हरिद्वार4 मिनट पहले
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मौन रहना एक तप की तरह है। मौन से हमारी शक्तियां जागती हैं, ऊर्जा बढ़ती है और हमारे आसपास दिव्यता का वातावरण बन जाता है। मौन तप है, लेकिन हमारा बोलना भी एक कला है। कुछ लोग केवल मौन रहते हैं और कुछ लोग बोलकर बड़े काम कर लेते हैं। जरूरत के समय भी चुप रहना, दूसरों की प्रशंसा न करना, किसी की अच्छी बातों का समर्थन न करना, ये सही नहीं है। अच्छा बोलना सीखें।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए हमारी बोली में कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
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