19 मिनट पहले
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बांग्लादेश इन दिनों शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद सुर्खियों में है। शेख हसीना ही वो शख्सियत हैं जिन्होंने बांग्लादेश में हिंदी फिल्मों की रिलीज की राह खोली थी। दरअसल, बांग्लादेश ने 1971 में भारतीय फिल्मों की रिलीज पर बैन लगा दिया था।
इस बैन को हटाने का काम शेख हसीना ने 2023 में किया क्योंकि वहां की फिल्म इंडस्ट्री बेहद खस्ताहाल स्थिति में थी। बैन हटने के 51 साल बाद शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ बांग्लादेश में रिलीज होने वाली पहली फिल्म थी।
बांग्लादेशी फिल्म इंडस्ट्री की बात करें इसे ढालीवुड कहते हैं। इस इंडस्ट्री की फिल्म कैपिटल ढाका है। इंडिया में जहां हर साल औसतन 2000 फिल्में बनती हैं वहीं, बांग्लादेश में साल भर में 70-100 फिल्में ही बन पाती हैं।
90 के दशक में तो वहां हर फिल्म हिंदी फिल्मों की कॉपी हुआ करती थी। दर्शकों को सिनेमाघरों में खींचने के लिए साल 2000 के बाद फिल्ममेकर्स ने अश्लील फिल्मों का सहारा भी लिया जिससे फिल्म इंडस्ट्री हाशिए पर आ गई और इससे अब तक नहीं उबर पाई है।
जानते हैं कि बांग्लादेश की फिल्म इंडस्ट्री अब तक किन-किन उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरी है…
बांग्लादेश में बंद हो चुके 1000 से ज्यादा थिएटर
बांग्लादेश की सरकार ने आजादी के बाद 1972 में ये फैसला किया कि वो कोई भी विदेशी फिल्म अपने देश में नहीं चलने नहीं देंगे। सरकार के फैसले के पीछे ये तर्क था कि इससे वहां की लोकल फिल्मों को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि ये फैसला उल्टा पड़ गया।
80-90 के दौर में बांग्लादेश में ऐसी फिल्में बन ही नहीं पाईं जो ऑडियंस को एंटरटेन कर पाएं। उस दौर में ढालीवुड में नकल करने का चलन जोरों पर था। लगभग हर दूसरी फिल्म हिंदी फिल्मों से कॉपी करके बना दी जाती थी। प्रोड्यूसर्स बस ये चाहते थे कि थिएटरों में बांग्ला फिल्में चलती रहें।
90 के दशक में बांग्लादेश में करीब 1500 सिनेमा हॉल थे, लेकिन घिसी-पिटी बांग्ला फिल्मों के कारण ऑडियंस ने थिएटर में जाना बंद कर दिया।
मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में पिछले 20 सालों से 1000 से ज्यादा थिएटर्स पर ताला लगा है। अधिकतर सिनेमाहॉल मालिकों ने अपने थिएटर को शॉपिंग सेंटर या अपार्टमेंट में तब्दील कर लिया। ऐसे में साल 2000 आते-आते मेकर्स के सामने ये संकट हो गया कि वो फिल्मों की तरफ जनता का ध्यान कैसे खींचें।
अपने तीन साल के फिल्मी करियर में सलमान शाह ने 27 फिल्मों में काम किया था।
जब बांग्लादेश के पहले सुपरस्टार ने कर लिया सुसाइड
1993 के बाद बांग्लादेशी फिल्म इंडस्ट्री को संभलने का एक मौका फिल्म स्टार सलमान शाह के जरिए मिला। सलमान की डेब्यू फिल्म ‘कीमत थेके कीमत’ थी जो की हिंदी फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ की रिमेक थी। फिल्म सुपरहिट रही और सलमान चमक गए। इसके बाद उन्हें बैक टु बैक कई फिल्में मिलीं। 1994 में उनकी 6 फिल्में रिलीज हुईं जिनमें से ज्यादातर हिट साबित हुईं। देखते ही देखते सलमान को बांग्लादेशी फिल्मों का पहला सुपरस्टार कहा जाने लगा।
फैंस के बीच उनकी दीवानगी जबरदस्त थी और एकमात्र सलमान ही थे जो दर्शकों को थिएटर तक खींचने का दमखम रखते थे। फैंस के बीच सलमान ‘प्रिंस ऑफ ढालीवुड’ के नाम से जाने जाते थे। 1996 में उनकी बैक टु बैक नौ फिल्में रिलीज हुई थीं जिससे सिनेमाघरों में दोबारा जान आने लगी थी।
तभी केवल 24 साल की उम्र में सलमान शाह की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। उनकी लाश उनके अपार्टमेंट के पंखे से लटकी हुई मिली थी। पुलिस ने जांच में खुलासा किया कि शाह ने सुसाइड किया था।
अश्लील फिल्मों ने तबाह की फिल्म इंडस्ट्री
सलमान शाह की डेथ के बाद ऑडियंस का सिनेमाघरों से जैसे मोह भंग हो गया। साल 2000 आने तक थिएटर मालिकों और प्रोड्यूसर्स ने चीप हथकंडा अपनाया जिससे बांग्लादेशी सिनेमा के पतन की शुरुआत हुई। दरअसल, मेकर्स ने अश्लील फिल्मों के जरिए दर्शकों का ध्यान खींचने की कोशिश की। इसे बांग्लादेशी सिनेमा के इतिहास में ‘कट पीस एरा’ कहा गया जिसने फिल्म इंडस्ट्री को तहस-नहस कर दिया।
