नए साल में मप्र की मोहन सरकार एक नया प्रयोग करने जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सीएम हाउस में जनता दरबार का आयोजन करने वाले हैं। इसके जरिए मौके पर ही लोगों की समस्याओं का समाधान होगा। पहला जनता दरबार 6 जनवरी को लगाने की तैयारी की जा रही है। मुख
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सीएम की इस पहल को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सीएम योगी यूपी में जनता दरबार लगाते हैं। जिसे ‘जनता दर्शन’ नाम दिया गया है। योगी का दरबार काफी लोकप्रिय है। मप्र में इससे पहले दिग्विजय सिंह, उमा भारती और शिवराज भी जनता की शिकायतें सुनते रहे हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का जनता दरबार पूर्व मुख्यमंत्रियों के दरबार से कितना अलग होगा? लोगों की शिकायतों को सुनने का क्या सिस्टम रहेगा? पढ़िए रिपोर्ट…
![सीएम हाउस में ही जनता दरबार का आयोजन होगा।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2024/12/31/5_1735667665.jpg)
सीएम हाउस में ही जनता दरबार का आयोजन होगा।
4 पॉइंट्स में जानिए कैसा रहेगा पहला जनता दरबार
दो घंटे तक लोगों से मिलेंगे सीएम: सूत्रों के मुताबिक मोहन सरकार के पहले जनता दरबार का आयोजन 6 जनवरी को आयोजित करने की तैयारी है। मुख्यमंत्री आवास पर सीएम डॉ.मोहन यादव सुबह 10 से 12 बजे तक लोगों से मिलेंगे और उनकी समस्या सुनेंगे।
कौन सी शिकायतें सुनी जाएंगी?: सीएम के पास पहले से ही जो शिकायतें पहुंची हैं, उन्हीं में से स्क्रूटनी की जाएगी। दरबार में ट्रांसफर-पोस्टिंग के आवेदन नहीं लिए जाएंगे। बीमार, जरूरतमंदों के आवेदनों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसमें 500 से 600 लोगों के आने की संभावना है।
लोगों को कैसे बुलाया जाएगा?: जिन लोगों ने पहले शिकायतें की हैं, उनके आवेदनों को शामिल कर सीएम से मिलने के लिए बुलाया जाएगा। यहां संबंधित विभागों के अधिकारी भी मौजूद रहेंगे। सीएम समस्या के निराकरण के लिए मौके पर ही अफसरों को निर्देश देंगे।
फीडबैक के आधार पर संशोधन होंगे: पहले जनता दरबार के फीडबैक के आधार पर कुछ संशोधन होंगे। जैसे हर बार दरबार क्या सोमवार को ही लगेगा? शामिल होने के लिए रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होगी या नहीं। कितने लोगों का शामिल किया जाएगा? इन सभी बिंदुओं पर फैसला लिया जाएगा।
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जनता दरबार की जरूरत क्यों? जानकार इसकी दो वजह बताते हैं। पहली ये कि लोगों की समस्याओं को दूर करने लिए अलग-अलग प्लेटफॉर्म तो हैं, मगर समस्याएं यहां हल नहीं हो रही हैं। लोग शिकायत लेकर जनसुनवाई में पहुंचते हैं, लेकिन समय पर निराकरण नहीं होता। अफसर और दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते थक जाते हैं।
दूसरी तरफ सीएम हेल्पलाइन जैसे प्लेटफॉर्म हैं। जहां शिकायत करने के बाद फोर्सली शिकायत बंद करने के लिए दबाव बनाया जाता है। पिछले दिनों जब समाधान ऑनलाइन और सीएम हेल्पलाइन की खुद मुख्यमंत्री ने समीक्षा की थी तब ऐसे मामले निकलकर सामने आए थे।
दूसरी वजह बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी कहते हैं कि डॉ. मोहन यादव सरकार का एक साल पूरा हो चुका है। वे लगातार प्रदेश में जन-स्वीकार्रता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। इससे पहले शिवराज के कार्यकाल को देखें तो मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने भी कुछ ऐसी ही कवायद की थी।
2005 में शिवराज लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजना लेकर आए थे। उन्होंने योजनाओं के जरिए जननेता की छवि को गढ़ा था।
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फॉलोअप नहीं तो उल्टा असर होगा वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह कहते हैं कि जनता दरबार का कॉन्सेप्ट पुराना है। इससे पहले भी कई पॉलिटिशियन जनता दरबार लगाते रहे हैं। बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव का जनता दरबार काफी लोकप्रिय रहा है। इसकी सफलता इसी पर निर्भर है कि शिकायतों का कितना फॉलोअप लिया जाता है।
दरअसल, जनता दरबार में लोग शिकायत लेकर आते हैं, लेकिन कितनी शिकायतों का निराकरण होता है? शिकायतों के फॉलोअप पर पॉलिटिशियन की कामयाबी डिपेंड करती है। वैसे ये एक अच्छी पहल होगी। जनता डायरेक्ट सीएम के पास पहुंच सकेगी। मगर, इसका ठीक क्रियान्वयन होना जरूरी है।
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एमपी के दो पूर्व मुख्यमंत्री लगा चुके जनता दरबार
