नई दिल्ली8 मिनट पहलेलेखक: रोमेश साहू
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युवाल नोआह हरारी AI के दुनिया के सबसे बड़े जानकारों में से एक हैं। येरूशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और इतिहासकार हरारी ने एआई के कारण दुनिया कितनी तेजी से बदल रही है, इसपर दैनिक भास्कर के रोमेश साहू से खास बात की। पढ़िए बातचीत के मुख्य अंश…
1. आप AI को ‘एलियन इंटेलिजेंस’ कहते हैं?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तो एआई का शाब्दिक अर्थ है। लेकिन मैं इसे एलियन इंटेलिजेंस कहता हूं। क्योंकि आर्टिफिशियल का मतलब है, जिसे हम ही बनाएं और हम ही काबू में करें। लेकिन एआई की यही खूबी है कि यह खुद से सीख और लगातार बदलाव कर सकती है। एआई की एल्गोरिद्म खुद से खुद को विकसित कर रही है। अब एआई बनाने वाले इंजीनियर्स ही नहीं बता पा रहे कि ये किस आधार पर निर्णय ले रही है। एआई के जरिए असल में हम एक दूसरी प्रजाति तैयार कर रहे हैं, जैसे किसी दूसरे ग्रह के लोग!
2. एआई अपने शुरुआती दौर में है, इसक भविष्य कितना एडवांस रहने वाला है?
चैटजीपीटी या दूसरे एआई टूल्स को देखकर हम उत्साहित हैं। लेकिन यह तो बस शुरुआत है। रूपक के तौर पर हम सकते हैं कि एआई के मामले में हम अभी अमीबा हैं, डायनासोर का आना अभी बाकी है। अमीबा से डायनासोर और फिर इंसान तक आने की प्रक्रिया में अरबों सालों का समय लग गया। लेकिन एआई जिस रॉकेट की गति से विकसित हो रही है और इसे डायनासोर बनने में बस कुछ दशक ही लगेंगे। कोई नहीं जानता कि आने वाली 20 सालों में एआई की क्या ताकत सामने आने वाली है।
3. क्या एआई झूठ भी बोल सकता है?
हां, यही इसके सबसे बड़े खतरों में से एक है। ओपन एआई ने जब जीपीटी-4 लॉन्च किया, उसे टेस्ट करने के लिए, उन्होंने इसे कैपचा पहेली सुलझाने के लिए कहा। जीपीटी यह नहीं कर पा रहा था। शोधकर्ताओं ने इसे एक वेब पेज टास्करैबिट का एक्सेस दिया। जीपीटी ने एक व्यक्ति को यह झूठ कहकर अपना काम सौंप दिया कि वह दृष्टिहीन है। एल्गोरिद्म बनाने वाले इंजीनियर भी हैरान थे कि इसने खुद-ब-खुद झूठ बोलना कैसे सीख लिया।
हरारी की नई किताब ‘नेक्सस’ का हिंदी संस्करण मंजुल प्रकाशन प्रकाशित कर रहा है।
4. इससे चीजें कितनी बदल जाएंगी?
AI के ढेरों फायदे भी हैं। लेकिन डर है कि इंसान एआई का इस्तेमाल बुरे इरादों के लिए कर सकते हैं। क्योंकि यह पावरफुल टेक्नोलॉजी है। इससे दुनिया में असमानता बढ़ सकती है। जिन भी देशों के हाथ में एआई में विशेषज्ञता होगी, वे दुनिया पर राज करेंगे। मौजूदा स्थिति में एआई की रेस में दो ही देश आगे हैं, अमेरिका और चीन। इन दोनों के पास हद से ज्यादा मिलिट्री पावर होगी। शायद आने वाले 5 साल में एआई पूरी दुनिया की पारंपरिक सेना को पूरी तरह से अप्रचलित बना दे! कल जब पूरी तरह स्वचलित (ऑटोनोमस) हथियार होंगे, तो मौजूदा युद्धक विमान, जहाज, टैंक कबाड़ हो जाएंगे।
5. एक डर हमेशा रहता है कि एआई नौकरियां खत्म कर देगा?
