A film was made on the condition of Hindus in Bengal | बांग्लादेश से भागकर पश्चिम बंगाल आए हिंदुओं पर फिल्म बनी: प्रोड्यूसर बोले- हमने 6 महीने पहले जो शूट किया, बांग्लादेश में अब वही हो रहा

मुंबई22 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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फिल्म के प्रोड्यूसर वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी लखनऊ शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने कुछ समय पहले हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है। - Dainik Bhaskar

फिल्म के प्रोड्यूसर वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी लखनऊ शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने कुछ समय पहले हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है।

‘बांग्लादेश में 1 अक्टूबर 2001 को एक घटना हुई थी। बहुसंख्यकों ने वहां की एक हिंदू फैमिली पर हमला किया, फिर उन्हें मार दिया। घर में 14 साल की बच्ची थी। जेहादियों ने उस बच्ची के साथ गैंगरेप किया। मंजर इतना खौफनाक था कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। मां को लगा कि उसकी बेटी अब मर जाएगी। उसने उन दानवों से रोते हुए कहा कि एक-एक करके करो, वर्ना मेरी बच्ची मर जाएगी।

एक मां के मुख से निकले शब्द अपने आप में किसी की आत्मा झकझोर देंगे। यह घटना उस वक्त तो दबा दी गई, लेकिन बांग्लादेश की राइटर तस्लीमा नसरीन ने जब इस बर्बरता पर एक किताब लिखी, तब यह मामला बड़े लेवल पर हाईलाइट हुआ।

इसी फैमिली की एक दूसरी बच्ची किसी तरह वहां से बचकर निकल जाती है और पश्चिम बंगाल में पनाह लेती है। हालांकि पश्चिम बंगाल में उसे भी काफी उत्पीड़न झेलना पड़ता है। वो लव जिहाद का शिकार होती है, रोहिंग्या मुसलमान उसका शोषण करते हैं।’

ये बातें बताई हैं, वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी ने। वसीम रिजवी लखनऊ शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने कुछ समय पहले हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है। अब वे पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर एक फिल्म लेकर आ रहे हैं, जिसका टाइटल है- द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल। वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी ने कहा कि आज बांग्लादेश में हिंदुओं की जो वर्तमान स्थिति है, उन्होंने फिल्म में पहले ही वो सब दिखा दिया है। फिल्म 6 महीने पहले ही शूट हो चुकी है।

हमने वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी से इस सेंसिटिव मुद्दे पर फिल्म बनाने की वजह पूछी। क्या वे इसके जरिए सच्चाई दिखाना चाहते हैं या फिर किसी खास धर्म को टारगेट करना चाहते हैं। उन्होंने एक-एक करके हमारे सभी सवालों के जवाब दिए। पढ़िए..

सवाल- आपने इस मुद्दे पर फिल्म बनाने की क्यों सोची, लगा नहीं कि सामाजिक सद्भाव बिगड़ सकता है?
जवाब-
हमारी फिल्म फैक्ट्स पर बेस्ड है। क्या आप इनकार करेंगे कि इस वक्त बंगाल में हिंदुओं की स्थिति बद से बदतर है। वहां रोहिंग्या मुसलमान आग उगल रहे हैं। वहां की सरकार सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें पहचान पत्र मुहैया करा रही है। उन्हें लीगल सिटीजनशिप प्रोवाइड कर रही है, ताकि वे एक खास पार्टी के लिए वोट करते रहें। ये बाहर से आए लोग अब देश के हर कोने में पसरते जा रहे हैं, जो कहीं न कहीं नेशनल सिक्योरिटी के लिए खतरे की घंटी है।

सवाल- इस फिल्म की रिलीज की टाइमिंग पर सवाल उठ सकता है, इस वक्त बांग्लादेश में जो हो रहा है, वो किसी से छिपा नहीं है।
जवाब-
हमारी फिल्म 6 महीने पहले ही बन चुकी है। बांग्लादेश में तो अभी एक महीने पहले उपद्रव शुरू हुआ है। हां, एक बात जरूर है कि हमने जो भी फिल्म में दिखाया है, वही इन दिनों बांग्लादेश में हो रहा है।