भीड़ बढ़ी तो उमा को बंद करना पड़ा दरबार साल 2003 में जब उमा भारती मप्र की मुख्यमंत्री बनी थीं, तब उन्होंने जनता दरबार की शुरुआत की थी। वह सीएम हाउस पर लोगों से मुलाकात करती थीं। वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी बताते हैं कि जनता दरबार का रिस्पॉन्स शुरुआत में अच्छा था। मौके पर ही अफसरों को लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए निर्देशित किया जाता था।
उमा भारती का ये प्रयोग लोकप्रिय हुआ और लोगों की भीड़ सीएम आवास पर जुटने लगी। उमा भारती से पहले दस साल की दिग्विजय की सरकार थी, इसलिए लोगों की इच्छाएं और आकांक्षा नई सरकार से ज्यादा थी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अधिकारियों ने कोई मैकेनिज्म नहीं बनाया था। जब लोगों की ज्यादा भीड़ होने लगी तो आखिर में दरबार को बंद करना पड़ा।
![ये तस्वीर 27 दिसंबर की है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने केन-बेतवा लिंक परियोजना के शुभारंभ के बाद पूर्व सीएम उमा भारती से मुलाकात की थी।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2024/12/31/comp-23_1735668125.gif)
ये तस्वीर 27 दिसंबर की है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने केन-बेतवा लिंक परियोजना के शुभारंभ के बाद पूर्व सीएम उमा भारती से मुलाकात की थी।
दिग्विजय सिंह सुबह 6 बजे से लोगों से मिलते थे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में भी जनता दरबार लगता था। मुख्यमंत्री आवास पर सुबह 5 बजे से लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी। दिग्विजय सिंह सुबह 6 बजे ही लोगों से मिलना शुरू कर देते थे।
वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी बताते हैं कि सीएम हाउस में लोग हाथों में आवेदन लेकर दोनों तरफ कतार बनाकर खड़े हो जाते थे। दिग्विजय सिंह इन दोनों कतारों के बीच में पहुंचकर लोगों के शिकायती आवेदन लेते थे। किसी शिकायत पर तत्काल ही कार्रवाई करना होती थी तो अधिकारियों को निर्देश दिए जाते थे।
दीपक तिवारी बताते हैं कि दिग्विजय सिंह के समय पहले से शिकायतें लेने का कोई सिस्टम नहीं था। 6 बजे से पहले जितने लोग सीएम हाउस पहुंच जाते थे उन सभी की शिकायतें सुनी जाती थी। 6 बजे के बाद किसी को एंट्री नहीं मिलती थी।
इसके अलावा साल में गर्मी के दो महीने दिग्विजय सिंह ग्राम संपर्क अभियान चलाते थे। इस अभियान के दौरान उनका हेलिकॉप्टर प्रदेश के किसी भी गांव में उतर जाता था। इसके जरिए वे योजनाओं की जमीनी हकीकत देखते थे।
![पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ग्रामीणों के साथ।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2024/12/31/5bc4585d-7636-4b17-97fa-aec0eb86f5551728501531846_1735668287.jpg)
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ग्रामीणों के साथ।
शिवराज दौरे पर मिलते, शुरू की जनसुनवाई पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान लंबे समय तक सूबे के मुखिया रहे, लेकिन उन्होंने जनता दरबार नहीं लगाया। वे खुद लोगों के बीच पहुंचते थे। उनकी शिकायत-समस्याएं सुनते और निराकरण के आदेश देते थे। शिवराज ने लोगों की शिकायतों के निराकरण के लिए सिस्टम का विकेंद्रीकरण किया।
उन्होंने जिला और प्रदेश स्तर पर हर मंगलवार को जनसुनवाई की शुरुआत की। वहीं लोगों के समय सीमा में काम पूरे हो इसके लिए लोकसेवा गारंटी अधिनियम 2010 लागू किया। इसमें सरकार की चुनिंदा सेवाओं को समय सीमा में मुहैया कराना जरूरी है। ऐसा न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ पेनल्टी की कार्रवाई की जाती है।
इसके अलावा सीएम हेल्पलाइन और समाधान हेल्पलाइन की शुरुआत भी शिवराज के कार्यकाल के दौरान हुई।
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अब जानिए जनता दरबार का योगी मॉडल क्या है? योगी आदित्यनाथ साल 2017 में यूपी के मुख्यमंत्री बने थे। सीएम बनने के तुरंत बाद उन्होंने जनता दरबार की शुरुआत की थी। लखनऊ स्थित मुख्यमंत्री आवास पर दरबार लगता है। जब वे गोरखपुर दौरे पर होते हैं तो दरबार गोरखनाथ मंदिर परिसर में लगता है। सुबह 9 बजे से दरबार की शुरुआत होती है।
दरबार में शामिल होने के लिए वेबसाइट और एप के जरिए रजिस्ट्रेशन होता है। दरबार में सीएम योगी खड़े रहते है और लोगों को बैठाया जाता है। एक-एक कर वे सभी की फरियाद सुनते हैं। मौके पर अधिकारी भी मौजूद रहते है। जिन्हें लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए तुरंत निर्देशित किया जाता है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो जब वे सांसद थे उस समय भी इस तरह से दरबार लगाते थे।
![यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जनता दरबार में लोगों की शिकायतें सुनते हुए।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2024/12/31/6_1735668402.jpg)
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जनता दरबार में लोगों की शिकायतें सुनते हुए।