CJI DY Chandrachud 5th Class Story; Beaten By Teacher In School | CJI बोले-टीचर ने पांचवीं क्लास में मुझे बेंत से पीटा: शर्म के मारे माता-पिता को नहीं बताया, 10 दिन हाथ छिपाना पड़ा

नई दिल्ली1 घंटे पहले

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CJI ने ये बातें शनिवार को काठमांडू में सुप्रीम कोर्ट ऑफ नेपाल की तरफ से आयोजित कराए गए नेशनल सिम्पोजियम ऑन ज्यूवनाइल जस्टिस में कहीं। - Dainik Bhaskar

CJI ने ये बातें शनिवार को काठमांडू में सुप्रीम कोर्ट ऑफ नेपाल की तरफ से आयोजित कराए गए नेशनल सिम्पोजियम ऑन ज्यूवनाइल जस्टिस में कहीं।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने बचपन के दिनों का एक किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा- जब मैं पांचवीं क्लास में था, तब एक छोटी सी गलती के लिए मेरे टीचर ने मुझे बेंत से पीटा था। हाथ पर चोट के निशान थे, लेकिन शर्म के मारे मैंने माता-पिता से ये बात 10 दिन तक छिपाए रखी।

CJI चंद्रचूड़ शनिवार को काठमांडू में सुप्रीम कोर्ट ऑफ नेपाल की ओर से आयोजित नेशनल सिम्पोजियम ऑन ज्यूवनाइल जस्टिस प्रोग्राम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा- बचपन का वो किस्सा मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा। बच्चों के साथ किए गए बर्ताव का असर जिंदगीभर उसके दिमाग पर रहता है।

काठमांडू में बाल न्याय संबंधी राष्ट्रीय गोष्ठी में बोलते CJI चंद्रचूड़।

काठमांडू में बाल न्याय संबंधी राष्ट्रीय गोष्ठी में बोलते CJI चंद्रचूड़।

CJI बोले- इस घटना ने मेरे दिल-दिमाग को प्रभावित किया
CJI ने बताया कि मैं कोई नाबालिग अपराधी नहीं था, जब मुझे मार पड़ी थी। मैं क्राफ्ट सीखा करता था और उस दिन मैं असाइनमेंट के लिए क्लास में सही साइज की सुई लेकर नहीं गया था। मुझे याद है कि मैंने अपने टीचर से कहा था कि हाथ पर मारने की बजाय कमर पर मार दें। लेकिन, उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी।

मार पड़ने के बाद शर्म के मारे 10 दिन बाद तक मैं अपने माता-पिता को इस बारे में नहीं बता पाया था। मुझे अपना घायल हाथ उनसे छिपाना पड़ा था। मेरे हाथ का घाव तो भर गया, लेकिन मेरे दिमाग और आत्मा पर हमेशा के लिए ये घटना छप गई। आज भी जब मैं अपना काम करता हूं तो मुझे ये बात याद रहती है। ऐसी घटनाओं का बच्चों के मन पर प्रभाव बहुत गहरा होता है।

CJI ने कहा- नाबालिग अपराधियों के प्रति दया रखना जरूरी
CJI ने कहा कि नाबालिग न्याय पर चर्चा करते हुए हमें नाबालिग अपराधियों की परेशानियों और खास जरूरतों का ध्यान रखने की जरूरत है। साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारा जस्टिस सिस्टम इन बच्चों के प्रति दया रखे। उन्हें सुधरने और समाज में वापस शामिल होने का मौका दे। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि हम किशोरावस्था के अलग-अलग स्वभाव को समझें और ये भी समझें कि ये समाज के अलग-अलग आयामों से कैसे जुड़ते हैं।

CJI बोले- अपर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर और संसाधनों की कमी सबसे बड़ी चुनौती
इस सेमिनार में CJI ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई उस याचिका का भी जिक्र किया जिसमें नाबालिग लड़की के प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन की मांग की गई थी। CJI ने भारत के नाबालिग न्याय सिस्टम के सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में बात की।

सबसे बड़ा चैलेंज है अपर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर और संसाधन, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में। इसकी वजह से नाबालिग सुधार गृहों में क्षमता से ज्यादा बच्चों को रखना पड़ता है, जिससे यहां के हालात भी बदतर हो जाते हैं। इसके चलते नाबालिग अपराधियों को सही सपोर्ट देने और उनके पुनर्वास की कोशिशों में चुनौती आती है।

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