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- Avdheshanand Giri Maharaj Life Lesson. To Be Human Is Not Just To Be A Social Being, But To Be Rich In Infinite Possibilities.
हरिद्वार4 घंटे पहले
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मनुष्य होने का अर्थ केवल सामाजिक प्राणी होना नहीं, बल्कि अनंत संभावनाओं का धनी होना है। हमारे शास्त्र कहते हैं कि हम अमृत की संतानें हैं, ईश्वरत्व हमारी नियति है। “ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति” – जो ब्रह्म को जानता है, वही ब्रह्म हो जाता है। मनुष्य का अस्तित्व विराट, अनंत और दिव्यता से परिपूर्ण है। शिव, विष्णु जैसे परम सत्ता के स्वरूप को अनुभव कर हम स्वयं उसी में रूपांतरित हो सकते हैं। यह हमारी सांस्कृतिक दृष्टि है, जिसमें मनुष्य आत्मा नहीं, परमात्मा बनने की यात्रा पर है, यह जीवन का वास्तविक अर्थ है।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए जीवन में परमानंद कैसे मिलता है?
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