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- Confucius Story In Hindi, Life Management Story In Hindi, How To Control Mind, If You Keep Your Mind Away From The Activities Of Seeing, Eating And Listening, Then Peace Can Come In Life.
21 घंटे पहले
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एक चीनी दार्शनिक थे कन्फ्यूशियस। उनका जन्म करीब 550 ईसा पूर्व हुआ था। उनके विचार और किस्से आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं। एक चर्चित किस्सा है कि एक दिन एक समझदार व्यक्ति कन्फ्यूशियस के पास आया। वह शिक्षित था, सफल था और जीवन में उसने बहुत कुछ पाया था। उसने कहा, “मैं हर काम बहुत सावधानी से करता हूं। मेरा स्वास्थ्य भी ठीक है, और मुझे जीवन में सफलता भी मिलती है, लेकिन इसके बावजूद भी मैं अशांत रहता हूं। मुझे अंदर से चैन नहीं मिलता। इसीलिए मैं आपके पास शांति की तलाश में आया हूं।”
कन्फ्यूशियस उस समय बहुत प्रसिद्ध हो चुके थे। लोग उन्हें ज्ञानी, मार्गदर्शक और जीवन की जटिल समस्याओं का हल देने वाला मानते थे, उन्होंने उस व्यक्ति को गौर से देखा और फिर पूछा, “एक बात बताओ — तुम देखते कैसे हो, सुनते कैसे हो और स्वाद कैसे लेते हो?”
वह व्यक्ति थोड़ा चकित हुआ, लेकिन उसने सहजता से उत्तर दिया, “मैं आंखों से देखता हूं, कानों से सुनता हूं और जीभ से स्वाद लेता हूं।”
कन्फ्यूशियस मुस्कराए और बोले, “यही तो तुम्हारी अशांति की जड़ है। तुम्हें लगता है कि तुम्हारी आंखें देख रही हैं, कान सुन रहे हैं और जीभ स्वाद ले रही है, लेकिन सच्चाई ये है कि इन सबके पीछे जो सबसे ज्यादा सक्रिय है, वह है तुम्हारा मन।”
उन्होंने आगे समझाया, “तुम जितना आंखों से देखते हो, उससे कहीं ज्यादा तुम्हारा मन देखता है। तुम्हारे कानों से ज्यादा मन सुनता है, और स्वाद की अनुभूति भी असल में मन ही करता है। तुम सोचते हो कि तुम्हारी इंद्रियां काम कर रही हैं, लेकिन वास्तव में मन ही इन सभी इंद्रियों को निर्देश दे रहा है और अनुभव को अपने अनुसार ढाल रहा है। यही कारण है कि तुम्हारा मन थक जाता है, उलझ जाता है और अंततः अशांत हो जाता है।”
उस व्यक्ति ने उत्सुकता से पूछा, “तो फिर क्या समाधान है? मन को शांत कैसे किया जाए?”
कन्फ्यूशियस ने उत्तर दिया, “तुम्हें मन को हर चीज से अलग करना सीखना होगा। जब तुम कोई दृश्य देखो, तो केवल आंखों को देखने दो — मन को उसमें मत घुसने दो। जब कुछ सुनो, तो केवल कानों को सुनने दो — मन को प्रतिक्रिया देने से रोको। जब स्वाद लो, तो उसे केवल जीभ तक सीमित रखो — मन को स्वाद के बारे में विश्लेषण करने से मना करो।”
“जब तुम ऐसा करने लगोगे — यानी अपनी इंद्रियों को स्वतंत्र रूप से काम करने दोगे और मन को उनकी गतिविधियों से अलग रखोगे, तब धीरे-धीरे मन शांत होने लगेगा और जब मन शांत होगा, तब ही तुम्हें असली शांति का अनुभव होगा।”
कहानी की सीख
यह छोटी-सी कहानी हमें सिखाती है कि हम अक्सर ये सोचते हैं कि हमारे जीवन की गतिविधियां केवल हमारे शरीर से होती हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि शरीर के प्रत्येक अनुभव में मन की भूमिका सबसे अधिक होती है। जब कोई सुंदर दृश्य हमारी आंखों के सामने आता है, तो हम केवल आंखों से नहीं, बल्कि मन से भी उसका मूल्यांकन करने लगते हैं — क्या अच्छा है, क्या बुरा है, इससे हमें क्या मिल सकता है, इत्यादि। इसी तरह कोई बात सुनते हैं तो तुरंत मन उसकी व्याख्या में लग जाता है — वह सही है या गलत, हमारे खिलाफ है या समर्थन में। खाने के समय भी हम केवल स्वाद नहीं लेते, बल्कि यह सोचने लगते हैं कि यह व्यंजन अच्छा है या नहीं, पहले जैसा है या नहीं, वगैरह-वगैरह।
यही मन की अत्यधिक सक्रियता हमें अशांत बनाती है। हम सोचते रहते हैं, तुलना करते रहते हैं, अनुमान लगाते रहते हैं — और इसी में हमारा मन उलझता चला जाता है।
कन्फ्यूशियस के अनुसार, मन को इंद्रियों के कार्यों से अलग करना ही शांति की ओर पहला कदम है। अगर हम अपने अनुभवों को केवल यथावत रहने दें, उन्हें विश्लेषण या प्रतिक्रिया के बिना अपनाएं, तो मन में हलचल कम होगी। जब मन शांत होगा, तो जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण भी सहज और स्पष्ट होगा।
शांति कोई बाहरी वस्तु नहीं है, जिसे हम कहीं खोज लें। वह अंदर की स्थिति है, जो तभी आती है जब मन को अनावश्यक भटकाव से मुक्त किया जाए।
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