पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ पुलिस के इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी के खिलाफ मामला दर्ज करने के ट्रायल कोर्ट के आदेशों को खारिज कर दिया है, जिस पर कथित अपराधिक धमकी के मामले में एक पक्षीय जांच करने के आरोप लगे थे। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी क
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इसलिए अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 166-ए (लोक सेवक द्वारा कानून के तहत निर्देश की अवहेलना) और 167 के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए। पुलिस अधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए, जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा कि हाईकोर्ट रूल्स (चैप्टर 1 पार्ट एच रूल 6) के अवलोकन से पता चलता है कि पुलिस अधिकारियों और अन्य के आचरण की आलोचना की जानी है या किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई की जानी है, तो रूल 6 में दर्शाई गई प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
एक प्रति पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी को भेजी जाए
यानी फैसले की एक प्रति जिला मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए। गृह सचिव के 15 अप्रैल 1936 के परिपत्र के संदर्भ में दिया गया एक कवरिंग लेटर भी सलंग्न करना होगा। कोर्ट ने निर्देश दिया था कि बरी करने के फैसले की एक प्रति जिला मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए जो इसे रजिस्ट्रार, हाईकोर्ट को भेजेंगे।
ट्रायल कोर्ट ने निर्देश दिया था कि बरी करने के फैसले की एक प्रति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक चंडीगढ़ को भेजी जाए ताकि कानून के अनुसार दोषी अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सके। ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई गई यह प्रक्रिया कानून के लिए अज्ञात है। ये टिप्पणियां चंडीगढ़ पुलिस के इंस्पेक्टर कृपाल सिंह की ओर से दाखिल की गई याचिका के जवाब में की गई थी। जस्टिस बेदी ने कहा कि, ‘इस मामले में ऐसा (स्पष्टीकरण के लिए सुनवाई का अवसर) न किए जाने से याचिकाकर्ता और अन्य के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई निरर्थक हो जाएगी। हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई शुरू करना उच्च न्यायालय के नियमों का उल्लंघन है।