Bangladesh elections threatened to be postponed due to military conflict | बांग्लादेश में टल सकता है फरवरी का चुनाव: 15 अफसरों की गिरफ्तारी से सेना में गुस्सा; इस्लामी पार्टी बोली- बिना सुधार चुनाव नहीं


ढाका21 मिनट पहले

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बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस। (फाइल) - Dainik Bhaskar

बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस। (फाइल)

बांग्लादेश में अगले साल फरवरी में होने वाले आम चुनाव पर संदेह मंडरा रहा है। राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा और सेना में हलचल के कारण चुनाव की तैयारी रुक सी गई है।

एक तरफ अवामी लीग (शेख हसीना की पार्टी) पर प्रतिबंध लगा हुआ है। दूसरी ओर विपक्षी बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) की तैयारी के बीच जमात-ए-इस्लामी ने ‘बिना सुधार चुनाव नहीं होने देने’ की चेतावनी दी है। वहीं अब संकट सत्ता से निकलकर सेना तक पहुंच गया है।

अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल के आदेश पर 15 वरिष्ठ सैन्य अफसरों की गिरफ्तारी ने सेना के भीतर हलचल मचा दी है। ढाका कैंटोनमेंट के अंदर स्थित एमईएस बिल्डिंग-54 को अस्थायी जेल घोषित किया गया है, जहां इन अफसरों को रखा गया है।

सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान का कार्यकाल अगले साल खत्म होना है, और सरकार उनके कार्यकाल में कोई बड़ा टकराव नहीं चाहती। लेकिन हालात अब नियंत्रण से बाहर होते दिख रहे हैं, और फरवरी का चुनाव फिलहाल अधर में अटका है।

साल 2025 की शुरुआत में युनूस ने कहा था कि बांग्लादेश में 2025 के अंत या 2026 की पहली छमाही तक चुनाव कराए जा सकते हैं।

साल 2025 की शुरुआत में युनूस ने कहा था कि बांग्लादेश में 2025 के अंत या 2026 की पहली छमाही तक चुनाव कराए जा सकते हैं।

अवामी लीग पर बैन से सरकार पर अब दबाव बढ़ा

बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टी अवामी लीग का पंजीकरण चुनाव आयोग ने मई 2025 में निलंबित कर दिया था। शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी और राजनीतिक गतिविधियों पर रोक के बावजूद पार्टी सड़कों पर रैलियां कर रही है।

सरकार का दावा है कि ‘अवामी लीग अप्रासंगिक हो चुकी है’, पर जमीनी हकीकत अलग है। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का कहना है ऐसे माहौल में चुनाव एकतरफा रहेंगे। सरकार पर अब विपक्ष को मौका देने का बाहरी दबाव बढ़ रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पर चुनाव आयोग ने बैन लगा रखा है।

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पर चुनाव आयोग ने बैन लगा रखा है।

हिंसा और दंगे नहीं थम रहे, मतदान पर खतरा

बांग्लादेश में पिछले 10 महीनों में 253 भीड़ हमले हुए, जिनमें 163 मौतें और 312 लोग घायल हुए। साथ ही धार्मिक हिंसा बढ़ी है। स्थलों (मंदिरों, मस्जिदों) पर हमले बढ़े हैं, खासकर हिंदू अल्पसंख्यकों पर।

गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि ‘देश में कानून-व्यवस्था चरमरा चुकी है’। ढाका, चिटगांव और सिलेथ में लगातार झड़पें हो रही हैं।

बांग्लादेश पुलिस और रैपिड एक्शन बटालियन को कई बार सेना की मदद लेनी पड़ी। ऐसे हालात में निष्पक्ष मतदान कराना कठिन ही नहीं, ऐसे में चुनाव सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।

राजनीतिक सहमति की कमी, जुलाई चार्टर पर विवाद

जुलाई 2024 की क्रांति से निकला “जुलाई नेशनल चार्टर” (लोकतंत्र, सुधार और समावेश) को कानूनी मान्यता देने की मांग तेज है। जमात-ए-इस्लामी, एनसीपी (नेशनल सिटिजन पार्टी), इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश जैसे दल कहते हैं बिना चार्टर लागू किए चुनाव नहीं लड़ेंगे।

एनसीपी इसे लोकतंत्र की न्यूनतम शर्त बताता है। दूसरी ओर, बीएनपी का कहना है कि ‘चुनाव की तैयारियां पूरी हैं’। राजनीतिक सहमति के बिना होने वाला यह चुनाव बांग्लादेश के लोकतंत्र को और गहरे संकट में डाल सकता है।

