मुंबई18 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी और अभिनव त्रिपाठी
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अनीस बज्मी ने वेलकम, नो एंट्री और भूल भुलैया-2 जैसी सुपरहिट फिल्में डायरेक्ट की हैं।
इनकी फिल्म वेलकम का एक डायलॉग है– सड़क से उठाकर स्टार बना दूंगा। यह डायलॉग इनकी खुद की जिंदगी पर लागू होता है।
हम बात कर रहे हैं डायरेक्टर अनीस बज्मी की। एक मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले अनीस आज इंडस्ट्री के टॉप डायरेक्टर हैं। हालांकि यहां तक सफर तय करने के लिए इन्होंने सालों लंबा संघर्ष किया है।
अनीस संघर्ष के दिनों में फिल्म के सेट पर स्पीकर ढोते थे। हालांकि इनके अंदर राइटिंग का हुनर था, जिसकी वजह से देर-सबेर इन्हें फिल्में लिखने का मौका मिल गया। इन्होंने कई फिल्मों की कहानी लिखी, जिसके लिए इन्हें क्रेडिट भी नहीं मिला। 5-6 फिल्में लिखने के बाद 1990 में आई फिल्म स्वर्ग के लिए पहली बार इन्हें क्रेडिट मिला। सिर्फ 25 साल की उम्र में इन्होंने स्वर्ग जैसी फिल्म की कहानी लिख दी थी।
अनीस को लिखने का बहुत शौक था, लेकिन इसमें उलझकर रहना नहीं चाहते थे। राज कपूर के अंडर इन्होंने डायरेक्शन की बारीकियां सीखी थीं। 1995 में पहली बार इन्होंने फिल्में डायरेक्ट करनी शुरू कीं। इसके बाद इन्होंने नो एंट्री, वेलकम और रेडी सहित कई सुपरहिट फिल्मों का डायरेक्शन किया।
संघर्ष से लेकर सफलता की कहानी, खुद अनीस की जुबानी..
पिता के साथ मुशायरों में जाते थे, वहां पान, बीड़ी और सिगरेट लाने का काम करते थे अनीस कहते हैं, ‘ऊपर वाला संघर्ष भी उसी को देता है, जिसको वो लायक समझता है। संघर्ष को लेकर रोना-धोना नहीं चाहिए। मेरे वालिद यानी पिताजी एक शायर थे। वे मुझसे गजलें और नज्में लिखवाते थे। वहां से मुझे उर्दू की समझ हो गई। आठवीं और नौवीं तक आते-आते मैं पिताजी के साथ मुशायरों में जाने लगा। वहां और भी शायर आते थे। मैं उनके लिए पान, बीड़ी और सिगरेट लाता था।’
छोटे भाई की बात करने गए थे, इन्हें मिल गया काम अनीस ने आगे कहा, ‘आप भले ही मुझे एक डायरेक्टर या राइटर के तौर पर जानते होंगे, लेकिन मैंने करियर की शुरुआत एक्टर के तौर पर की थी। दरअसल, छोटे भाई के लिए बात करने गया था और मौका मुझे मिल गया। सामने से कहा गया कि तुम्हारा भाई तो छोटा है, तुम काम करोगे तो बताओ? खैर, मुझे पैसों की जरूरत थी, इसलिए मैंने हां बोल दिया।’
पैसों की जरूरत थी, इसलिए छोटे-मोटे काम किए एक्टिंग में हाथ आजमाने के बाद अनीस को लगा कि वे इसके लिए नहीं बने हैं। उन्होंने फिर आर्ट, एडिटिंग और साउंड डिपार्टमेंट में भी काम किया। इस तरह डायरेक्शन और राइटिंग में काम करने से पहले इन्होंने छोटे-मोटे कई काम किए। उस वक्त पैशन फॉलो करने से ज्यादा इन्हें पैसों की जरूरत थी।
हर साल रेंट बढ़ता था, इससे बचने के लिए 30 से ज्यादा घर बदले संघर्ष के दिनों में अनीस ने 30 से ज्यादा घर बदले। वे एक घर में 11 महीने से ज्यादा नहीं रुकते थे। हर एक साल पर रेंट बढ़ जाता था। अनीस के पास इतने पैसे नहीं होते थे। अनीस ने सबसे पहले मुंबई के मीरारोड पर एक कमरे का घर खरीदा था।
राज कपूर से मिले, वहां से सितारे खुलने लगे इंडस्ट्री में छोटे-मोटे काम करने के बाद अनीस बज्मी एक राइटर से मिले। उस राइटर ने उन्हें राज कपूर से मिलवाया। अब यहां से अनीस बज्मी के सितारे खुलने लगे। उन्होंने कहा, ‘राज साहब के अंडर में मैंने डायरेक्शन की बारीकियां सीखीं। उनकी फिल्म प्रेम रोग (1982) में मैं उनका असिस्टेंट था। इसके बाद मैं अलग-अलग डायरेक्टर्स के साथ काम करने लगा। कुल 15 डायरेक्टर्स के साथ मैंने बतौर असिस्टेंट काम किया था।’
