Bhairava is an avtar of Lord Shiva., significance of kalbhairav ashtami in hindi, story of kalbhairav | शिव जी के अवतार हैं भैरव: कालभैरव अष्टमी आज, जानिए बटुक, आनंद और कालभैरव से जुड़ी खास बातें और पूजा विधि

7 घंटे पहले

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आज (12 नवंबर) अगहन (मार्गशीर्ष) मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी है। इस तिथि पर कालभैरव अष्टमी मनाई जाती है। मान्यता है कि पुराने समय में इसी तिथि पर भगवान शिव काल भैरव स्वरूप में प्रकट हुए थे। भैरव शिव जी के अवतार हैं, इसलिए देवी मां के प्राचीन मंदिरों में भैरव महाराज की भी प्रतिमा स्थापित है और भैरव पूजा के बिना देवी पूजा अधूरी मानी जाती है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, कालभैरव अष्टमी पर काल भैरव का विधिवत पूजन करना चाहिए। अगर समय अभाव हो तो कालभैरव को सिंदूर और चमेली के तेल चढ़ा सकते हैं। किसी पुजारी से कालभैरव का श्रृंगार करवा सकते हैं। भैरव को हार-फूल और भोग में इमरती चढ़ाना चाहिए। धूप-दीप जलाकर आरती करें। पूजा में ॐ कालभैरवाय नमः मंत्र का जप करें। पूजा के बाद कालभैरव के वाहन कुत्ते को भोजन कराएं।

कालभैरव अवतार की कहानी

पौराणिक कथा है कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश में यह विवाद हुआ कि हम तीनों में सर्वश्रेष्ठ कौन है। इस विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई। काफी विचार-विमर्श के बाद निर्णय आया कि शिव जी सर्वश्रेष्ठ हैं, क्योंकि इनकी इच्छामात्र से ही सृष्टि की रचना हुई है और शिव जी ही संहारक भी हैं। शिव और विष्णु, इस बात से सहमत हो गए, लेकिन ब्रह्मा जी इस निर्णय से असंतुष्ट थे।

ब्रह्मा जी ने अहंकार के कारण शिव का अपमान करने का प्रयास किया। इससे क्रोधित होकर शिव ने अपना भयंकर रूप धारण किया और कालभैरव अवतार प्रकट हुआ। काले कुत्ते पर सवार और हाथों में दंड लिए कालभैरव ने ब्रह्मा जी के एक सिर को काट दिया। ब्रह्मा जी ने भयभीत होकर क्षमा मांगी, तब भगवान भैरव शांत हुए। मान्यता है कि ये घटना अगहन मास की कृष्ण अष्टमी को हुई थी। इसी वजह से इस तिथि पर कालभैरव अष्टमी मनाई जाती है।

तीन गुणों के स्वामी हैं तीन भैरव

भगवान शिव तीन गुणों- सत्व, रज और तम के स्वामी हैं। इन्हीं तीन गुणों से सृष्टि का संचालन होता है। इन तीन गुणों के स्वामी के रूप भैरव के तीन स्वरूपों बटुक, आनंद और काल की पूजा की जाती है।

  • बटुक भैरव – सत्वगुणी और बाल स्वरूप

सत्व गुण यानी शुद्धता, ज्ञान, संतुलन, करुणा, पवित्रता और शांति। बटुक भैरव बाल स्वरूप है और इन सभी गुणों का प्रतीक है। बटुक भैरव की पूजा से भक्त को सुख-शांति, लंबी उम्र, अच्छी सेहत और मान-सम्मान मिलता है। बटुक भैरव की पूजा से नकारात्मक विचार दूर होते हैं।

  • आनंद भैरव – रजोगुणी स्वरूप

रज गुण यानी कर्म और इच्छाएं। आनंद भैरव स्वरूप रजोगुण से संबंधित हैं। मान्यता है कि देवी सती की दस महाविद्याओं में सभी दस देवियों के साथ भैरव की भी पूजा की जाती है। आनंद भैरव की पूजा से भक्त को सभी कर्मों में सफलता मिलती है और सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

  • काल भैरव – तमोगुणी और रक्षक स्वरूप

काल भैरव को समय (काल) का नियंत्रक कहा गया है। ‘काल’ शब्द का अर्थ है समय और भैरव का अर्थ है भय का नाश करने वाला। इसलिए इन्हें भय से मुक्त करने वाला और समय पर नियंत्रण रखने वाला देवता माना जाता है। कालभैरव की पूजा करने से भक्त को शत्रु पर विजय मिलती है, भय और संकट दूर होते हैं तथा दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल सकता है।

अब जानिए कालभैरव के कुछ खास प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में

  • श्री कालभैरव मंदिर, काशी (वाराणसी)

उप्र में काशी के इस मंदिर में स्थापित कालभैरव को काशी का कोतवाल कहते हैं। मान्यता है कि कालभैरव की अनुमति के बिना काशी विश्वनाथ के दर्शन का पूर्ण फल नहीं मिलता। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार 17वीं शताब्दी में हुआ था। मान्यता है कि यहां कालभैरव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।

  • कालभैरव मंदिर, उज्जैन

मप्र के उज्जैन में स्थित कालभैरव मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है। ये मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है, यहां कालभैरव को प्रसाद में शराब पिलाई जाती है। ये मंदिर तंत्र-मंत्र से जुड़े साधकों के लिए बहुत खास है।

  • श्री किलकारी बाबा भैरों नाथ मंदिर, नई दिल्ली

इस मंदिर की कथाएं महाभारत काल और पांडवों से जुड़ी हैं। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों ने की थी। पांडव भीम ने भैरवदेव की मूर्ति को स्थापित करने के लिए जमीन पर रखा था, भैरव बाबा ने वहीं किलकारी मारकर उन्हें यहां से उठाने के लिए मना कर दिया था। इस वजह से ये मंदिर किलकारी भैरव नाम से प्रसिद्ध हुआ।

  • आनंद भैरव मंदिर, हरिद्वार

उत्तराखंड के हरिद्वार में स्थापित मायादेवी शक्तिपीठ के पास आनंद भैरव मंदिर स्थित है। इन्हें हरिद्वार का कोतवाल कहते हैं। कालभैरव अष्टमी पर यहां काफी अधिक भक्त पहुंचते हैं।

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