बांग्लादेश में वल्गर फिल्मों की शुरुआत 1999 में आई फिल्म ‘रंगा बाऊ’ से हुई। इसमें रितुपर्णो सेनगुप्ता, अमीन खान और हुमायूं फरीदी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इसके डायरेक्टर मोहम्मद हुसैन थे। फिल्म में कई रोमांटिक सींस और वल्गर डांस मूव्स दिखाए गए थे। प्रोड्यूसर्स को भरोसा था कि इससे लोग सिनेमाघर का रुख करेंगे और डूबते फिल्म बिजनेस में जान आ जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये सब कुछ पावरफुल पॉलिटिशियन्स की रजामंदी से हुआ करता था।
बांग्लादेश में हर दूसरी फिल्म इसी तरह की बनने लग गई और बीच-बीच में इनमें पोर्न फिल्मों की क्लिप्स भी डाल दी जाती थी ताकि दर्शक थिएटर बीच में छोड़कर न जाएं। उस दौर में मयूरी, नॉडी, एलेक्सेंडर बो, मेहंदी, मुनमुन अश्लील फिल्मों के बड़े स्टार बन चुके थे। इस दौर को ‘डार्क ऐज ऑफ बांग्लादेशी सिनेमा’ करार दिया गया।
2007 में बंद हुईं अश्लील फिल्में
थिएटरों में बांग्लादेशी फिल्मों की जगह अश्लील फिल्मों ने ले ली। इनसे बांग्लादेशी सिनेमा को बेहद नुकसान हुआ जिससे उबरने के लिए 2003 में अश्लील फिल्मों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ।
एक्टर्स ने फिल्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के सामने प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। नतीजतन सरकार के दखल से आखिरकार 2007 तक बांग्लादेशी सिनेमा अश्लील फिल्मों के चंगुल से मुक्त हुआ।
ओरिजिनल फिल्मों की कमी से गहराई मुश्किल
बांग्लादेश में 80 के दशक में इंडियन फिल्मों को कॉपी करने का जो चलन शुरू हुआ वो आज तक जारी है। चंद फिल्ममेकर्स को छोड़ दिया जाए तो आज भी बांग्लादेश में ओरिजिनल फिल्में बनाने वालों की संख्या बेहद कम है। यही वजह है कि 90 के दशक से ही ये फिल्म इंडस्ट्री हाशिए पर आ गई थी। पिछले दस-पंद्रह सालों में ‘अयंबाजी’, ‘मोनपुरा’, ‘ढाका अटैक’ जैसी फिल्में ही हैं जो कि ओरिजिनल मानी जाती हैं। यही वजह है कि बांग्लादेशी ऑडियंस ने इन्हें सराहा और इन्हें देखने के लिए सिनेमाघरों का रुख भी किया।
शेख हसीना ने दिया 700 करोड़ का फंड
बांग्लादेशी फिल्म इंडस्ट्री को शुरुआत में सरकार का सहयोग नहीं मिला था। इस फिल्म इंडस्ट्री को अनाथ कहा जाता था। हालांकि शेख हसीना के 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद स्थिति काफी सुधरी थी।
सबसे पहले 2001 में फिल्म सेक्टर को इंडस्ट्री का दर्जा दिया गया। इसके साथ ही बांग्लादेश फिल्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (BFDC) की स्थापना भी की गई। काफी समय से सरकार हर साल कुछ फिल्मों के लिए अनुदान भी देती है।
पिछले साल ही शेख हसीना ने फिल्ममेकर्स से गुजारिश की थी कि वो अच्छा सिनेमा बनाने पर फोकस करें। दरअसल, सिनेमा की खराब हालत को देखते हुए प्रोड्यूसर्स फिल्मों में पैसा ही नहीं लगाना चाहते हैं जिसकी वजह से बांग्लादेश में फिल्मों के भविष्य पर संकट और ज्यादा गहराता जा रहा है।
शेख हसीना ने 2022 में देश में सिनेमाघरों की स्थिति सुधारने और नए मल्टीप्लेक्स बनाने के लिए 700 करोड़ रुपए का फंड देने की भी घोषणा की थी।
शेख हसीना ने हटाया था हिंदी फिल्मों से बैन
1972 में भारतीय फिल्मों की रिलीज पर बांग्लादेश में बैन लगा दिया गया था ताकि वहां लोकल इंडस्ट्री को बढ़ावा मिले और रोजगार भी बढ़े। हालांकि कई बार नियमों को बदलकर हिंदी फिल्मों की रिलीज की गई लेकिन ये नाकाम साबित हुई। 2009 में आमिर खान की ‘थ्री इडियट्स’ और 2010 में शाहरुख खान की ‘माय नेम इज खान’ तक को बांग्लादेश में रिलीज किया गया लेकिन इन्हें स्थानीय सिनेमा संगठनों के विरोध के चलते सिनेमाघरों से हटाना पड़ा।
2009 में सलमान खान की फिल्म ‘वांटेड’ इंडिया में रिलीज हुई थी। 2015 में इसे भी बांग्लादेश में रिलीज किया गया था। हालांकि कुछ लोकल सिनेमा संगठनों ने फिल्म की रिलीज को लेकर विरोध कर दिया। तब ‘वांटेड’ को उन 50 थिएटर्स से हटा लिया गया, जिनमें वो एक हफ्ते से चल रही थी।
इसके आठ साल बाद 2023 में बांग्लादेशी सिनेमा की खराब हालत को देखते हुए शेख हसीना ने यहां विदेशी फिल्मों की रिलीज पर लगे बैन को हटा ही दिया। बांग्लादेश सरकार ने निर्णय लिया कि देश में 10 विदेशी फिल्मों को कॉमर्शियली रिलीज किया जाएगा।