Bhadrapada Amavasya on 23rd August, Pitru tarapan on 23rd August, kushgrahini amawasya significance in hindi, | तिथियों की घट-बढ़ के कारण 2 दिन रहेगी भाद्रपद अमावस्या: 22 और 23 अगस्त को भादौ अमावस्या, पितरों के लिए करें धूप-ध्यान और जल से करें तर्पण

6 घंटे पहले

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इस साल भादौ मास की अमावस्या दो दिन यानी 22 और 23 अगस्त को रहेगी। अमावस्या तिथि की शुरुआत 22 अगस्त की सुबह करीब 11.35 बजे होगी, ये तिथि 23 की सुबह 11 बजे तक रहेगी।

पितरों के लिए धूप-ध्यान 22 तारीख की दोपहर में करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा, क्योंकि दोपहर करीब 12 बजे के समय को कुतपकाल कहते हैं, इस समय में ही पितरों के लिए धूप-ध्यान, श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान करना शुभ रहता है। 23 की सुबह अमावस्या तिथि कुतपकाल से पहले 11 बजे ही खत्म हो जाएगी। इस दिन नदी स्नान और अमावस्या से जुड़े अन्य शुभ काम किए जा सकते हैं।

23 तारीख को शनिवार है और जब शनिवार को अमावस्या तिथि आती है तो इसे शनिश्चरी अमावस्या कहते हैं। भादौ मास की अमावस्या को पिठोरी और कुशग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, भादौ अमावस्या को पितरों के लिए धर्म-कर्म करने के लिए बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि इसके करीब 15 दिन बाद से पितृ पक्ष शुरू हो जाता है। इस साल 8 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो जाएगा, इससे पहले 7 सितंबर को पूर्णिमा से जुड़े श्राद्ध कर्म किए जाएंगे। अब जानिए भादौ अमावस्या पर पितरों से जुड़े धर्म-कर्म कैसे कर सकते हैं…

शास्त्रों में लिखा है कि- पितृ तर्पणं यज्ञरत्नं पुण्यकर्मणां शाश्वतम्।

यः कुर्यात्पितृभक्त्या स तं मृत्युभयं न हन्यात्।।

इस श्लोक का अर्थ ये है कि जो व्यक्ति पितरों की सेवा और तर्पण करते हैं, उन्हें असमय मृत्यु का भय नहीं सताता है। पितरों की सेवा और तर्पण करने से पितरों की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

ऐसे कर सकते हैं पितरों के लिए धूप-ध्यान

  • धूप-ध्यान का अर्थ है ध्यान लगाना और धूप प्रज्वलित करना। ये पितृ अमावस्या पर किया जाने वाला एक विशेष अनुष्ठान है। शास्त्रों में धूप को पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक माना गया है।
  • धूप-ध्यान करने से अशांति दूर होती है, एकाग्रता बढ़ती है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। ध्यान करने से अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और प्रेम की भावना बनी रहती है।
  • अमावस्या की दोपहर में गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और जब कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़-घी अर्पित करें। इस दौरान पितरों का ध्यान करते रहें। गुड़-घी के साथ ही खीर-पुड़ी भी अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद हथेली में जल लें और अंगूठे की ओर से पितरों को चढ़ाएं, पितरों को जल चढ़ाने को ही तर्पण करना कहते हैं।
  • शांति मंत्र- ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः, पितर देव का मंत्र ऊँ पितृदेवेभ्यो नम: का जप करें। शास्त्रों में कहा गया है कि धूप-ध्यान से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।

अमावस्या पर नदी स्नान के बाद भी कर सकते हैं तर्पण

  • अमावस्या पर किसी नदी में स्नान करें और स्नान के बाद हथेली में जल लें। जल में काले तिल और जौ रखें। पूर्वजों के नाम स्मरण करते हुए अंगूठे की ओर से पितरों को जल अर्पित करें। मंत्र ऊँ पितृदेवेभ्यो नम: का उच्चारण करें।
  • इस दिन पिंडदान भी कर सकते हैं। पिंडदान में पिंड के रूप में चावल और तिल से बने पदार्थ अर्पित किए जाते हैं।
  • अमावस्या पर दान देना भी शुभ माना जाता है। इस दिन तिल, काले कपड़े, धन या अन्नदान करें। गरीबों को भोजन कराने से पितृ प्रसन्नता प्राप्त होती है।

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