हरिद्वार2 मिनट पहले
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सेवा करना हमारी सनातन संस्कृति का संदेश है। हमारी संस्कृति सेवा से ही प्रकट होती है। सेवा व्यक्ति को सुख-शांति प्रदान करती है। सेवा करने से हमारा अहंकार दूर होता है। इसलिए शास्त्र कहते हैं कि सेवा परम धर्म है। इससे हमारे भीतर गुण, श्रेष्ठताएं, दिव्यताएं उजागर होती हैं। ये ऐसा कर्म है जो भगवान को प्रिय है। भगवान स्वयं उदार हैं, वो बिना कारण पवन, प्राण, प्रकाश और आकाश के रूप में सभी जीवों में बंट रहे हैं।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए सबसे बड़ा व्रत कौन सा है?
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