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हमारा चिंतन चल रहा है आचार्यश्री द्वारा रचित मोक्ष पुरुषार्थ पुस्तक पर। जिनशासन गौरव आचार्य उमेश मुनिजी ने मोक्ष पुरुषार्थ ग्रंथ में लिखा हैं कि उग्र तपस्या करें तो जीव वेगो वेगो मोक्ष में जावे। किसी पदार्थ की इच्छा रखने मात्र से ही तृप्ति नहीं होती है। इसके लिए उद्यम, परिश्रम करना आवश्यक है। विद्यार्थी को भी अध्ययन करने के लिए उद्यम करना आवश्यक है। इसी तरह संयमी आत्मा को भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए उद्यम करना आवश्यक है। मोक्ष की वास्तविक इच्छा करने के लिए उद्यम करना पड़ता है। जहां चाह होती है, वहां राह मिलती है। बहाने बाज व्यक्ति पुरुषार्थ नहीं करता है। यह वचन संयम उपवन वर्षावास के लिए विराजित महासती प्रज्ञा जी ने रविवार को कहे।
महासती ने आगे कहा कि तप करें बिना सिद्धि नहीं होती है। मक्खन को तपाने पर ही घी निकलता है। स्वर्ण का मैल दूर करने के लिए उसे भी तपाया जाता है। इसी तरह तप रूपी अग्नि में तपे बिना आत्म सिद्धि नहीं होती है। मजदूर खेतों में परिश्रम करके तप सहन करते हैं। हलवाई होटल में भोजन तैयार करते समय तपते हैं। महिलाएं भी किचन में खाना बनाते समय तपती है। तप का ताप सहन करने वाला भगवान बन जाता है। साधक को शीत वेदना, उष्ण की तीव्र वेदना सहन करना पड़ती है। कई महापुरुषों के उदाहरण सामने है, जिन्होंने शीत और उष्ण वेदना सहन की है। तिर्यंच भी तप सहन करते हैं। व्यक्ति कर्म के उदय के कारण तप करके अपनी आत्मा को पुष्ट करता है। व्यक्ति तपस्या में अशाता को सहन करता है। कर्म क्षय करने का उपाय है तप। इच्छाओं का विरोध हो तो व्यक्ति तप करता है। तप के दो प्रकार बताए हैं बाह्य तप तथा आभ्यंतर तप। दोनों प्रकार के तप करने का लक्ष्य होना चाहिए।
उग्र तप के विभिन्न प्रकार बताए गए हैं। जिसमें दृढ़ भाव से युक्त हो वह उग्र तप कहलाता है। भावों के विपुलता हो वह उग्र तप कहलाता है। तप लंबा हो वह उग्र तप कहलाता है। तप दोष नाशक हो तो वह उग्र तप कहलाता है। हमारे हृदय के भीतर यदि सामर्थ्य हो तो, हमें उग्र तप करके सिद्ध पद को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। तपस्या के क्रम में महासती प्रज्ञा जी के मुखारविंद से बाल तपस्वी अर्हम घोड़ावत ने 12 उपवास के प्रत्याख्यान लिए।