बांग्लादेश में हिंदू हमेशा से पीड़ित रहे हैं, जो आज खुल कर पूरी दुनिया देख रही है। शेख हसीना के देश छोड़ते ही वहां की कट्टरपंथी ताकतों ने हिंदुओं का जीना मुहाल कर दिया है। उनके घर लूटे जा रहे हैं, मंदिर तोड़े जा रहे हैं। महिलाओं के साथ यौन हिंसा जैसी खबरें भी आ रही हैं।

सवाल- क्या आपने अपनी फिल्म में लव जिहाद पर भी बात की है?
जवाब-
लव जिहाद और गजवा ए हिंद जैसी विचारधाराएं हमारे देश के लिए खतरा है हीं, इसमें कोई दो राय है क्या? सिर्फ लोगों की जान लेना आतंकवाद थोड़ी है। लव जिहाद को अंजाम देने वाले लोग वैचारिक आतंकवादी हैं। वे गैर मुस्लिम लड़कियों का पहले ब्रेनवॉश करते हैं और फिर उनसे शादी करके धर्म परिवर्तन करा देते हैं। हमारी फिल्म में इसी पर बात की गई है।

सवाल- फिल्म के ट्रेलर में मदरसे का सीन है, बम बनाने के दौरान गलती से पूरा मदरसा उड़ जाता है। ऐेसे सीन्स रखने का क्या तात्पर्य है?
जवाब-
हमने खुद से तो दिखाया नहीं है। पहले भी बताया कि यह एक सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के एक मदरसे में बम बनाने की ट्रेनिंग दी जाती थी। एक दिन वहां गलती से ब्लास्ट हो गया। पूरा मदरसा उड़ गया। जांच में पता चला कि एक बांग्लादेशी टीचर वहां लड़कों को बम बनाने की ट्रेनिंग दे रहा था। जब ऐसे केसेस सुनने को मिलते हैं तो सारे मदरसों पर सवालिया निशान खड़ा हो जाता है।

सवाल- क्या आपको लगता है कि आतंकी विचारधारा वाले सच में किसी धर्म को मानते होंगे?
जवाब-
यह तो अजीब बात है। धर्म के नाम पर ही आज पूरी दुनिया में ये लोग आतंक मचा रहे हैं। मजहब को आगे करके ही ये लोग हंगामा मचाते हैं। आप मुझे खुद बताइए, आतंकियों की लाशों को दफनाया ही क्यों जाता है, जलाया क्यों नहीं जाता। उनकी मौत पर फातिहा ही क्यों पढ़ा जाता है। ये लोग ही अपने मजहब को बदनाम कर रहे हैं।

सवाल- विरोधी तो आपको एंटी मुस्लिम बताते हैं, क्या आप जानबूझकर मुस्लिमों के खिलाफ बोलते हैं?
जवाब-
यह सब चीजें बस मेरी बात को दबाने के लिए कही जाती हैं। मैं जो बात कहता हूं क्या उसका किसी के पास तोड़ है? क्या यह सच नहीं है कि आज बंगाल का हिंदू वहां से पलायन करने पर मजबूर है। यही तथ्य मैंने अपनी फिल्म में भी दिखाया है।

मैं कभी भी एक ईमानदार मुसलमान के खिलाफ बात नहीं करता। जो कट्टरपंथी हैं, उनके खिलाफ तो बोलना ही पड़ेगा। ये जो कट्टरपंथी हैं, उनसे नुकसान सिर्फ औरों को नहीं, बल्कि खुद मुसलमानों को भी है।

सवाल- आप जो बताना चाह रहे, क्या उसकी जानकारी केंद्र सरकार या खुफिया एजेंसी को नहीं है, फिर एक्शन क्यों नहीं लेते?
जवाब-
जानकारी तो केंद्र सरकार और खुफिया एजेंसी को बिल्कुल है। हालांकि अब मिलिट्री एक्शन तो कर नहीं सकते। कार्रवाई धीरे-धीरे हो रही है, लेकिन जेहादियों के लिंक्स इतने मजबूत हैं कि वे जल्दी पकड़ में नहीं आते। जितने पकड़े जाते हैं, उससे ज्यादा लोगों को ये धर्म के नाम बरगलाकर वापस भर्ती करा लेते हैं। एक मरता है तो 10 पैदा हो जाते हैं।

