मुंबई18 मिनट पहलेलेखक: किरण जैन और अभिनव त्रिपाठी
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बॉलीवुड में हॉरर फिल्में बनाने की शुरुआत रामसे ब्रदर्स ने की थी। रील टु रियल के नए एपिसोड में हॉरर फिल्मों की मेकिंग, किस्से और आज के दौर में हुए बदलावों पर बात करेंगे।
कमाई के मामले में देखें तो इस साल हॉरर फिल्मों का बोलबाला रहा। शैतान, मुंज्या और अब स्त्री-2 ने कमाई के झंडे गाड़ दिए। यह एक ऐसा जॉनर है, जिसे ऑडियंस हमेशा से पसंद करती आई है। हिंदी सिनेमा में भूतिया फिल्मों का ट्रेंड शुरू करने का श्रेय किसी को जाता है तो वे हैं रामसे ब्रदर्स। वीराना, दो गज जमीन के नीचे, पुराना मंदिर और पुरानी हवेली जैसी फिल्में इसकी साक्षी हैं।
आज रील टु रियल में हॉरर फिल्मों की शूटिंग प्रोसेस, फिल्म मेकिंग में आए बदलावों और कुछ अनकहे किस्सों को उजागर करेंगे। इसके लिए हमने रामसे फैमिली की अगली पीढ़ी को आगे ले जा रहे दीपक रामसे, डायरेक्टर सोहम शाह, एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी और एक लोकेशन मैनेजर संजय से बात की।
दीपक रामसे ने बताया कि उनके चाचा किरण रामसे अक्सर कब्रिस्तान में जाकर साउंड रिकॉर्ड करते थे। फिर उन साउंड्स को अपनी फिल्मों में इस्तेमाल करते थे।
पहले रामसे ब्रदर्स की फिल्मों और शूट से रिलेटेड कुछ फैक्ट्स जानिए..
- रामसे ब्रदर्स की फिल्में दिन में नहीं, रात में रिलीज की जाती थीं।
- अधिकतर शूटिंग रियल लोकेशन जैसे क्रबिस्तान, पुराने खंडहरों और हवेलियों में शूट होती थीं।
- इनकी लगभग सारी फिल्में 30-35 लाख के बजट में बनती थीं और एक से डेढ़ करोड़ के आस-पास कलेक्शन कर लेती थीं।
- रामसे ब्रदर्स का हॉरर फिल्में शूट करने का अंदाज बहुत अनोखा था। वे रात में 9 बजे कब्रिस्तान में घुसते थे और सुबह 4 बजे निकलते थे। वे इसे ‘स्पेशल ग्रेवयार्ड शूट’ का नाम देते थे। अधिकतर शूटिंग इसी टाइम स्लॉट के बीच होती थी।
- रामसे ब्रदर्स ने ‘जी हॉरर शो’ नाम का एक टीवी हॉरर शो भी शुरू किया था। ये शो इतना डरावना था कि चैनल को रामसे ब्रदर्स के नाम एक लेटर लिखना पड़ा। लेटर में लिखा था कि शो को बच्चे भी देख रहे हैं, इसलिए हॉरर सीन्स को थोड़ा कम करना चाहिए।
- 70, 80 और 90 के दशक में हॉरर फिल्मों को बीग्रेड कैटेगरी में माना जाता था। ए-लिस्टर्स एक्टर इन फिल्मों में काम नहीं करते थे। कारण यह था कि इन फिल्मों में ग्लैमर का भी अच्छा-खासा डोज होता था। इसके अलावा इन फिल्मों को ज्यादातर ए-सर्टिफिकेट ही मिलता था, जिसकी वजह से बड़े एक्टर्स पहले ही कन्नी काट लेते थे। छोटे एक्टर्स के बावजूद रामसे ब्रदर्स की फिल्में खूब कमाई करती थीं।
एक सीन की वजह से हॉरर फिल्में बनाने की सोच आई
दीपक रामसे ने बताया कि उनके पिता और अंकल्स ने आखिर क्या सोचकर भूतिया फिल्में बनाने के बारे में सोचा। दरअसल रामसे ब्रदर्स की एक फिल्म रिलीज हुई थी जिसका नाम था- ‘एक नन्ही मुन्नी लड़की थी’। इस फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज कपूर भूतों वाला मास्क पहनकर आते हैं, जिन्हें देखकर हीरोइन मुमताज डर जाती हैं।
फिल्म तो फ्लॉप हो गई, लेकिन यह सीन हिट हो गया। इस सीन पर तालियां बजती देख रामसे ब्रदर्स ने एक फुल फ्लेज्ड हॉरर फिल्म बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने 3.5 लाख के बजट में फिल्म ‘दो गज जमीन के नीचे’ बनाई जो सुपरहिट रही।
शूट के लिए गड्ढा खोदा गया, तो वहां से लाश निकली
