छत्तीसगढ़ की विधायी इतिहास का साक्षी रहा पुराना विधानसभा भवन आज आखिरी बार सत्र की मेजबानी कर रहा है। इसके बाद विधानसभा का शीतकालीन सत्र नवा रायपुर के नए विधानसभा भवन में होगा।
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करीब ढाई दशक से यह भवन सिर्फ बहस का मंच नहीं रहा, बल्कि सत्ता के उतार-चढ़ाव, विपक्ष की तल्खियां, राजनीतिक नाटकों, ऐतिहासिक फैसलों और लोकतंत्र के अनेक रंगों का जिंदा गवाह रहा है।
यही वो सदन है जहां पहली बार नियम तय हुए, पहली बार टेबल थपी, पहला अविश्वास प्रस्ताव आया और पहली बार सत्ता-पक्ष के ही एक मंत्री ने वॉकआउट कर पूरे राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी थी।
यहीं पर नई परंपराएं बनीं, यहीं अविश्वास प्रस्ताव पर रिकॉर्ड 19 घंटे लगातार चर्चा हुई थी, और यहीं सत्ता पक्ष के एक मंत्री ने खुद वॉकआउट कर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी थी।
ऐसी कई घटनाएं केवल रिकॉर्ड में ही नहीं बल्कि इस सदन की स्मृतियों में दर्ज हैं।
नए परिसर में जाने से पहले आज का यह एकदिवसीय सत्र सिर्फ़ कार्यवाही नहीं… बल्कि उस पूरे दौर को याद करने का मौका है, जिसने छत्तीसगढ़ की लोकतांत्रिक यात्रा को आकार दिया।
इस रिपोर्ट में पढ़िए कैसा रहा इन 25 सालों का सफर, कौन से फैसले बने मील का पत्थर, और नया भवन क्यों छत्तीसगढ़ की संसदीय संस्कृति को अगले दौर में ले जाने वाला है:-

राजकुमार कॉलेज के टेंट में लगी पहली विधानसभा- फोटो : गोकुल सोनी (सौजन्य)
राज्य गठन और संसदीय यात्रा की शुरुआत: अस्थायी हॉल से पहला सत्र
1 नवंबर 2000…..इस दिन छत्तीसगढ़ देश के 26वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। लेकिन नए राज्य के सामने चुनौतियां भी कम नहीं थीं।
न स्थायी राजधानी का ढांचा, न विधानसभा भवन, न प्रशासनिक इंतजाम। इसी बीच, लोकतंत्र का पहिया थमा नहीं। तत्कालीन सरकार ने अस्थायी व्यवस्था के तहत राजधानी रायपुर के ऐतिहासिक राजकुमार कॉलेज परिसर को विधानसभा के पहले सत्र की मेजबानी के लिए चुना।
राजकुमार कॉलेज, जिसे अंग्रेज शासनकाल में 1882 में जबलपुर में स्थापित किया गया था और 1894 में रायपुर लाया गया।वहीं का जशपुर हॉल छत्तीसगढ़ की संसदीय परंपरा का पहला साक्षी बना।कुर्सियां, टेंट और फर्नीचर तक किराया भंडार से मंगाए गए। हॉल के बाहर पंडाल में कार्यमंत्रणा समिति की बैठकें होती थीं। लेकिन व्यवस्था कितनी भी अस्थायी रही हो, यही वह जगह थी जहां छत्तीसगढ़ की विधायी परंपरा की पहली लाइन लिखी गई।


छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल
पहला विधानसभा सत्र: 14 से 19 दिसंबर 2000
पहला सत्र कुल छह दिन चला। यहां कई ऐतिहासिक घटनाएं घटीं, जो आगे चलकर राज्य की संसदीय परंपरा को दिशा देने वाली थीं।
पहली विधानसभा की महत्वपूर्ण घटनाएं
- प्रोटेम स्पीकर महेंद्र बहादुर सिंह को 2 नवंबर 2000 को विधानसभा का प्रोटेम स्पीकर बनाया गया।
- 14 से 19 दिसंबर 2000 तक राजकुमार कॉलेज के जशपुर हॉल में आयोजित किया गया।
- 14 दिसंबर 2000 को ही राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल को सर्व सम्मति से विधानसभा का पहले अध्यक्ष निर्वाचित किए गए।
- बनवारी लाल अग्रवाल 28 मार्च 2001 को उपाध्यक्ष चुने गए
- नवनिर्वाचित विधायकों ने शपथ ली।
- पहला विधानसभा अध्यक्ष चुना गया, समितियों का गठन हुआ। मुख्यमंत्री अजीत जोगी सत्र में उपस्थित तो रहे, लेकिन सदस्य न होने के कारण शपथ नहीं ले सके। छत्तीसगढ़ विधानसभा की दूसरी वर्षगांठ की तस्वीर

वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले नेता प्रतिपक्ष है।
पहली संस्कृत शपथ
इस सत्र की सबसे अनोखी और यादगार घटना रही भाजपा नेता नंदकुमार साय द्वारा संस्कृत में शपथ लेना। वे राज्य के पहले नेता प्रतिपक्ष बने। इसी सत्र में जोगी मंत्रिमंडल के रामचंद्र सिंह देव, डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम सहित कई मंत्रियों ने शपथ ग्रहण की।
जशपुर हॉल के बाहर आज भी पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा उस ऐतिहासिक समय को याद कराती है।

केन्द्रीय जल संसाधन भवन का दफ्तर, जिसे बाद में विधानसभा बनाया गया। फोटो : गोकुल सोनी (सौजन्य)
अस्थायी व्यवस्था से दूसरा पड़ाव: केन्द्रीय जल संसाधन भवन में विधानसभा
पहले सत्र के लगभग दो महीने बाद 27 फरवरी 2001 को छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र एक नए भवन में आयोजित हुआ। यह भवन मूल रूप से विधानसभा के लिए नहीं बना था। यह दरअसल राजीव गांधी राष्ट्रीय भूजल प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान का परिसर था, जिसकी स्थापना 1997 में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान की गई थी।
जीरो प्वाइंट कहलाने वाला क्षेत्र बाद में विधानसभा चौक नाम से जाना जाने लगा। अस्थायी ढांचे, किराए की कुर्सियां और सीमित जगह इन सबके बीच छत्तीसगढ़ विधानसभा धीरे-धीरे अपने स्थायी रूप की ओर बढ़ती गई।

बाद में विधानसभा भवन कुछ इस तरह से दिखाई देने लगा।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में वेल में जाने से खुद ही निलंबित हो जाते हैं विधायक’
छत्तीसगढ़ विधानसभा ने अपने शुरुआती वर्षों में ही एक ऐसा नियम बनाया, जिसने इसे देश की अन्य विधानसभाओं से अलग पहचान दिलाई।यह नियम था – गर्भगृह (वेल) में पहुंचते ही सदस्य स्वतः निलंबित माने जाएंगे।
यह देश की किसी भी विधानसभा में लागू होने वाला पहला और अनोखा नियम था।यही कारण है कि जहां संसद और अन्य विधानसभाओं में वेल में उतरकर हंगामा आम बात है, वहीं छत्तीसगढ़ विधानसभा में ऐसा दृश्य लगभग नहीं के बराबर है। यह नियम न केवल देश में, बल्कि अन्य लोकतांत्रिक संस्थाओं में भी चर्चा का विषय बना।
25 साल में 9 बार अविश्वास प्रस्ताव
दो दशकों से ज्यादा के इतिहास में विधानसभा में कुल 9 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए:
विस्तार-
- अजीत जोगी सरकार: 2 बार
- रमन सिंह की दो सरकारें: 1 + 3 बार
- भूपेश बघेल सरकार: 2 बार
हर बार अविश्वास प्रस्ताव गिर गया।

अविश्वास प्रस्ताव पर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने दो घंटे का भाषण दिया और फिर सुबह 5 बजे तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह संक्षिप्त में अपनी बात रखी। वोटिंग हुई और अविश्वास प्रस्ताव गिर गया।
अविश्वास प्रस्ताव की वो रात, जब सदन 19 घंटे बिना रुके चला
छत्तीसगढ़ विधानसभा के इतिहास में अगर किसी एक रात को सबसे लंबी, सबसे तीखी और सबसे यादगार बहस के तौर पर याद किया जाता है, तो वह है 22 दिसंबर 2017 की अविश्वास प्रस्ताव वाली रात।उस दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहे गौरीशंकर अग्रवाल आज भी उस दिन को “छत्तीसगढ़ की संसदीय परंपरा के लिए मील का पत्थर” मानते हैं।
अग्रवाल बताते हैं- “उस दिन सच में इतिहास बना था। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा लगातार 19 घंटे चली… बिना भोजन अवकाश के। यह प्रदेश की अब तक की सबसे लंबी विधायी बैठक है।”
उन्होंने कहा कि 47 विधायकों ने प्रस्ताव पर बोलने के लिए नाम दिया था। सबसे लंबा भाषण तब के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव का रहा, जिन्होंने करीब दो घंटे तक सरकार पर सवालों की झड़ी लगा दी।
मंत्री, विपक्षी सदस्य और ट्रेजरी बेंच हर तरफ से बहस तेज होती चली गई और आधी रात कब बीत गई, किसी को पता ही नहीं चला। सत्ता पक्ष की तरफ से खासकर तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह भी धैर्य के साथ सदन में मौजूद रहे और सबकी बातें सुनते रहे।