सवाल- क्या आपको किसी पार्टी की तरफ ऐसी फिल्म बनाने के लिए फंडिंग की गई है?
जवाब-
अगर फंडिंग की गई होती तो मैं अपनी फिल्म में बड़े स्टार्स लेकर नहीं आता? हमने एक-एक पाई जोड़कर यह फिल्म बनाई है। किसी से कोई हेल्प नहीं ली। सिनेमा समाज को आइना दिखाता है। लोग थिएटर से हंसते हुए निकलते हैं, मैं चाहता हूं कि यह फिल्म देखने के बाद लोग रोएं।

सवाल- क्या आपको अपनी जान की फिक्र नहीं है? इस फिल्म को बनाने को लेकर आप के खिलाफ फतवा जारी हुआ है।
जवाब-
मेरी जिंदगी एक मकसद के लिए है। मेरे दिल से उस दिन डर निकल गया, जब एक हेलिकॉप्टर क्रैश में मुझे खरोंच तक नहीं आई। मुझे दाऊद इब्राहिम ने मारने के लिए गुर्गे भेजे थे, जिन्हें क्राइम ब्रांच दिल्ली की टीम ने पकड़ लिया था। मुझे मौत से डर नहीं लगता। हम सभी को जिंदगी से डरना चाहिए न कि मौत से। मौत तो अटल है, एक दिन आएगी ही। जहां तक फतवे की बात है, मैं इन मौलानाओं को सीरियसली नहीं लेता।

सवाल- फिल्म को बंगाल में बैन भी किया जा सकता है, आपके खिलाफ केस भी हो सकता है। क्या इसके लिए तैयार हैं?
जवाब-
बैन तो नहीं करना चाहिए क्योंकि हमने फिल्म के जरिए सच्चाई दिखाई है। मैंने तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को फिल्म देखने के लिए इनविटेशन भी भेजा है। हम चाहते हैं कि वे आएं और फिल्म देखें जिससे उनकी भी आंखें खुले। हम चाहते हैं कि वे AC वाले कमरे से निकलें और बंगाल के सताए हुए हिंदुओं का दुख-दर्द समझें।

अब फिल्म के लीड एक्टर्स यजुर और अर्शिन से बातचीत..

सवाल- क्या आप दोनों को यह फिल्म करते वक्त डर नहीं लगा?
अर्शिन– मैंने तो शुरुआत में फैमिली को बताया ही नहीं था कि ऐसी किसी फिल्म में काम करने जा रही हूं। मम्मी-पापा को जब पता चला तो वे थोड़े नर्वस जरूर हो गए। परिवार के कई लोगों ने तो मुझे सुना भी दिया। जब मैंने कहानी सुनी तो मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि यह फिल्म किसी धर्म के खिलाफ है। मुझे यह भी लगता है कि मैं हर किसी को खुश नहीं रख सकती।

यजुर- एक एक्टर को स्क्रिप्ट और उसके रोल पर ही फोकस करना चाहिए। मुझे फिल्म की कहानी काफी रियलस्टिक लगी। चूंकि यह मेरी पहली फिल्म है, इसके जरिए मुझे अपना टैलेंट दिखाने का मौका मिला।

फिल्म की स्टारकास्ट यजुर मारवाह (दाएं) और अर्शिन मेहता (बीच में) के साथ वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी।

फिल्म की स्टारकास्ट यजुर मारवाह (दाएं) और अर्शिन मेहता (बीच में) के साथ वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी।

फिल्म की शूटिंग के वक्त क्या दिक्कतें आईं?
अर्शिन- हमें बंगाल जाकर शूट करना था। वहां लो प्रोफाइल रहना था, ताकि आस-पास पता न चले कि हम फिल्म शूट कर रहे हैं। ऊपर से हमारे साथ कैमरा वगैरह भी थे, उन्हें भी छिपा कर रखना था। छोटे-छोटे होटलों में रहते थे, ताकि किसी को कोई शक न हो। जंगलों में शूट करने जाते थे, जहां वैनिटी वैन भी नहीं जा सकती थी। जंगलों में ही फ्रेश होना पड़ता था।

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