ACB sent notices to Store GM and PBM Superintendent | एसीबी ने भंडार जीएम और पीबीएम अधीक्षक को भेजे नोटिस: डॉक्टरों ने लिख दीं जेनरिक की जगह ब्रांडेड दवाएं, 1.87 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला – Bikaner News


सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार ने जेनरिक की जगह ब्रांडेड कंपनियों की दवाएं पेंशनरों के लिए खरीदकर सरकार को 1.87 करोड़ रुपए से अधिक का चूना लगा दिया। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस मामले में भंडार जीएम और पीबीएम अधीक्षक को नोटिस देकर संबंधित रिकॉर्ड मांग

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भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की स्पेशल यूनिट ने इस पुराने इस मामले में जांच के चलते सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार जीएम और पीबीएम अधीक्षक को नोटिस जारी कर वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 के दौरान दवाओं की खरीद के बिलों का विवरण, खरीद के आदेश, डॉक्टरों द्वारा पेंशनरों को दवा लिखने के परिपत्र, भंडार द्वारा बिल पेश कर भुगतान उठाने का विवरण मांगा है।

प्रकरण की 80 प्रतशित जांच हो चुकी है। बाकी की जांच रिकॉर्ड के अभाव में रुकी हुई है। एसीबी मुख्यालय के पेंडेंसी निपटाने को लेकर दबाव के चलते ब्यूरो के अधिकारी फिर से हरकत में आए हैं। ब्यूरो के नोटिस को लेकर भंडार और पीबीएम प्रशासन में खलबली मची हुई है। रिकॉर्ड सामने आने पर कई बड़े खुलासे हो सकते हैं।

सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार में पांच साल पहले दवा घोटाला उजागर हुआ था। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस मामले में जांच के बाद भंडार के तत्कालीन जीएम मनमोहन यादव, पीबीएम हॉस्पिटल के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं अतिरिक्त प्राचार्य(प्रथम) रहे डॉ. एलए गौरी, भंडार के तत्कालीन स्टोरकीपर, फार्मासिस्ट, सुपरवाइजर, कनिष्ठ लिपिक सहित कुल छह लोगों के विरुद्ध 10 जून 2019 को पीसी एक्ट और आईपीसी की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया था।

आरोप है कि भंडार ने वे दवाएं भी ब्रांडेड खरीदी, जो बाजार में जेनरिक नाम से बिक रही थीं। यह खरीद वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 तीन साल तक की गई। इससे राज कोष पर 1 करोड़ 87 लाख 31 हजार 62 रुपए का अतिरिक्त भार पड़ा। आराेपियाें में दाे काे छाेड़कर बाकी सभी अधिकारी-कर्मचारी अब रिटायर हाे चुके हैं।

क्या था मामला

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की बीकानेर चौकी के तत्कालीन प्रभारी परबत सिंह ने 19 जून 2016 को सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार की आकस्मिक जांच की थी। तत्कालीन सीएमएचओ डाॅ. देवेंद्र चाैधरी और जिला औषध भंडार के प्रभारी डाॅ. नवल गुप्ता बताैर गवाह साथ थे। भंडार की पीबीएम परिसर स्थित दुकानों और कार्यालय से बड़ी मात्रा में रिकॉर्ड जब्त किया। जांच से पता चला कि भंडार के तत्कालीन जीएम मनमोहन सिंह यादव ने 27 नवंबर 14 को जेनरिक दवाओं के टेंडर किए थे।

वित्तीय बिड में फाइनल होने पर जोशी ड्रग एजेंसी, सिटी मेडिकोज, एसबी मेडिकल और आलोक फार्मा को वर्क ऑर्डर जारी किए गए। सैंट्रल स्टोर की मांग के अनुसार दवाओं की आपूर्ति की गई। फर्मों के पेमेंट मेडिकल सुपरवाइजर की अनुंशसा पर किया गया। आरोप है कि भंडार के फार्मासिस्ट और स्टोर कीपर की मांग पर निविदादाताओं के अतिरिक्त अन्य फर्मों से ऊंची दर पर बिना टेंडर 2 करोड़ से अधिक की ब्रांडेड दवाओं की खरीद कर पद का दुरुपयोग किया गया।

इससे राजकोष को हानि हुई, जबकि सरकार के जेनरिक दवाएं खरीदने के आदेश थे। जेनरिक उपलब्ध नहीं होने पर ब्रांडेड दवाएं खरीदी जानी थी। वित्तीय वर्ष 2014-15 में 42.74 लाख, 2015-16 में 81.88 लाख, 2016-17 में 62.67 लाख से अधिक की दवाओं की खरीद कर सरकार को 1 करोड़ 87 लाख 31 हजार 936 रुपए 74 पैसे का आर्थिक नुकसान पहुंचाया है।

भास्कर इनसाइट : चिकित्सा विभाग की जांच में एक ही डॉक्टर की पर्चियां मिलीं

सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार में जेनरिक के साथ ब्रांडेड कंपनियों की दवाएं खरीदने के मामले में शिकायत होने पर पहली जांच सहकारिता विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त रजिस्ट्रार ने की थी। उन्होंने जांच में सभी को क्लीन चिट दे दी। उसके बाद 8 जून 2018 को चिकित्सा विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक की अध्यक्षता में जांच कमेटी का गठन हुआ।

इस कमेटी में शामिल जिला क्षय अधिकारी डॉ. सीएस मोदी, डीसीओ जितेंद्र बोथरा, चंद्रशेखर चौधरी, सहायक लेखाधिकारी अनिल आचार्य ने रिकॉर्ड की जांच की तो सामने आया कि पीबीएम हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने ब्रांडेड कंपनियों की दवाएं लिखी थीं। इनमें मेडिसिन विभाग के तत्कालीन प्रोफेसर एवं एसपी मेडिकल कॉलेज के अतिरिक्त प्राचार्य(प्रथम) डॉ. एलए गौरी की पर्चियां सबसे ज्यादा थीं। उनके द्वारा लिखी गई दवाओं की कीमत भी तीन हजार रुपए से अधिक थी।

उनके रुक्कों में ब्रांडेड नाम अथवा जेनरिक(ब्रांडेड) लिखा रहता था। अन्य डॉक्टरों ने भी जेनरिक के साथ ब्रांडेड दवाएं मरीजों को लिखी थी, जबकि सरकार के जेनरिक दवाएं लिखने के आदेश थे। जेनरिक बाजार में उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में ही ब्रांडेड दवा लिखी जा सकती थी। जेनरिक की जगह ब्रांडेड दवाएं लिखकर राजकोष को लाखों का नुकसान पहुंचा गया।

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