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल
अग्रवाल का कहना है।“स्पीकर के रूप में मेरी कोशिश यही थी कि हर सदस्य को बराबर मौका मिले। कोई भी यह न कहे कि उसे बोलने नहीं दिया। इसलिए रात भर सदन की कार्यवाही जारी रही।”
भोर करीब 5 बजे तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह खड़े हुए और सरकार की ओर से संक्षिप्त जवाब दिया।भले ही पूरी रात जागने की वजह से सभी थक गए थे लेकिन सदन में वही ऊर्जा बनी रही। हर सीट भरी हुई, सभी सदस्य जवाब सुनने के लिए वैसे ही तैनात। इसी दौरान एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया..ध्वनि मत के बजाय वोटिंग कराई जाए।
इसलिए सदन खाली कराया गया और विधायकों को अंदर बुलाकर मतदान कराया गया। नतीजा आया और अविश्वास प्रस्ताव गिर गया।लेकिन उस रात संसद जैसी गंभीर बहस, लगातार 19 घंटे का मैराथन सत्र और सत्ता–विपक्ष के बीच तेज राजनीतिक टकराव सब कुछ इस भवन की स्मृतियों में दर्ज हो गया।
गौरीशंकर अग्रवाल मानते हैं कि -“इस पुराने भवन में जो संसदीय संस्कृति बनी, जो मिसालें कायम हुईं, वैसा दौर दोबारा मिलना मुश्किल है।

टीएस सिंहदेव सदन से बाहर निकल गए थे, तब तत्कालीन मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम उन्हें मनाने पहुंचे लेकिन खेद प्रकट किए जाने तक सिंहदेव सदन में वापस नहीं लौटे।
जब सत्ता पक्ष के मंत्री ने ही कर दिया था वॉकआउट… सदन में मचा था भारी हंगामा
छत्तीसगढ़ विधानसभा के 25 साल के इतिहास में वह दिन भी दर्ज है, जब सत्ता पक्ष के ही एक वरिष्ठ मंत्री ने सदन से वॉकआउट कर दिया था।ऐसा कदम न पहले कभी देखा गया था और न उसके बाद दोबारा हुआ। यह घटना उस पुराने विधानसभा भवन की स्मृतियों में एक असाधारण संसदीय पल के तौर पर दर्ज है।
यह मामला तब शुरू हुआ जब शून्यकाल में गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू एक FIR का विवरण पढ़कर सुनाने के लिए खड़े हुए। FIR विधायक बृहस्पत सिंह की ओर से दर्ज कराई गई थी। जैसे ही साहू ने FIR की कॉपी पढ़नी शुरू की, विपक्ष भड़क उठा। भाजपा विधायकों का कहना था कि सरकार असल मुद्दे को भटका रही है और जिस विषय पर जवाब मांगा गया था, उस पर कोई स्पष्टता नहीं दी जा रही।
इसी हंगामे के बीच अचानक स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव अपनी सीट से खड़े हुए। उनका चेहरा गंभीर था और आवाज पहले से कहीं ज्यादा दृढ़।
सिंहदेव ने कहा-“अब बहुत हो गया। मेरे ऊपर जो आरोप लगाए गए हैं, उन पर सरकार का स्पष्ट जवाब आए बिना मेरा सदन में रहना उचित नहीं है। मेरे माता-पिता के आचरण, चरित्र और सार्वजनिक जीवन से यह सदन अच्छी तरह परिचित है। इसके बावजूद मेरे खिलाफ ऐसी बातें कही जा रही हैं। मैं तब तक वापस नहीं आऊंगा, जब तक शासन अपनी स्थिति साफ नहीं करता।”
ये कहते ही सिंहदेव सदन से बाहर निकल गए।सत्ता पक्ष का मंत्री अपने ही सरकार के खिलाफ इस तरह खड़ा हो जाए। ये वाक्या पूरे सदन को स्तब्ध कर देने वाला था। इसके बाद सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।