मुख्य मांगें:

  • आनुपातिक प्रतिनिधित्व (PR) प्रणाली: वोट के आधार पर सीटें बांटना, खासकर संसद के ऊपरी सदन (नया प्रस्तावित) में। निचले सदन में बीएनपी विरोधी है।
  • रेफरेंडम: नवंबर 2025 में जनमत संग्रह से चार्टर को संविधान में शामिल करना।
पिछले 10 महिनों में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं।

पिछले 10 महिनों में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं।

बांग्लादेशी सेना दो गुटों में बंटी

अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल (ICT) के आदेश पर 15 वरिष्ठ सैन्य अफसरों को गिरफ्तार किया गया। इनपर हसीना शासन में जबरन गुमशुदगी और यातना करने का आरोप था। इन्हें ढाका कैंटोनमेंट की MES बिल्डिंग-54 में अस्थायी जेल में रखा गया है।

अफसरों पर कार्रवाई के बाद सेना के भीतर गुटबंदी खुलकर सामने आ गई है। एक ग्रुु, जिसे ‘जनरल रहमान ग्रुप’ कहा जा रहा है, सरकार के साथ खड़ा है और मानता है कि सेना को ‘राजनीतिक स्थिरता के लिए’ सरकार के फैसलों का पालन करना चाहिए।

दूसरा ग्रुप, जिसकी अगुवाई ‘मेजर जनरल आरिफ चौधरी’ कर रहे हैं, सेना को राजनीति से अलग रखने की मांग कर रहा है। यही गुट सेना प्रमुख पर सवाल उठा रहा है कि उन्होंने अफसरों की गिरफ्तारी में दखल क्यों नहीं दिया।

सेना में दो गुट:

  • ‘जनरल रहमान ग्रुप’: सरकार समर्थक, मानता है सेना को राजनीतिक स्थिरता के लिए सरकार का साथ देना चाहिए।
  • मेजर जनरल आरिफ चौधरी गुट’: सेना को राजनीति से दूर रखने की मांग। वे पूछ रहे हैं कि सेना प्रमुख ने गिरफ्तारियों में हस्तक्षेप क्यों नहीं किया।

बांग्लादेश में भारत के लोकसभा चुनाव जैसी ही चुनावी प्रक्रिया

बांग्लादेश में भी भारत के लोकसभा चुनाव जैसी ही चुनावी प्रक्रिया है। यहां संसद सदस्यों का चुनाव भारत की तरह ही फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली के जरिए होता है। यानी जिस उम्मीदवार को एक वोट भी ज्यादा मिलेगा, उसी की जीत होगी।

चुनाव परिणाम आने के बाद सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन के सांसद अपने नेता का चुनाव करते हैं और वही प्रधानमंत्री बनता है। राष्ट्रपति देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाते हैं।

यहां की संसद में कुल 350 सीटें हैं। इनमें से 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों पर चुनाव नहीं होता, जबकि 300 सीटों के लिए हर पांच साल में आम चुनाव होते हैं। भारत की संसद में लोकसभा के अलावा राज्यसभा भी होती है, लेकिन बांग्लादेश की संसद में सिर्फ एक ही सदन है।

बांग्लादेश की संसद को ‘जातीय संसद’ या हाउस ऑफ द नेशन कहा जाता है। इसकी नई बिल्डिंग 15 फरवरी 1982 में तैयार हुई।

बांग्लादेश की संसद को ‘जातीय संसद’ या हाउस ऑफ द नेशन कहा जाता है। इसकी नई बिल्डिंग 15 फरवरी 1982 में तैयार हुई।

बांग्लादेश में सरकार का मुखिया कौन होता है?

भारत की तरह ही बांग्लादेश में भी प्रधानमंत्री ही सरकार के मुखिया होते हैं। राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है, जिसका चुनाव राष्ट्रीय संसद द्वारा किया जाता है। बांग्लादेश में राष्ट्रपति सिर्फ एक औपचारिक पद है और सरकार पर उसका कोई वास्तविक नियंत्रण नहीं होता है।

1991 तक राष्ट्रपति का चुनाव यहां भी सीधे जनता करती थी, लेकिन बाद में संवैधानिक बदलाव किया गया। इसके जरिए राष्ट्रपति का चुनाव संसद द्वारा किया जाने लगा। शेख हसीना 20 साल तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं थीं।

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