10 मिनट पहले
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आध्यात्मिक यात्रा में लाभ-हानि, जय-पराजय, यश-अपयश जैसी बातों का कोई महत्व नहीं है। आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए ये बहुत छोटी बातें हैं, ऐसे लोग किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं। अध्यात्म के क्षेत्र में व्यक्ति अपनी उन्नति के लिए और आत्म जागरण के लिए बहुत गंभीर रहता है, साधक किसी से जलता नहीं है। जनल की भावना सामान्य लोगों में होती है। हमें किसी से प्रतिस्पर्धा करनी हो तो वह स्वस्थ होनी चाहिए और दूसरों के प्रभाव में आने से बचना चाहिए।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए हमारा स्वभाव कैसा होना चाहिए?
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