7 मिनट पहले
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शुभ कर्म मूल पूंजी है और अच्छे काम ही सत्ता, सुख, विद्या और ऐश्वर्य के बीज हैं। इसलिए सदैव शुभ कर्म करते रहें। शुभ कर्मों का अर्थ है दूसरों के प्रति सेवा की भावना, दूसरों के दुर्गुण और दोष पर ध्यान न देना। जहां सद्गुण हैं, शुभता और प्रियता है, वहां रहें। भाषा में सकारात्मक भाव लाएं। हम किसी के उस पक्ष को न देखें, जहां दुर्गुण हैं, हमेशा कुछ अच्छा देखें। आशावादी शब्दों का प्रयोग करें।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए लक्ष्य की ओर कैसे बढ़ सकते हैं?
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