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16 घंटे पहले
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आज (27 अक्टूबर) कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी छठ पूजा है, इस तिथि पर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। छठ पूजा पर्व चार दिनों का होता है। पहले दिन नहाय-खाय (25 अक्टूबर) और दूसरे दिन खरना (26 अक्टूबर) के बाद आज छठ पूजा का तीसरा दिन है। इसे संध्या अर्घ्य या संध्या घाट पूजा भी कहते है। छठी माता को सूर्य देव की बहन माना जाता है। मान्यता है कि छठ पूजा व्रत से भक्त के घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और संतान को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
छठ पूजा पर्व में तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। महिलाएं किसी नदी, तालाब या पोखर के जल में खड़े होकर अस्त होते सूर्य देव और छठी माता को जल चढ़ाती हैं। बांस के सूप में ठेकुआ, मौसमी फल रखती हैं, गन्ना और अन्य प्रसाद सूर्य को अर्पित करती हैं।
छठ पूजा व्रत में भक्त करीब 36 घंटे निर्जल रहकर व्रत करते हैं। षष्ठी तिथि पर प्रसाद में ठेकुआ बनाते हैं। शाम को सूर्य पूजा करने के बाद भी रात में व्रत करने वाला निर्जल रहता है। चौथे दिन यानी सप्तमी तिथि (28 अक्टूबर) की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ये व्रत पूरा होता है।
छठ माता से जुड़ी मान्यताएं
- माना जाता है कि प्रकृति ने खुद को छह भागों में बांटा था। इनमें छठे भाग को मातृ देवी कहा जाता है। छठ माता को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री मानी जाती हैं।
- देवी दुर्गा के छठे स्वरूप यानी कात्यायनी को भी छठ माता कहते हैं।
- छठ माता सूर्य देव की बहन मानी गई हैं। इस वजह से भगवान सूर्य के साथ छठ माता की पूजा की जाती है।
- छठ माता संतान की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं। इस कारण संतान के सौभाग्य, लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना से छठ पूजा का व्रत किया जाता है।
- एक अन्य मान्यता है कि बिहार में देवी सीता, कुंती और द्रौपदी ने भी छठ पूजा का व्रत किया था और व्रत के प्रभाव से ही इनके जीवन के सभी कष्ट दूर हो गए थे।
अब जानिए सूर्य पूजा से जुड़ी खास बातें…

ज्योतिष में सूर्य को सभी ग्रहों का अधिपति माना गया है। सभी ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए भी सूर्य की आराधना की जाती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, सिर्फ छठ पूजा ही नहीं रोज उगते सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। छठ पूजा के अवसर पर जानिए सूर्य को प्रसन्न करने के लिए जल चढ़ाने की सही विधि…
ऐसे चढ़ा सकते हैं सूर्य को जल
रोज सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद तांबे के लोटे में जल भरें। सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: जपते हुए दोनों हाथों को ऊंचा करके सूर्य को अर्घ्य चढ़ाएं। जल में चावल, रोली, फूल पत्तियां भी डाल सकते हैं।
जल चढ़ाते समय गायत्री मंत्र का जप भी कर सकते हैं। गायत्री मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
गायत्री के साथ ही सूर्यदेव के इस मंत्र का जप कर सकते हैं। मंत्र-
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर, दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर नमोस्तुते।
सप्ताश्वरथमारूढ़ं प्रचंडं कश्यपात्मजम्, श्वेतपद्यधरं देव तं सूर्यप्रणाम्यहम्।।
सूर्य को जल चढ़ाते समय ध्यान रखें ये बातें
सूर्य को अर्घ्य देते समय पानी की जो धारा जमीन पर गिर रही है, उस धारा से सूर्य के दर्शन करना चाहिए। सूर्य के सीधे दर्शन करने से बचना चाहिए, वर्ना सूर्य की तेज रोशनी से आंखों को दिक्कत हो सकती है।
अर्घ्य देने के बाद जमीन पर गिरे पानी को अपने मस्तक पर लगाना चाहिए। जल चढ़ाने के लिए ठीक सूर्योदय का समय सबसे अच्छा होता है। इसके सूर्योदय से पहले ही बिस्तर छोड़ देना चाहिए और स्नान के बाद अर्घ्य चढ़ाना चाहिए।
