CBI Court Mohali 1992 Kidnapping Judgment Update। The then SHO Surendra Singh | पंजाब में 32 साल पुराने मामले में SHO दोषी करार: स्वतंत्रता सेनानी ससुर-दामाद को गायब करने का मामला, नहर में फेंक दिए थे शव – Punjab News

परिवार वाले मृतकों के बारे में जानकारी देते हुए।

करीब 32 साल पुराने अपहरण, अवैध हिरासत और गायब करने के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने तरन तारन के सरहाली थाने के तत्कालीन एसएचओ सुरेंद्र पाल सिंह को दोषी करार दिया है। उन्हें धारा 120बी, 342, 364, 365 के दोषी पाया गया है। अदालत की तरफ से 23 दिसंबर

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पूछताछ के बहाने घर से बुलाकर ले गई थी पुलिस

यह मामला 31 अक्तूबर 1992 का है। उस दिन शाम को सुखदेव सिंह वाइस प्रिंसिपल और उनके 80 वर्षीय ससुर सुलखन सिंह (भकना निवासी स्वतंत्रता सेनानी) को एएसआई अवतार सिंह की अगुआई वाली पुलिस टीम ने हिरासत में लिया था। अवतार सिंह ने परिवार वालों को बताया था कि सुखदेव सिंह और सुलखन सिंह को थाना प्रभारी सुरेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के लिए बुलाया है। फिर दोनों 3 दिनों तक थाने में रहे। सरहाली को तरन तारन में अवैध रूप से रखा गया था, जहां परिवार और अध्यापक यूनियन के सदस्यों ने उनसे मुलाकात की और उन्हें भोजन, कपड़े आदि प्रदान किए, लेकिन उसके बाद उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई।

पुलिस ने पहले झूठे केस में फंसाया

इस मामले में सुखदेव सिंह की पत्नी सुखवंत कौर ने पुलिस के उच्च अधिकारियों से शिकायत की कि सुखदेव सिंह और सुलखन सिंह को आपराधिक मामलों में फंसाया गया है। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उस समय सुखदेव सिंह सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल लोपोके जिला अमृतसर में लेक्चरर उप प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत थे और उनके ससुर सुलखन सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। वह स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाबा सोहन सिंह भकना के करीबी सहयोगियों में से एक थे।

मोहाली सीबीआई अदालत ।

मोहाली सीबीआई अदालत ।

पुलिस ने ऐसे बनाई मृत होने की कहानी

इस मामले में पूर्व विधायक सतपाल डंग और विमला डंग ने भी पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को अलग-अलग पत्र लिखे थे और मुख्यमंत्री ने भी जवाब दिया था कि वे पुलिस हिरासत में नहीं हैं। साल 2003 में कुछ पुलिस कर्मियों ने सुखवंत कौर यानी सुखदेव सिंह की पत्नी से संपर्क किया और उनसे कोरे कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए और कुछ दिनों के बाद उन्हें सुखदेव सिंह का मृत्यु प्रमाण पत्र सौंप दिया गया, जिसमें लिखा था कि उनकी मृत्यु 8 जुलाई 1993 को हुई थी।

ऐसे चली थी यह लड़ाई

परिवार को सूचित किया गया कि सुखदेव सिंह की यातना के दौरान मृत्यु हो गई और उनके शव को सुलखन सिंह के साथ हरिके नहर में फेंक दिया गया। सुखवंत कौर ने अपने पति और पिता के अपहरण, अवैध हिरासत और लापता होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट और पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

लेकिन नवंबर 1995 में एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़े पैमाने पर मृतकों के दाह-संस्कार के मामले की जांच करने के निर्देश सीबीआई को दिए। मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा ने खुलासा किया कि पंजाब पुलिस ने शवों को लावारिस मानकर अंतिम संस्कार कर दिया था।

इसके बाद, प्रारंभिक जांच के दौरान, सीबीआई ने 20 नवंबर 1996 को सुखवंत कौर का बयान दर्ज किया और उसके बयान के आधार पर, 6 मार्च 1997 को एएसआई अवतार सिंह और एसआई सुरेंद्र पाल सिंह फिर एसएचओ सरहाली और अन्य के खिलाफ वर्ष 2000 में धारा 364/34 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

1996 में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। जिसे पटियाला कोर्ट ने 2002 में खारिज कर दिया और आगे की जांच का आदेश दिया। आखिरकार साल 2009 में सीबीआई ने सुरिंदर पाल और अवतार सिंह के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दायर किया। इसके बाद 2016 में अदालत में चार्जशीट दाखिल की।

दोषी एसएचओ जेल में भुगत रहा है सजा

दोषी सुरेंदरपाल सिंह तत्कालीन SHO जसवंत सिंह खालड़ा हत्याकांड में पहले से ही उम्र कैद की सजा काट रहा है। तरन तारन के जियो बाला गांव के परिवार के 4 सदस्यों के अपहरण और लापता होने के एक अन्य मामले में भी उन्हें 10 साल कैद की सजा सुनाई गई है।

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