हां, एआई से कई तरह की नौकरियां खत्म हो जाएंगी। क्या पता, कल को एआई मुझसे बेहतर किताब लिख दे। मेरी यूनिवर्सिटी में ज्यादातर शोधार्थियों से बेहतर जवाब जीपीटी लिख रही है। हालांकि एआई के बावजूद नौकरियां तो होंगी, लेकिन आपको नौकरियों के लिए खुद को लगातार बदलना और खुद को ट्रेन्ड करते रहना पड़ेगा। यही इंसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि हर दो-तीन साल में एक नया पेशा सीखना हम इंसानों के लिए बहुत मुश्किल काम है। इस मामले में आपकी मशीन से प्रतिस्पर्धा है और यही तनाव की वजह बनेगा।
6. स्मार्टफोन और सोशल मीडिया किस तरह इंसानों को प्रभावित कर रही है?
– मैं मोबाइल फोन बेहद कम चलाता हूं। इसका एक कारण प्राइवेसी भी है क्योंकि एआई के जरिए हम पर लगातार नजर रखी जा रही है। दूसरा कारण है कि मोबाइल हमारे निर्णय प्रभावित कर रहा है। एल्गोरिद्म हमारी कमजोरियों को सीख रही है कि कैसे हमारा ध्यान खींचे, कैसे हमें चीजें बेचे। जो लोग दिनभर मोबाइल फोन हाथ में लिए स्क्रॉल करते रहते हैं, उनका दिमाग उनके ही वश में नहीं रहता। मैं अपने दिमाग में किसी को घुसपैठ नहीं करने देता, पूरे समय सोशल मीडिया स्क्रॉल करते रहने के बजाय मैं किताबें पढ़ता हूं।
7. आप इससे किस तरह दूर रहते हैं?
– जैसे बहुत ज्यादा खाना, खासकर जंक फूड सेहत के लिए अच्छा नहीं है। इसी तरह बहुत सारी जानकारी दिमाग के लिए अच्छी नहीं है और सोशल मीडिया से हम यही जंक इंफॉर्मेशन ले रहे हैं। ज्यादा सूचनाएं मतलब ज्यादा नॉलेज नहीं है। खाना पचाने के लिए समय लगता है, इसी तरह सूचनाएं पचाने के िलए भी दिमाग को समय दें। मैं सूचनाओं को पचाने के लिए समय लेता हूं। सूचनाओं के मामले में लंबा उपवास (इंफॉरमेशन फास्ट) करता हूं। ताकि तमाम जंक सूचनाओं से दिमाग को डिटॉक्स कर सकूं। जैसे अभी मैंने एकसाथ कई सूचनाएं ग्रहण की, अब इनकी फास्टिंग करूंगा। इसके लिए मैं मुंबई में विपश्यना ध्यान के लिए जाऊंगा। मैं रोज 2 घंटे ध्यान भी करता हूं।
8. आप इजरायल से हैं, हमास के साथ चल रहे युद्ध का क्या हल हो सकता है?
इजराइल-फिलिस्तीन मामले में भी समस्या यही है कि दोनों देश एक-दूसरे के अस्तित्व को सिरे से नकार रहे हैं। शांति तभी होगी, जब दोनों तरह की सरकारें मान लें कि दूसरे पक्ष को भी जीने का और अस्तित्व का अधिकार है। जब हम ये दो सच्चाई स्वीकार कर लेंगे, इजराइल और फिलिस्तीन की समस्या खुद-ब-खुद सुलझ जाएगी।
9. इंसानों पर भरोसा करके ही समाधान निकलेगा…
AI विकसित करने से ज्यादा हमें एक-दूसरे इंसानों पर भरोसा करने पर ज्यादा निवेश करने की जरूरत है। एआई हम इंसानों के बीच शांति कायम नहीं कर सकता। हम एआई पर तो खूब निवेश कर रहे हैं लेकिन अपने ही दिमाग को विकसित करने और शांति के लिए कोई निवेश नहीं कर रहे। बड़ी कंपनियों के लीडर्स से बात करें, वे लोग टेक्नोलॉजी बनाने में खूब व्यस्त हैं। लेकिन भाईचारा, प्रेम आदि के लिए मन-मस्तिष्क को विकसित करने का उनके पास समय नहीं है।