A unique confluence of folk arts took place at Albert Hall | अल्बर्ट हॉल पर हुआ लोक कलाओं का अनूठा संगम: कल्चरल डायरीज के तहत, हाड़ौती के रंग में रंगा ढूंढ़ाढ़, विदेशी पर्यटकों ने की सराहना – Jaipur News

‘कल्चरल डायरीज’ के छठे एपिसोड का आयोजन जयपुर के ऐतिहासिक अल्बर्ट हॉल पर हुआ।

राजस्थान की समृद्ध लोक कला और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और प्रचारित करने की दिशा में राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित ‘कल्चरल डायरीज’ के छठे एपिसोड का आयोजन जयपुर के ऐतिहासिक अल्बर्ट हॉल पर हुआ। इस मौके पर हाड़ौती अंचल की पारंपरिक लोक कलाओं का भ

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इस विशेष आयोजन की खास बात यह रही कि यह अल्बर्ट हॉल के 139वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया, जिससे इसकी महत्ता और बढ़ गई। कार्यक्रम में देश-विदेश से आए पर्यटकों और स्थानीय दर्शकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और राजस्थान की लोक कला के इस भव्य आयोजन का आनंद लिया।

कार्यक्रम में देश-विदेश से आए पर्यटकों और स्थानीय दर्शकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और राजस्थान की लोक कला के इस भव्य आयोजन का आनंद लिया।

कार्यक्रम में देश-विदेश से आए पर्यटकों और स्थानीय दर्शकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और राजस्थान की लोक कला के इस भव्य आयोजन का आनंद लिया।

हाड़ौती की पारंपरिक लोक प्रस्तुतियों ने बांधा समां

सांझ ढलते ही एक के बाद एक हाड़ौती अंचल की रंगारंग प्रस्तुतियां मंच पर सजीं। रूपसिंह चाचोड़ा (छबड़ा) और उनके दल ने जब ढोल-मंजीरे की ताल पर चकरी नृत्य प्रस्तुत किया, तो पूरे वातावरण में उत्साह की लहर दौड़ गई। अशोक कश्यप (झालावाड़) और उनके दल ने डंडा बिंदौरी नृत्य के माध्यम से एकता और परंपरा की भावना को जीवंत किया। हरिकेश सिंह (बारां) के दल ने सहरिया नृत्य के जरिए होली और दीपावली के उल्लास को मंच पर उतारा। जुगल चौधरी (झालावाड़) और उनके दल ने अपनी पारंपरिक प्रस्तुतियों से दर्शकों का दिल जीत लिया। कुणाल गंधर्व (कोटा) और उनके दल ने बैलगाड़ी के चक्कों के साथ अद्भुत शारीरिक संतुलन और तालमेल का प्रदर्शन किया, जिसने सभी को रोमांचित कर दिया। विनीता चौहान (कोटा) के निर्देशन में प्रस्तुत बिंदौरी नृत्य ने शादी की बारात के उल्लास को मंच पर जीवंत किया।

गौरतलब है कि राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी की पहल पर शुरू किए गए ‘कल्चरल डायरीज’ का उद्देश्य प्रदेश के पारंपरिक लोक कलाकारों को मंच प्रदान करना और राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को नई पहचान दिलाना है।

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