चूंकि बजट कम था, इसलिए फिल्म की शूटिंग एक असली कब्रिस्तान में की गई। रात में शूट हो रहा था। फिल्म के सीक्वेंस के मुताबिक, शूट के लिए वहां एक गड्ढा खोदना था। जब गड्ढा खोदा गया तो वहां से एक लाश निकल आई। बहुत बड़ा मसला हो गया। शूटिंग भी रोकनी पड़ी। हालांकि बाद में किसी तरह से फिल्मिंग कम्प्लीट हुई।
दीपक, रामसे ब्रदर्स में सबसे बड़े तुलसी रामसे के बेटे हैं। ये अपने पिता के साथ भी कई फिल्मों की मेकिंग का हिस्सा रहे। इन्होंने खुद भी फिल्में डायरेक्ट की हैं।
जब ताबूत के अंदर फंस गया कलाकार, सांस रुकने वाली थी
दीपक रामसे ने बताया कि एक बार उनके पिता और चाचा फिल्म पुराना मंदिर की शूटिंग कर रहे थे। उस फिल्म में शैतान बने कैरेक्टर को एक ताबूत में बंद करना था। वो ताबूत जर्मनी से मंगवाया गया था। वो ताबूत इतना मजबूत था कि एक बार गलती से लॉक हो जाए तो जल्दी नहीं खुलता था।
शैतान बने आर्टिस्ट को उसके अंदर लिटाया गया। असिस्टेंट डायरेक्टर ने ध्यान नहीं दिया और ताबूत लॉक हो गया। करीब 7-8 मिनट तक तो वो खुल ही नहीं पाया। उसके अंदर लेटे कैरेक्टर की सांस लगभग रुकने वाली थी। काफी मशक्कत के बाद ताबूत को खोला गया। आर्टिस्ट रोते हुए अंदर से निकला। वो आर्टिस्ट पूरी तरह शैतान के गेटअप में था। दीपक रामसे ने बताया कि उन्होंने पहली बार किसी ‘भूत’ को रोते हुए देखा।
एक्टर्स को भूत वाले मास्क पहनाए जाते थे, शूटिंग ज्यादातर रात में होती थी
जब VFX नहीं था, तब साउंड और विजुअल इफेक्ट्स से ही हॉरर सीन क्रिएट किए जाते थे। मेकर्स की जहां तक कोशिश होती थी कि रात में ही शूट करें ताकि सीन को एक नेचुरल लुक दिया जा सके।
इसके अलावा एक्टर्स को भूत वाले मास्क पहनाए जाते थे। हालांकि मास्क में एक्टर्स के रियल एक्सप्रेशन छिप जाते थे, बाद में मास्क की जगह प्रोस्थेटिक मेकअप ने ले लिया। 8-9 घंटे तक लगातार मेकअप किया जाता था। इस दौरान एक्टर्स को चम्मच या स्ट्रॉ से कुछ खाने-पीने को दिया जाता था। आज की डेट में एक बार मेकअप हो जाए तो बाकी सारा काम VFX से हो जाता है।
श्याम रामसे के बैकग्राउंड में एक डरावना मास्क देखा जा सकता है। उनकी फिल्मों के कैरेक्टर्स ऐसे ही मास्क यूज करते थे।
रास्ते में महिला ने लिफ्ट मांगी, उसकी हरकतें अजीब थीं, 5 साल बाद इसी घटना पर बना दी फिल्म
6 मई 1988 को रिलीज हुई फिल्म वीराना को भुलाया नहीं जा सकता। इस फिल्म को बनाने के पीछे भी एक कहानी है।
दरअसल श्याम रामसे एक दिन महाबलेश्वर से अपनी किसी फिल्म की शूटिंग करके लौट रहे थे। रास्ते में एक महिला ने उनसे लिफ्ट मांगी। श्याम रामसे ने उस महिला को लिफ्ट तो दे दी, लेकिन वो देखने में काफी अजीब लग रही थी। उसकी बॉडी लैंग्वेज नॉर्मल लोगों की तरह नहीं थी। श्याम रामसे काफी डर गए। उन्होंने महिला को गाड़ी से उतारा और वहां से भागते बने।
श्याम रामसे की भांजी अलीशा प्रीती कृपलानी ने अपनी किताब ‘घोस्ट इन ऑवर बैकयार्ड’ में इस घटना के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने यहां तक लिखा कि जिस महिला को उनके मामा श्याम रामसे ने लिफ्ट दिया, उसके दोनों पैर मुड़े हुए थे, जैसा चुड़ैलों का माना जाता है।
श्याम रामसे के साथ यह घटना 1983 में घटी थी, इसके पांच साल बाद उन्होंने फिल्म वीराना बनाई। फिल्म वीराना में भी यही दिखाया गया है कि एक खूबसूरत महिला के भेष में छिपी चुड़ैल राह चलते लोगों से लिफ्ट मांगती है और फिर उन्हें मार देती है। फिल्म में उस चुड़ैल का किरदार एक्ट्रेस जैस्मिन ने निभाया था।