कहानियां लिखते थे, लेकिन क्रेडिट नहीं मिलता था कुछ वक्त असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम करने के बाद अनीस बज्मी ने फिल्मों की कहानियां लिखनी शुरू कीं। गौर करने वाली बात यह है कि उन्होंने कई फिल्मों के लिए घोस्ट राइटिंग भी की। मतलब कहानी इन्होंने लिखी, लेकिन नाम किसी और का गया।
इस बारे में अनीस कहते हैं, ‘मैं उन फिल्मों का नाम नहीं लूंगा। यह बात सच है कि मैंने बहुत सारी फिल्मों के लिए घोस्ट राइटिंग की है। मुझे उस काम के लिए पैसे मिले थे। हालांकि 6-7 फिल्मों के लिए लिखने के बाद एक वक्त ऐसा भी आया कि मेरे सब्र का बांध टूट गया।’
स्वर्ग के पोस्टर्स पर अपना नाम लिखा, ट्रेलर काटने वाले एडिटर से लड़े बात है 1990 की। अनीस बज्मी ने राजेश खन्ना और गोविंदा स्टारर फिल्म स्वर्ग की पटकथा यानी स्क्रीनप्ले लिखी। फिल्म रिलीज होते ही हिट हो गई। अनीस को पहली बार लगा कि उनका नाम भी होना चाहिए। उन्होंने घूम-घूम कर फिल्म के पोस्टर्स पर अपना नाम लिख दिया। ऐसा एक जमाने में सलीम-जावेद किया करते थे। अनीस फिल्म का ट्रेलर काटने वाले एडिटर के घर रात के 3 बजे पहुंच गए थे। अनीस ने एडिटर से लड़ाई भी कर ली, क्योंकि उसने ट्रेलर में उनका नाम नहीं डाला था।
गोविंदा, डेविड धवन और अनीस ने मिलकर हिट फिल्मों की लाइन लगाई अनीस काफी सालों तक राइटिंग करते रहे। एक वक्त पर उनकी, गोविंदा और डेविड धवन की तिकड़ी ने एक से बढ़कर एक फिल्में दीं। शोला और शबनम, आंखें और राजा बाबू जैसी फिल्में इसकी उदाहरण हैं। काफी सालों तक राइटिंग करने के बाद अनीस डायरेक्शन में आ गए। उनका असली लक्ष्य डायरेक्शन करना ही था, राइटिंग तो बस एक जरिया मात्र था।
अजय देवगन को पर्दे पर निगेटिव दिखाने वाले पहले शख्स थे अनीस बज्मी आखिरकार 1995 में इन्होंने अपनी पहली फिल्म हलचल डायरेक्ट की। यह फिल्म उतनी खास नहीं रही। उनकी दूसरी फिल्म थी अजय देवगन और काजोल स्टारर प्यार तो होना ही था। यह फिल्म काफी हिट हुई। इसके बाद अनीस ने अजय देवगन के साथ ही फिल्म दीवानगी बनाई। इस फिल्म में अजय देवगन ग्रे शेड में देखे गए। अनीस बज्मी ही वो शख्स थे, जिन्होंने पहली बार अजय देवगन को निगेटिव रोल में दिखाया।
नो एंट्री के बाद एक सफल डायरेक्टर के तौर पर स्थापित हुए अब साल आया 2005 का। अनीस बज्मी ने सलमान खान, अनिल कपूर और फरदीन खान को लेकर फिल्म नो एंट्री बनाई। यह उस साल की सबसे बड़ी हिट रही। इस फिल्म ने अनीस को एक बड़े और प्रभावशाली डायरेक्टर के तौर पर इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया।
नो एंट्री की सफलता ने असीम को गजब का कॉन्फिडेंस दिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद 2007 में वेलकम, 2008 में सिंह इज किंग और 2011 में रेडी जैसी फिल्में रिलीज हुईं, जिनकी सफलता ने अनीस को कॉमेडी फिल्मों का बादशाह बना दिया।
रात-भर कहानियां लिखते थे, मां चाय लेकर खड़ी रहती थीं अनीस बज्मी अपनी मां और पिता दोनों से काफी क्लोज थे। वे कहते हैं, ‘मैं रात-रात भर स्टोरीज लिखता था। स्टोरीज लिखने के दौरान जब भी चाय पीने का मन होता था, मां हर वक्त केतली लिए खड़ी रहती थीं। अब चाहे वो रात के एक बजे हो या दो बजे, उन्हें बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता था।
वहीं पिताजी एक ऐसे शख्स थे, जिनकी वजह से मुझे लिखना आया। उन्होंने अगर कम उम्र में मुझे भाषा की तालीम नहीं दी होती तो आज आप मेरा इंटरव्यू नहीं ले रहे होेते।’
यह बात कहते हुए अनीस बज्मी भावुक हो गए और कैमरे के सामने रोने लगे..
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