बीस वर्षीय रितु (बदला हुआ नाम) की पीड़ा से पूरा घर बेचैन रहता है। घर के इस कमरे में रितु 8 वर्षीय बेटी के साथ रहती है। उम्मीद यह कि किसी की दरिंदगी में खुद का बचपन तो भस्म हो गया, लेकिन बेटी की कोई खुशी न छिने। कहती हैं- सोचा था कि समय के साथ सब भूल ज
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बेटी का जन्म प्रमाण-पत्र नहीं है, न आधार जैसा कोई सरकारी दस्तावेज। …क्योंकि हर दस्तावेज के लिए पिता का नाम पूछा जाता है। मेरी मां मेरे साथ दुष्कर्म की बात छिपाना चाहती है। वे मेरी बेटी को अपना नाम देना चाहती हैं, लेकिन सरकारी नियम आड़े आते हैं। अप्रैल 2016 के बाद से रितु ने खुद को घर में बंद कर रखा है। जब वह 11 साल की ही थी। शेष | पेज 9
8 साल की बेटी को भाई के साथ ही बाहर भेजती है। रितु की मां बेटी के जन्म के तुरंत बाद से सारे दस्तावेज बनवाने में जुट गई, अब तक कोई दस्तावेज नहीं बन पाया। हर जगह पिता का नाम मांगा जाता है, रितु की इज्जत और भविष्य की चिंता में मां गंगादेवी दुष्कर्म का कहीं जिक्र नहीं करती।
दोहिती को स्कूल में पढ़ाने के लिए भी जान-पहचान से दाखिला कराया, लेकिन यह भी ज्यादा समय तक नहीं चल पाएगा। नियम के अनुसार पीड़िता को मुआवजा मिलना चाहिए, लेकिन रितु को वो भी अब तक नहीं मिला। हमेशा कोई ना कोई कागज की कमी या गलती बताकर लौटा देते हैं। अधिवक्ता ममता नायर बताती हैं- राजस्थान विधानसभा की एक रिपोर्ट के अनुसार 2012 से जुलाई 2023 तक दुष्कर्म पीड़िता को मुआवजे के 60,885 आवेदन पत्र लंबित हैं।
दुष्कर्मी जमानत पर छूट चुका, उसकी शादी हो चुकी, पीड़िता अब 20 साल की, बेटी उसे दीदी कहती है
मां अपनी और बेटी की बेदाग पहचान के साथ नई जिंदगी की उम्मीद रखती है…
कॉलेज जाने की उम्र में रितु बेटी संभाल रही हैं। प्रसव के एक साल बाद तक इलाज चला। काउंसलिंग के कई सेशन हुए। अब रितु अपनी बेटी को और रितु की मां अपनी बेटी व दोहिती को बेदाग पहचान दिलाना चाहती हैं।
बेटी को पता नहीं कि दीदी ही उसकी मां है
8 साल की बच्ची कहती है- दीदी बाहर नहीं निकलती। मेहमान आते हैं तो छिप जाती है। मैं चाहती हूं हम दोनों डॉक्टर बनें। आसपास के लोग कहते हैं कि दीदी ही मेरी मां है, लेकिन मैं जानती हूं कि वो दीदी हैं।
दुष्कर्म पीड़िता और उसके बच्चे को सम्मानजनक जिंदगी देने वाला कानून चाहिए
कानून है- एकल मां अपनी संतान को जन्म दे सकती है और उसे किसी को भी यह बताने की जरूरत नहीं है कि उस संतान का पिता कौन है। जन्म प्रमाण पत्र में बच्चे की माता सिर्फ अपना नाम लिखा सकती है। पिता का नाम नहीं बताना चाहती हैं तो उसे बाध्य नहीं किया जा सकता।
लेकिन… दुष्कर्म पीड़ित मां कच्ची उम्र की हो और परिजन उसका विवाह कर नई जिंदगी देना चाहते हों, साथ ही दुष्कर्म से जन्मे बच्चे को अपना नाम देना चाहते हों तो भारत में ऐसा कानून नहीं है। सिंगल पैरेंटिंग की तरह नाना-नानी या परिवार के नाम की पहचान का कानून होना चाहिए।
“बदनामी से बचाना होगा- 12 साल की रितु मां बन गई। दुष्कर्मी जेल से छूटकर शादी कर चुका…। ऐसे मुश्किल से 1% मामले होते हैं, जहां कम उम्र की मां बच्चे को साथ रखने का निर्णय ले। रितु की मां सरकारी दस्तावेज में दोहिती को अपनी बेटी का दर्जा चाहती है, ताकि बेटी-दोहिती का सम्मान बचा सके, अच्छी जिंदगी दे सके, मगर ऐसा कानून ही नहीं है।”
-विजय गोयल, सामाजिक कार्यकर्ता