाजार के BSE सेंसेक्स और निफ्टी जैसे मार्केट सूचकांक होते हैं, जिसके साथ म्यूचुअल फंड के रिटर्न को कंपेयर किया जाता है।

इसको एक एग्जांपल से समझते हैं….
अगर आपके किसी खास म्यूचुअल फंड ने किसी खास समय के दौरान 59% का रिटर्न दिया है। वहीं, इस दौरान उसके बेंचमार्क ने 70% रिटर्न दिया है तो इससे यह पता चलता है कि उस फंड ने बेंचमार्क की तुलना में कम रिटर्न दिया है। बेंचमार्क की तुलना में जो म्यूचुअल फंड जितना ज्यादा रिटर्न देता है उसका परफॉर्मेंस उतना बेहतर माना जाता है।

कॉन्ट्रा फंड में भी SIP के जरिए कर सकते हैं निवेश
अन्य इक्विटी फंड की तरह कॉन्ट्रा फंड में भी SIP के जरिए निवेश कर सकते हैं, जो लंबे समय में ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। लंबे समय तक SIP करने से शेयर बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव का जोखिम कम हो जाता है। शेयर बाजार के निचले स्तर और ऊंचे स्तर का एक औसत रिटर्न बनता है और साथ ही कम्पाउंडिंग का फायदा भी मिलता है।

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