- Hindi News
- Jeevan mantra
- Dharm
- Lesson For Happiness And Peace Of Mind In Life, Life Lesson, Life Management Tips, Saint’s Teachings To His Disciple
14 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

अधितर परेशानियां हमारी इच्छाओं की वजह से ही आती हैं। मन में जब भी कोई इच्छा जन्म लेती है, तो उसे पूरा किए बिना मन शांत नहीं होता है। कई बार कड़ी मेहनत के बाद भी इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं, तब मन दुख और निराशा से भर जाता है। शास्त्रों में कहा गया है- हमें मुश्किल समय में अत्यधिक दुखी और अच्छे समय में अत्यधिक प्रसन्न होने से बचना चाहिए। जब हम सुख-दुख में समभाव रहना सीख लेते हैं, तब हमारे जीवन में शांति आती है। ये बात एक लोक कथा से समझ सकते हैं। जानिए ये लोक कथा…
किसी जंगल में एक आश्रम था, वहां एक गुरु और उनका शिष्य रहते थे। आश्रम में सुविधाएं बहुत कम थीं, गुरु अत्यंत संतुष्ट और प्रसन्न स्वभाव के थे, इसलिए वे हमेशा शांत रहते थे। एक दिन किसी भक्त ने आश्रम में एक गाय दान दी। शिष्य ये देखकर बहुत खुश हुआ। उसने दौड़ते हुए गुरु से कहा कि गुरुदेव, हमें आज एक बड़ी सौगात मिली है। अब हम रोज ताजा दूध पी सकेंगे।
गुरु शांत चेहरे से मुस्कुराए और बोले कि अच्छी बात है। ईश्वर ने हमें आज के लिए ये सुविधा दी है, तो हम इसे स्वीकार करेंगे। अब शिष्य उत्साहित था। रोज ताजा दूध मिलने लगा, सेहत भी सुधरने लगी और उसे लगता कि जीवन पहले से बेहतर हो गया है।
कुछ दिनों बाद गाय अचानक कहीं चली गई। शिष्य परेशान हो गया, उसे लगने लगा कि जैसे उसकी किसी बड़ी जरूरत को छीन लिया गया हो। वह दुखी होकर गुरु के पास पहुंचा और बोला कि गुरुदेव, आज हमारी गाय कहीं चली गई है, अब हमें ताजा दूध नहीं मिलेगा।
गुरु ने शांत स्वर में कहा कि तो क्या हुआ? ये भी अच्छा है। अब हमें रोज गाय के गोबर की सफाई नहीं करनी होगी। हमारा समय बचेगा और हम भक्ति में अधिक समय दे सकेंगे।
शिष्य हैरान था, जिस बात से वह दुखी था, गुरु उसी में सकारात्मकता देख रहे थे। शिष्य ने कहा कि लेकिन गुरुजी, अब हमें दूध नहीं मिलेगा।
गुरु मुस्कुराए कि बेटा, जो जरूरी है, वह मिलता रहेगा। जो चला गया, वह हमारे लिए आवश्यक नहीं था। जीवन का मूल सूत्र है संतुष्टि। जो है, उसे स्वीकार करो। जो चला जाए, उसे जाने दो। इच्छा जितनी बढ़ाओगे, मन उतना अशांत होगा।
शिष्य धीरे-धीरे गुरु की बात समझने लगा। सुख-दुख तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन समभाव यानी संतुष्टि ही वह स्थायी अवस्था है, जो मन को शांति देती है। यही कारण है कि जो लोग हर परिस्थिति को स्वीकार करते हैं और जो है, उसी में खुशी ढूंढते हैं, उनके जीवन में तनाव कम और शांति ज्यादा रहती है।
लाइफ मैनेजमेंट टिप्स
- इच्छाओं और जरूरतों में फर्क समझें
इच्छाएं असीमित होती हैं, जरूरतें सीमित हैं। जब हम जरूरतों पर आधारित जीवन जीते हैं तो मन हल्का रहता है। हर निर्णय से पहले खुद से पूछें, क्या ये वास्तव में जरूरी है? यदि नहीं, तो उस इच्छा को जाने दें।
- आज जो है, उसकी कद्र करें
अक्सर लोग भविष्य की इच्छाओं के चक्कर में वर्तमान की खुशियों को खो देते हैं। रोज 5 मिनट ये सोचें कि आज आपके पास क्या-क्या अच्छी चीजें हैं, उन पर ध्यान दें, ये भाव संतुष्टि को बढ़ाता है।
- तुलना करना बंद करें
दूसरों से तुलना करना संतुष्टि का सबसे बड़ा दुश्मन है। सोशल मीडिया, पड़ोसी या दोस्त—सबकी जिंदगी अलग है। तुलना करने के बजाय स्वयं की प्रगति पर ध्यान दें।
- परिस्थितियों को स्वीकार करना सीखें
जीवन में हर चीज हमारे नियंत्रण में नहीं है। जब कोई चीज आपके नियंत्रण से बाहर हो, तो उससे लड़ने के बजाय उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। यह भी ठीक है, का भाव अपनाएं, यही सुख-दुख में समभाव की शुरुआत है।
- असफलता को अवसर की तरह देखें
मन अशांत इसलिए भी होता है, क्योंकि हम असफलता को अंत मान लेते हैं। जबकि इस किस्से के गुरु की तरह सकारात्मक पहलू देखना चाहिए। हर नुकसान में कोई न कोई सीख जरूर छिपी होती है। उसे पहचानें।
- साधारण जीवन को अपनाएं
सादगी में ही संतोष है। जितना अधिक हम अपने जीवन को सरल रखते हैं, उतना मन शांत रहता है। अनावश्यक सामान, संबंध या खर्च से दूर रहना चाहिए।
- ध्यान से मन को प्रशिक्षित करें
हर दिन कुछ समय ध्यान करें। इससे मन की चंचलता कम होती है। दिन के अंत में 5 मिनट का स्व-चिंतन करें कि आज किस बात से संतुष्टि मिली और किस इच्छा ने मन को विचलित किया। विचलित करने वाली बातों को नजरअंदाज करें और अच्छी बातों पर ध्यान दें। जो लोग इच्छाओं को नियंत्रित करना सीख लेते हैं, वही समभाव में जीवन जीते हैं और सच्ची शांति का अनुभव करते हैं। यही सरल सूत्र है, जितनी संतुष्टि, उतनी शांति।
