हरिद्वार14 मिनट पहले
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हमारा एक बाहर का व्यक्तित्व है और दूसरा सूक्ष्म व्यक्तित्व है। सूक्ष्म व्यक्तित्व में हम अपनी वाणी, व्यवहार के साथ-साथ अपने संकल्प, भावना, संवेदनाओं के साथ जीते हैं। हमें सूक्ष्म व्यक्तित्व को भी उजागर करना चाहिए। दूसरों से स्नेह रखें और सहानुभूति के साथ रहें। दूसरों के दुर्गुणों पर ध्यान न दें। दूसरों को क्षमा करें। अपने भीतर कोई बुराई नहीं होनी चाहिए, तभी हमारा व्यक्ति सुधर सकता है।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए दूसरों की किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?
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