फिल्म वीराना का एक सीन, जिसमें जैस्मिन राह चलते एक व्यक्ति से लिफ्ट मांगती है, फिर रास्ते में उसका शिकार कर लेती है।
टेप रिकॉर्डर में सुनी गई आदमी के सांस लेने की आवाज
रामसे ब्रदर्स में से एक किरण रामसे साउंड का सारा काम देखते थे। वे कब्रिस्तान जाते फिर वहां हवा की सनसनाहट, जानवरों की आवाज और चिड़ियों की चहचहाहट रिकॉर्ड करते थे। फिर वे उन साउंड्स को फिल्मों में बैकग्राउंड स्कोर के तौर पर इस्तेमाल करते थे।
एक बार वे कब्रिस्तान से साउंड रिकॉर्ड करके घर आए। घर पर उन्होंने टेप रिकॉर्डर ऑन किया। उन्होंने कुछ ऐसा सुना जिससे उनके होश उड़ गए। दरअसल उसमें किसी आदमी के सांस लेने की आवाजें आ रही थीं, जबकि वहां उनके अलावा कोई मौजूद नहीं था।
थिएटर में साथ बैठे सैकड़ों लोगों को डराना सबसे मुश्किल काम
काल और लक जैसी फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर सोहम शाह का कहना है कि हॉरर फिल्मों की मेकिंग सबसे मुश्किल काम है। उन्होंने कहा, ‘एक पिक्चर हॉल में 300 लोग बैठकर फिल्म देखते हैं। जाहिर सी बात है कि उन्हें डराना कितना मुश्किल काम होगा। कोई अकेला व्यक्ति रहे तो समझ में भी आता है। बड़े दुख की बात है कि हॉरर फिल्मों को हमेशा से सेकेंड क्लास ट्रीटमेंट मिला है। हालांकि पिछले कुछ सालों से यह धारणा बदली है।’
हिंदी सिनेमा में पिछले दशक से हॉरर कॉमेडी फिल्मों का ट्रेंड शुरू हो गया है। सोहम शाह ने कारण बताते हुए कहा, ‘लोग सोचते हैं कि हम 200-300 रुपए खर्च करके सिर्फ डरावनी फिल्म देखने क्यों जाएं। उन्हें साथ में कुछ एंटरटेनमेंट भी चाहिए होता है। फिल्म मेकर्स ने समय रहते इस चीज को भांप लिया। इसके बाद से ही हॉरर कॉमेडी फिल्मों का ट्रेंड शुरू हो गया। भूल भुलैया, भूतनाथ, गो गोवा गॉन, स्त्री और मुंज्या जैसी फिल्में इसका उदाहरण हैं।’
हॉरर फिल्मों की शूटिंग के लिए घने जंगल मेकर्स की पहली पसंद
हम मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क भी गए। वहां कई हॉरर फिल्में और शोज की शूटिंग हुई है। वहां मौजूद लोकेशन मैनेजर संजय ने बताया कि यहां के जंगल देखने में ही भूतिया लगते हैं, इसलिए मेकर्स की पहली पसंद बन जाते हैं।
लोकेशन मैनेजर ने कहा, ‘शूटिंग के वक्त कई बार अजीबोगरीब हरकतें होती हैं। कई क्रू मेंबर्स को आभास होता है कि उन्होंने अपने आस-पास को किसी को महसूस किया है। कई बार कैमरामैन भी इसकी शिकायत करते हैं।’
कटरीना कैफ और विजय सेतुपति की फिल्म मेरी क्रिसमस की शूटिंग भी यहीं हुई है। इसके अलावा जी हॉरर शो और आहट जैसे टेलीविजन शोज की शूटिंग भी इन्हीं जंगलों में होती थी।
मेकर्स ऐसे जंगल खोजते हैं, जो देखने में ही भूतिया लगें। इसके लिए लोकेशन मैनेजर की भूमिका काफी बढ़ जाती है।
यहां शूटिंग के वक्त काफी दिक्कतें भी आती हैं। कीड़े-मकोड़े और जंगली जानवरों का यहां बसेरा है। आर्टिस्ट की सुरक्षा को देखते हुए सेट पर हर वक्त सपेरे और जानवरों को संभालने वाले लोग मौजूद रहते हैं।
इन जंगलों में हॉरर फिल्मों की शूटिंग कुछ ऐसे होती है।
स्त्री में घोस्ट बनीं एक्ट्रेस बोलीं- ऐसा लगा मेरे अंदर नॉर्मल एनर्जी नहीं है
फिल्म स्त्री में घोस्ट बनीं फ्लोरा सैनी ने कहा कि उन्हें लगा कि भूत का किरदार तो आसानी से निभाया जा सकता है, लेकिन बाद में पता चला कि इसके लिए कितनी हिम्मत चाहिए।
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