China India | China President Xi Jinping On India Panchsheel Principles | जिनपिंग ने की भारत के पंचशील सिद्धांत की तारीफ: बोले-दुनिया में शांति कायम करने के लिए ये जरूरी; भारत कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ


बीजिंग44 मिनट पहले

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दुनिया में बढ़ रहे संघर्षों पर लगाम लगाने के लिए ‘पंचशील सिद्धांत’ का जिक्र किया। - Dainik Bhaskar

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दुनिया में बढ़ रहे संघर्षों पर लगाम लगाने के लिए ‘पंचशील सिद्धांत’ का जिक्र किया।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दुनिया में बढ़ रहे संघर्षों पर लगाम लगाने के लिए ‘पंचशील सिद्धांत’ का जिक्र किया। शुक्रवार को पंचशील के सिद्धांतों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ थी।

इस अवसर पर शी जिनपिंग ने शांतिपूर्ण सहअस्तित्व(पंचशील) के 5 सिद्धांतों का जिक्र किया। भारत ने शांतिपूर्ण सहअस्तिव के पांच सिद्धांतों को ‘पंचशील’ नाम दिया है।

ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि पंचशील के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया। उन्होंने कहा कि पिछले 70 सालों में बार-बार यह साबित हुआ है कि चुनौतियों का सामना करने और बेहतर भविष्य बनाने का एक प्रभावी तरीका एकता, सहयोग, कम्युनिकेशन और आपसी समझ को बढ़ाना है।

जिनपिंग बोले- शांतिपूर्ण विकास के रास्ते पर बना रहेगा चीन
जिनपिंग ने इस मौके पर ग्लोबल साउथ में चीन का प्रभाव बढ़ाने पर जोर देने की बात की। उन्होंने ये भी कहा कि शांतिपूर्ण विकास के रास्ते पर बने रहने, सभी देशों के साथ दोस्ती का व्यवहार रखने और दुनिया भर में साझा विकास को बढ़ावा देने के चीन के संकल्प में कोई बदलाव नहीं आएगा।

जिनपिंग ने अपने संबोधन में कहा कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की शुरुआत एशिया में हुई, लेकिन जल्द ही ये विश्व मंच पर छा गए। उन्होंने कहा कि पंचशील ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक ऐतिहासिक घटनाक्रम थी। चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि पंचशील सिद्धांत आज अंतरराष्ट्रीय समुदाय की समान संपत्ति बन चुके हैं।

भारत से कोई नहीं हुआ शामिल
पंचशील समझौते की वर्षगांठ के मौके पर श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे, गयाना के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड रामोतर समेत चीन के करीबी देशों के नेता और अधिकारी शरीक हुए। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत को भी इसमें शामिल होने का आमंत्रण दिया गया था लेकिन कोई अधिकारी इसमें शामिल नहीं हुआ।

29 अप्रैल, 1954 को भारत-चीन और चीन-म्यांमार के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए तीनों देशों के नेताओं ने संयुक्त रूप से इन सिद्धांतों की नींव रखी थी। चीन में इसे ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत’ जबकि भारत में ‘पंचशील का सिद्धांत’ कहा जाता है। तब भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई ने पंचशील के सिद्धांतों पर सहमति जताई थी।

26 जून, 1954 को राष्ट्रपति भवन में झोउ एनलाई के साथ राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, उप राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री नेहरू

26 जून, 1954 को राष्ट्रपति भवन में झोउ एनलाई के साथ राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, उप राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री नेहरू

पंचशील के सिद्धांत में क्या हैं
पंचशील के सिद्धांतों में ‘एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान’, ‘गैर-आक्रामकता’, ‘एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना’, ‘समानता और पारस्परिक लाभ’, तथा ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व’ हैं।’

इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार किया था, इस तरह उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफी हद तक दूर कर दिया था।

पंचशील समझौते के बाद ही हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे थे और भारत ने गुट निरपेक्ष रवैया अपनाया था। लेकिन फिर 1962 में चीन ने भारत पर युद्ध थोप दिया जिससे इस संधि की मूल भावना को गहरी चोट पहुंची थी।

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