हरिद्वार32 मिनट पहले
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शुभ कर्म ही हमारी मूल पूंजी है। शुभ कर्म यानी दूसरों की सेवा करना और अपनी बुराइयां दूर करना। सदगुण, शुभता, आशावादिता और दिव्यताओं का स्मरण करते रहना चाहिए। हमें हर स्थिति में आशावादी रहना चाहिए। दूसरों की बुराइयां न देखें। अच्छा देखें, अच्छा सुनें और अच्छा बोलें। आशावादी रहेंगे तो मुश्किल समय में भी लक्ष्य पूरे हो सकते हैं।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए हम आशावादी कैसे बनें?
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