साल 2018 में सरकार बदलने के बाद भूपेश बघेल सीएम बने और चरणदास महंत विधानसभा अध्यक्ष।
अगले दिन अध्यक्ष विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने सरकार की ओर से गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को बयान देने के लिए बुलाया। यह वही मुद्दा था जिसने घंटे से सदन की पूरी कार्यवाही रोक दी थी।गृहमंत्री साहू ने स्पष्ट शब्दों में कहा“विधायक बृहस्पत सिंह ने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव पर जान से मारने की कोशिश के जो आरोप लगाए थे, वे पूरी तरह निराधार हैं।”
गृह मंत्री के बयान और विधायक के खेद व्यक्त करने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खड़े हुए। उन्होंने विपक्ष का आभार जताते हुए कहा “इतने गंभीर मुद्दे पर सदन की संवेदनशीलता बनी रही, इसके लिए मैं विपक्ष का धन्यवाद करता हूं।”
इसके कुछ देर बाद, दोपहर 1 बजकर 2 मिनट पर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव वापस सदन में पहुंच गए।
सिंहदेव ने अपनी सीट संभाली और सदन की कार्यवाही सामान्य ढंग से आगे बढ़ी।इस तरह पिछले एक दिन से चल रहा विवाद समाप्त हो गया और सदन ने अपना एजेंडा आगे बढ़ाया।

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने छत्तीसगढ़ विधानसभा को सम्बोधित किया था। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय
राष्ट्रपतियों का संबोधन: छत्तीसगढ़ को मिला विशेष गौरव
25 साल की संसदीय यात्रा में अब तक छत्तीसगढ़ विधानसभा को तीन राष्ट्रपति संबोधित कर चुके हैं।
- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम – 28 जनवरी 2004
- वे स्वतंत्रता के बाद किसी राज्य विधानसभा को संबोधित करने वाले पहले राष्ट्रपति थे।
- प्रतिभा देवी पाटिल
- द्रोपदी मुर्मू – मार्च 2025
25 साल- चेहरे और नेतृत्व
विधानसभा अध्यक्ष
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल (2000–2003)
- प्रेमप्रकाश पाण्डेय (2003–2009)
- धरमलाल कौशिक (2009–2014)
- गौरीशंकर अग्रवाल (2014–2019)
- डॉ. चरणदास महंत (2019–2023)
- डॉ. रमन सिंह (2023–वर्तमान)
विधानसभा सचिव / प्रमुख सचिव
- भगवान देव इसरानी (2000–2004)
- देवेंद्र वर्मा (2004–2017)
- चंद्रशेखर गंगराड़े (2017–2022)
- दिनेश शर्मा (2022–वर्तमान)
प्रोटेम स्पीकर
महेन्द्र बहादुर सिंह, राजेंद्र प्रसाद शुक्ल, बोधराम कंवर, सत्यनारायण शर्मा, रामपुकार सिंह ठाकुर, राम विचार नेताम
नेता प्रतिपक्ष
नंदकुमार साय, महेंद्र कर्मा, रविंद्र चौबे, टीएस सिंहदेव, धरमलाल कौशिक, नारायण चंदेल, डॉ. चरणदास महंत
समापन: लोकतंत्र का सफर अब नए भवन में नए अध्याय के साथ
छत्तीसगढ़ विधानसभा की 25 साल की यात्रा अस्थायी जशपुर हॉल से शुरू होकर 52 एकड़ में बने अत्याधुनिक भवन तक पहुंची है। नया भवन आने वाले दशकों के लिए छत्तीसगढ़ की विधायी जरूरतों को पूरा करने वाला है।
राज्य की संसदीय परंपरा अब एक नए, भव्य और आधुनिक अध्याय में प्रवेश कर रही है और लेकिन उससे पहले आज यानी 18 नवंबर का विशेष सत्र छत्तीसगढ़ के संसदीय इतिहास का गवाह रहे भवन का आखिरी पन्ना साबित होगा।
