हरिद्वार12 मिनट पहले
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हमें विनयशील, सरल और निर्दोष बनना चाहिए। यही हमारा मूल स्वभाव है। इन गुणों की वजह से ही अन्य लोग हमारी ओर आकर्षित होते हैं, हमें स्नेह करते हैं। विद्या हमें विनय देती है। जब हमारे जीवन में विद्या आती है तो हम विनयशील बनते हैं, हम झुकना सीखते हैं। हमारा विनय ही धन पाने के लिए और ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए सहायक बनता है। जब हमारे अंदर अच्छे गुण आने लगते हैं, तब सभी हमें अपनाना शुरू कर देते हैं।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए परमात्मा को क्या प्रिय है?
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