हरिद्वार13 मिनट पहले
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मन, वचन, कर्म में पवित्रता और एकता बनाए रखना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। हमारे शास्त्र कहते हैं कि मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम् यानी हमें मन, वचन, कर्म से हम एक रहना चाहिए। हमारे विचार पवित्र रहें। हमारे संकल्प शुभ हों और हम निरंतर अच्छे काम करते रहें। तभी जीवन में सुख-शांति आती है।
आज जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में जानिए हमें आत्म जागरण की दिशा में क्या करना चाहिए?
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