मुंबई24 मिनट पहलेलेखक: वीरेंद्र मिश्र
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मुंबई 1993 बम ब्लास्ट पर कई फिल्में और सीरीज बन चुकी हैं। सभी ने इस घटना को अपने -अपने नजरिए से पेश किया है। वेब सीरीज ‘नाम गुम जाएगा’ की कहानी भी 1993 बम ब्लास्ट की घटना से प्रेरित है। यह सीरीज आज 3 मई से अतरंगी ऐप पर स्ट्रीम हुई है। हाल ही में इस सीरीज को लेकर डायरेक्टर अक्षय सिंह, राइटर बह्निशिखा दास और एक्टर राहुल सिंह ने बात की।
अक्षय, सीरीज का टाइटल ‘नाम गुम जाएगा’ बहुत ही यूनिक है, इस पर सीरीज बनाने का ख्याल कैसे आया ?
यह सीरीज मुंबई 1993 बम ब्लास्ट की घटना से प्रेरित है। जहां तक टाइटल की बात है, तो एक इंसान जो पहले किसी और नाम से जाना जाता था। आज किसी और नाम से जाना जाता है। लेकिन क्या नाम बदल जाने से इंसान की फितरत बदल जाती है। यह एक बहुत बड़ा सवाल हैं। इस सीरीज में यही खेल है। जिसे सस्पेंस और थ्रिलर में पिरों कर राइटर ने अपने तरीके से लिखा है।
बह्निशिखा, मुंबई 1993 बम ब्लास्ट पर बहुत सारी फिल्में और सीरीज बन चुकी हैं। आपकी सीरीज कितनी अलग है?
इस सीरीज की कहानी 1993 बम ब्लास्ट के उस दौर की है। उसमें से एक इंसान जो पकड़ा नहीं गया था। उसकी बैक स्टोरी बहुत ही दिलचस्प थी। मैंने उसी के इर्द -गिर्द कहानी का अनुमान लगा कर कुछ फिक्शनल और कुछ रियलिटी को जोड़कर कहानी लिखी है। इसमें घटना के कुछ रहस्य उजागर होंगे, जो कभी नहीं दिखा वो अब दिखेगा।
अक्षय, जब कहानी पूरी हो गई तब कलाकारों का चयन किस तरह से हुआ ?
वह बहुत ही इंटरेस्टिंग प्रोसेस रहा है। राहुल सिंह हमारे दिमाग में पहले से ही थी। उनके बारे में बताने की जरूरत नहीं कि कितने ब्रिलिएन्ट एक्टर हैं। इसकी जब कास्टिंग जब शुरू हुई तो हमने इस पर डिस्कस शुरू किया। राहुल इसमें जो किरदार निभा रहे हैं, वो बहुत ही धाकड़ और दमदार है। चैनल ने भी अप्रूव कर दिया कि राहुल सिंह कर सकते हैं। इसके अलावा बरखा बिष्ट और रोमित राज ने ही बेहतरीन किरदार निभाया है।
राहुल, जब आपको अप्रोच किया गया तो किरदार को लेकर आपका क्या रिएक्शन रहा ?
हम वर्षों से एक दूसरे को जानते हैं। अक्सर एक दूसरे से आइडियाज शेयर करते रहते हैं। पहले भी हम लोग साथ काम करने वाले थे, लेकिन तब किसी वजह से बात नहीं बन पाई। जब इस सीरीज का सब्जेक्ट मैंने सुना तो बहुत ही मजा आया। हर एक्टर अपने किरदार को अपने दिमाग में अपने हिसाब से रिफाइन कर लेता है और सोचता है कि किरदार में सिर्फ मुझे मजा आना चाहिए। लेकिन मैं डायरेक्टर की बात सुनता हूं और उनके विजन को समझता हूं। मैंने किरदार की गहराई को समझा।
अक्षय, आप यह बताएं, चैनल का कास्टिंग में कितना इंटरफेयर होता है, आप चैनल को जो कास्टिंग लिस्ट भेजते हैं, वहीं फाइनल होता है या फिर उनका भी कुछ सुझाव होता है?
