एम्स भोपाल पहली बार दुर्लभ और जटिल जन्मजात हृदय की बीमारी से ग्रस्त 3 बच्चों का जीवन बिना ऑपरेशन किये अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर भूषण शाह और उनकी टीम के द्वारा बचाया गया। जिसमें से दो बच्चों की उम्र 1 साल से भी कम थी और तीनों ही ह्रदय की गंभीर
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केस-1
एम्स की इमरजेंसी में आए दो माह के बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। जांच में पता चला कि बच्ची के ह्रदय की दोनो धमनियां आपस में जुड़ी हुई थी। इसे पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस (पी डी ए) कहा जाता है जो कि जन्मजात होता है। इसमे जन्म के समय भ्रूण की पल्मोनरी धमनी और एओर्टा के बीच का सामान्य चैनल बंद नहीं होता। जिसके कारण उसका हार्ट फेल होने की आशंका रहती है। ऐसे में आपरेशन करना लगभग नामुमकिन था क्योंकि बच्ची की जान भी जा सकती थी। एम्स के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. भूषण शाह ने बताया कि इकोकार्डिओग्राफी की मदद से कमर की एक नस के माध्यम से नितिनोल डिवाइस के द्वारा बिना सर्जरी के इस चैनल को बंद किया। इस प्रक्रिया के बाद बच्ची मां का दूध भी पीने लगी और हर्ट फेलियर के लक्षण भी कम होने लगे।
एम्स भोपाल।
केस-2
11 माह की बच्ची को सांस लेने में दिक्कत होती थी और वह दूध तक नहीं पी पाती थी। बच्ची का वजन कम होने के साथ छाती में खिंचाव की समस्या थी। जांच में पता चला कि बच्ची एक दुर्लभ जन्मजात ह्रदय दोष एओर्टोपल्मोनरी विंडो (0.1 से 0.6 प्रतिशत सीएचडी) है। यदि समय रहते इसे ठीक नहीं जाता तो बच्ची की जान खतरे में पड़ जाती। एम्स के डॉक्टरों ने मरीज की कमर से एक नस के द्वारा नाइटिनोल डिवाइस जैसे बटन को ह्रदय तक पहुंचा कर उस छिद्र को बंद किया। बच्ची को देश के कई अस्पतालों में दिखाया गया था लेकिन कम उम्र के चलते कहीं ऑपरेशन नहीं किया गया।
केस:3
तीन वर्षीय बच्चे में दोनों हर्ट चेंबर के बीच एक छेद होने के कारण हृदय से आक्सीजन युक्त रक्त पूरे शरीर में नहीं पहुंच पा रहा था। इसे वीएसडी या वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष कहते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जब दिल के दो निचले कक्षों के बीच की दीवार में एक छेद हो जाता है । सामान्य तौर पर इस छेद को बंद करने के लिए ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है। लेकिन एम्स में बिना कट लगाए सर्जरी की गई।