3 घंटे पहले
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छठ पूजा व्रत चार दिनों का है और इसका पहला दिन नहाय खाय है, जो कि आज (25 अक्टूबर) है। छठ पूजा के पहले दिन भक्त नमक का सेवन नहीं करते हैं। व्रत करने वाला व्यक्ति स्नान के बाद नए वस्त्र पहनता है। इस दिन लौकी की सब्जी और चावल बनाए जाते हैं। पूजा के बाद प्रसाद रूप में लौकी की सब्जी और चावल खाते हैं।
26 अक्टूबर को खरना
छठ पूजा व्रत का दूसरा दिन खरने का होता है। खरने में शाम को सूर्यास्त के बाद पीतल के बर्तन में गाय के दूध से खीर बनाते हैं। व्रत करने वाला व्यक्ति ये खीर खाता है, लेकिन खीर खाते समय अगर उसे कोई आवाज सुनाई दे जाए तो वह खीर वहीं छोड़ देता है। इसके बाद पूरे 36 घंटों का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है यानी पूरे 36 घंटे तक व्रत करने वाला व्यक्ति पानी भी नहीं पीता है।
सूर्यास्त और सूर्योदय के समय देते हैं अर्घ्य
तीसरे दिन यानी छठ पूजा (27 अक्टूबर) के दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह से व्रत करने वाला व्यक्ति निराहार और निर्जल रहता है। प्रसाद में ठेकुआ बनाते हैं। शाम को सूर्य पूजा करने के बाद भी रात में व्रत करने वाला निर्जल रहता है। चौथे दिन यानी यानी सप्तमी तिथि (28 अक्टूबर) की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूरा होता है।
छठ माता से जुड़ी मान्यताएं
- माना जाता है कि प्रकृति ने खुद को छह भागों में बांटा था। इनमें छठे भाग को मातृ देवी कहा जाता है। छठ माता को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री मानी जाती हैं।
- देवी दुर्गा के छठे स्वरूप यानी कात्यायनी को भी छठ माता कहते हैं।
- छठ माता सूर्य देव की बहन मानी गई हैं। इस वजह से भगवान सूर्य के साथ छठ माता की पूजा की जाती है।
- छठ माता संतान की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं। इस कारण संतान के सौभाग्य, लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना से छठ पूजा का व्रत किया जाता है।
- एक अन्य मान्यता है कि बिहार में देवी सीता, कुंती और द्रौपदी ने भी छठ पूजा का व्रत किया था और व्रत के प्रभाव से ही इनके जीवन के सभी कष्ट दूर हो गए थे।