चैनल के साथ ही मिलकर हम कास्टिंग करते हैं, लेकिन इस सीरीज में ऐसा नहीं हुआ। हम लोग हर किरदार के तीन ऑप्शन चैनल को देते हैं। चैनल का यही सवाल होता है कि आपकी पहली चॉइस क्या है। सौभाग्य से हमारी जो पहली चॉइस थी वहीं चैनल की भी चॉइस बन गई। हम लोग खुशकिस्मत हैं कि इस मामले में चैनल के साथ हमारा सही तालमेल बैठा और हम लोग एक साथ सही पीच पर आ गए।
राहुल, किसी भी किरदार को लेकर डायरेक्टर का अपना विजन होता है। लेकिन एक्टर को अपने किरदार में कितना इनपुट डालना पड़ता है?
मैं पहले डायरेक्टर से किरदार की ब्रीफिंग ले लेता हूं। उसके बाद किरदार को निभाने के लिए अपने हिसाब से होम वर्क करता हूं। होम वर्क ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि सेट पर जाने के बाद चेंजेज हो। इंप्रोवाइजेशन में मैं काफी बिलीव करता हूं। मैं डायरेक्टर को बता देता हूं कि मैंने यह सोचा है। अगर उनको हमारी सोच अच्छी लगी तो ठीक है, नहीं तो हम डायरेक्टर के हिसाब से चलते हैं। एक्टर सिर्फ अपने किरदार के बारे में सोचता है,लेकिन डायरेक्टर पूरी फिल्म को देखता है। सेट पर डायरेक्टर और एक्टर के बीच अच्छा तालमेल बैठना बहुत जरूरी है।
किरदार को लेकर आपका क्या अप्रोच होता है ?
पहली बात तो जो लिखा गया है उसे समझो और उसी दायरे में खेलो और सोचो। उसी में आपको रिसर्च भी करना है। एक्टिंग करना कोई भारी काम नहीं है। सेट पर बहुत सारे लोग संभालने के लिए हैं। राइटर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर सभी हैं। यह एक जर्नी होती है। एक्टर का ही जीवन ऐसा है जिसमें उसे सब कुछ करना पड़ता है। जिसे उसने जीवन में कभी नहीं किया है। एक जिंदगी में बहुत सारी जिंदगी होती हैं। यही एक एक्टर के लाइफ की ब्यूटी होती है। लाइनें तोता भी बोल लेता है, लेकिन अगर आप एक्टर हैं तो अपना भी दिमाग लगाओ की खुद अलग क्या दे सकते हैं। बाकी डायरेक्टर पर निर्भर करता है कि आपकी बात को कितना रखते हैं।
आपका किरदार किस वास्तविक किरदार से प्रेरित है?
यह किरदार किसी एक किरदार को रिप्रजेंट नहीं करेगा। वर्दी पहनकर देश की रक्षा करने वाला कोई भी हो, यह किरदार उनका प्रतीक है। रही बात मेरे किरदार की, तो उसके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया, जब बहुत बड़ी दुर्घटना रोक सकता था। लेकिन नहीं रोक पाया। इस बात का पछतावा उसे जीवन भर है। वह सोचता है कि जो उससे गलती हुई हैं, क्या उसे सुधारा जा सकता है ? भाग्य उसे दोबारा मौका देता है और अपनी गलतियों को सुधारता है।
अक्षय, जब आप इस विषय पर रिसर्च कर रहे थे तो उस समय के लोगों से मिलना हुआ ?
मिलना तो किसी से नहीं हुआ क्योंकि सभी जेल में थे। उनमें से कुछ को फांसी हो गई थी और कुछ को मौत की सजा सुनाई जा चुकी थी। लेकिन उनके बारे में पढ़ने के लिए बहुत कुछ था। उस हिसाब से किरदार बनते गए, लेकिन रिसर्च बहुत करना पड़ा। 150 पेज का रिसर्च था। बम ब्लास्ट से लेकर अब तक जो केस चल रहा है। वो सब बातें हैं।
वेब सीरीज सेंसर के दायरे में नहीं है, इससे एक फिल्म मेकर को अपनी बात कहने में कितनी आजादी मिलती है ?
ओटीटी ही एक ऐसा प्लेटफार्म हैं जो सेंसर के दायरे में नहीं आता है। आप अपने हिसाब से कहानी कह सकते हैं। लेकिन यह मेकर पर निर्भर करता है कि वो कहानी क्या कहना चाह रहा है? अगर हमें आजादी मिली है तो इसका मतलब यह नहीं कि कुछ भी दिखा दें। कुछ कहानियां ऐसी भी आ जाती हैं कि सोचने पर मजबूर हो जाना पड़ता हैं कि ऐसे कैसे दिखा सकते हैं? हम इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि अगर हमने फ्रीडम मिली है तो इसका मतलब यह नहीं कि कुछ भी दिखा दें।