8 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी
- कॉपी लिंक

गोवा के पणजी में 9 दिवसीय इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया का आयोजन चल रहा है। 20-28 नवंबर तक चलने वाली 56वें IFFI में दुनिया भर के फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग पहुंचे रहे हैं और अपना काम दिखा रहा हैं।
बॉलीवुड के फेमस कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा भी इसका हिस्सा बने हैं। इफ्फी में उन्होंने बतौर कास्टिंग डायरेक्टर अपनी जर्नी को दिखाने के लिए स्टॉल लगाया है। मुकेश ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में इफ्फी में स्टॉल लगाने के पीछे के मकसद, अपनी कास्टिंग जर्नी पर बात की है।
साथ ही, उन्होंने दिवंगत एक्टर सुशांत सिंह राजपूत को लेकर बनाई गई अपनी पहली डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म ‘दिल बेचारा’ पर भी बात की। इस दौरान वो इमोशनल होते दिखे। पढ़िए इंटरव्यू का प्रमुख अंश…
IFFI 2025 में आप शामिल हुए हैं। आपका स्टॉल भी लगा है। कैसा एक्सपीरियंस है?
अच्छा लगता है। इफ्फी में स्टॉल लगाने का मेरा जो मकसद था, वो ये है कि यहां विदेशों से भी लोग आते हैं। उनको मालूम चले कि इंडियन कास्टिंग डायरेक्टर कैसे काम करते हैं। उन लोगों तक अपना काम पहुंचाना बहुत जरूरी है।
इफ्फी ऐसी जगह है, जहां आप नए लोगों से मिलते हैं। इसलिए भी स्टॉल लगाया है ताकि लोगों को पता चले कि मैं कितने सालों से काम कर रहा हूं। मैं 18 साल से इंडस्ट्री में काम कर रहा हूं। कास्टिंग एक जिम्मेदारी वाला काम है। मैं चाहता हूं कि लोग मेरे काम को ग्लोबली जाने।

आप पहले कास्टिंग डायरेक्टर हैं, जो इंटरनेशनली रजिस्टर हैं। कास्टिंग डायरेक्टर टर्म को लोगों के बीच पॉपुलर करने का श्रेय आपको जाता है। इसे कैसे देखते हैं?
मैंने बिल्कुल नहीं सोचा था कि मेरी वजह से कास्टिंग डायरेक्टर टर्म लोगों के बीच पॉपुलर हो जाएगा। मुझे लगता था कि इस जॉब को लोग थोड़ा सीरियसली नहीं ले रहे हैं। मैंने अपने काम को दिल से करने की कोशिश की। जब आप काम करते रहते हैं, तब आपको कहां तक पहुंचना है, ये पता नहीं होता है। आपको बस अपना काम शिद्दत से करना होता है।
मुझे बहुत खुशी है कि लोग अब इस काम को सीरियसली लेते हैं। कास्टिंग डायरेक्टर टर्म को इतनी इज्जत मिल रही है। मेरे साथ-साथ कई और लोग इस प्रोफेशन में आगे बढ़ रहे हैं। आज कास्टिंग डायरेक्टर की जॉब फुल फ्लेज करियर के रूप में स्थापित हो गया है। मुझे नहीं पता था कि जिंदगी यहां तक लेकर आएगी।
आपकी पहली डायरेक्टोरियल फिल्म ‘दिल बेचारा’ आपके दिल के बहुत करीब है। क्या यादें हैं?
इस फिल्म को लेकर सुशांत ही याद आता है। मैं हमेशा कहता हूं कि ‘दिल बेचारा’ मेरे लिए बची नहीं है। सुशांत की फिल्म है, उसकी साथ चली गई।
‘दिल बेचारा’ सिर्फ सुशांत के लिए डेडिकेटेड है। ये फिल्म सुशांत के बारे में और उसके इर्द-गिर्द है। ‘दिल बेचारा’ बनी भी सुशांत की वजह से। ये सिर्फ सुशांत के लिए है।

उस फिल्म के बाद आपने कोई दूसरी फिल्म डायरेक्टर नहीं की। आपके डायरेक्शन का काम रुक क्यों गया?
मेरे ख्याल से रुका नहीं है। बीच में मैं एक फिल्म बनाने की तैयारी में था लेकिन मैंने अपनी मां को खो दिया। लाइफ में फिर से रुकावट आई। फिर कास्टिंग का काम इतना ज्यादा बढ़ गया कि जिम्मेदारी बढ़ गई। मैंने इस बीच धुरंधर, किंग, रामायण, तेरे इश्क में, बॉर्डर-2, रोमियो, दिल्ली फाइल्स-3, फैमिली मैन-3, महारानी बहुत सारा प्रोजेक्ट्स किए।
मैं इन प्रोजेक्ट्स को लेकर बहुत बिजी हो गया। मैं वर्कशॉप कर रहा था। मैंने सोचा कि अभी जो लाइफ में चल रहा है, उसे ही कन्टिन्यू करते हैं। जब वक्त मिलेगा और लाइफ अपने आप उस डायरेक्शन में लेकर जाएगी, फिर फिल्म बनाऊंगा।
आप सिर्फ कास्टिंग तक सीमित नहीं हो। आप नए एक्टर्स के लिए खिड़कियां नाम से वर्कशॉप कर रहे हो। ये ख्याल कैसे आया?
मुझे लगा कि जिन एक्टर्स को सिनेमा में मौका नहीं मिल रहा, कम से कम वो नाटक में काम कर सकते हैं। मैं सबके नाटक को प्रोड्यूस कर रहा हूं ताकि लोग फ्री में आकर नाटक देखें। मेरा मानना है कि कुछ ना कुछ करते रहना चाहिए।
मैं लोगों से कहता हूं कि आप शॉर्ट फिल्म बनाना चाहते हैं बनाइए, मैं आपको पैसे दूंगा। बस काम करते रहिए और लगे रहिए।

मुकेश इंडिया के अलावा विदेशों में भी वर्कशॉप का आयोजन करते हैं।
नए लोगों को मौका देना। लगातार काम करते रहने की हिम्मत और ऊर्जा कहां से आती है?
मुझे लगता है कि जब आप गरीब घर से आते हैं, तब आपको रोज काम करने की आदत होती है। मेरे पिताजी एक जगह नौकरी करते थे और शाम को प्राइवेट काम भी करते थे। उनके अंदर जो शिद्दत थी, वो मेरे अंदर है।
मैं ऐसा सोचता हूं कि 24 घंटे काम करो। काम नहीं करोगे तो खाना नहीं मिलेगा। आगे बढ़ना है तो रोज काम करना पड़ेगा।
