अगर आप रेगुलर ग्राहक हैं, तो डिस्काउंट से बाहर रखा जा सकता है क्योंकि आप वैसे भी खरीदेंगे।
श्रुति और समृद्धि सहेलियां हैं। दोनों ने भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन से राजा भोज एयरपोर्ट तक जाने के लिए एक ही समय पर ऑनलाइन बाइक राइड बुक की। श्रुति को इस ट्रिप के लिए किराया 234 रुपए दिखाया जबकि समृद्धि को 249 रुपए यानी 15 रुपए का अंतर। ऐसा
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ये अंतर केवल राइड बुकिंग पर ही नहीं है बल्कि फूड डिलीवरी, ट्रैवल या ई-कॉमर्स जैसे प्लेटफॉर्म यूजर्स को उनके मोबाइल डिवाइस के आधार पर अलग-अलग कीमतें दिखा रहे हैं। यानी अगर आप आईफोन यूजर हैं, तो संभव है कि आप एक ही सेवा के लिए एंड्रॉइड यूजर की तुलना में ज्यादा पैसा चुका रहे हों और आपको इसका अंदाजा तक न हो।
श्रुति और समृद्धि के एक्सपीरियंस को समझने के लिए भास्कर ने एक ही लोकेशन और समय पर एक जैसे प्रोडेक्ट या सर्विस को एंड्रॉइड और आईफोन डिवाइस से एक साथ ऑर्डर किया, तो कीमतों में अंतर नजर आया। साथ ही इस मसले पर एक्सपर्ट से भी बात की। पढ़िए, रिपोर्ट…

अब तीनों प्रयोगों का सिलसिलेवार रिजल्ट जानिए
बाइक राइड एप पर 18 किमी की दूरी के लिए 15 रुपए का अंतर भास्कर ने भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन से राजा भोज एयरपोर्ट जाने के लिए एक ही समय पर दो अलग-अलग फोन से बाइक राइड बुक की। ये दूरी करीब 18 किमी है। आईफोन से बुकिंग करने पर किराया 249 रुपए दिखाया गया। वहीं, एंड्रॉयड से बुकिंग करने पर किराया 234 रुपए दिखाया गया यानी 15 रुपए का अंतर।
बिना किसी अतिरिक्त सुविधा या बदले हुए रूट के, सिर्फ डिवाइस के आधार पर कीमत में 6% से ज्यादा का उछाल था। हमने इसी प्रयोग को कैब बुकिंग के साथ दोहराया। दूसरे एप पर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन से एयरपोर्ट तक मिनी कैब बुक करने पर आईफोन में किराया 277 रुपए दिखाया गया, जो यह संकेत दे रहा था कि प्रीमियम डिवाइस यूजर्स को कैब सेवाओं के लिए भी अधिक भुगतान करना पड़ सकता है।

फूड डिलीवरी में भी 6 रुपए का अंतर इसी तरह फूड डिलीवरी एप से भी 1.5 किमी दूर एमपी नगर के एक रेस्टोरेंट में एक जैसे खाने का ऑर्डर दिया। इसमें वेज चीज पिज्जा, पनीर टिक्का पिज्जा, मिंट मोजितो और ब्लूबेरी मोजितो शामिल था। आईफोन से किए ऑर्डर का बिल बना 2,073 रुपए और एंड्रॉइड का बिल बना 2,067 रुपए।
हालांकि, यह अंतर बाइक राइड जितना बड़ा नहीं था, लेकिन यह इस बात की पुष्टि करता था कि यह रणनीति फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स पर भी लागू होती है। एक ही रेस्टोरेंट, एक ही ऑर्डर और एक ही डिलीवरी एड्रेस होने के बावजूद कीमत में अंतर साफ था।

ग्रॉसरी शॉपिंग पर भी ‘महंगा’ फोन भारी इसी तरह हमारी पड़ताल का आखिरी पड़ाव था तेजी से लोकप्रिय हो रहे क्विक-कॉमर्स या ग्रॉसरी डिलीवरी ऐप्स। हमने दिवाली फेस्टिव ऑफर के दौरान एक ऐप पर चल रही सेल का फायदा उठाने की कोशिश की। एक ग्रॉसरी एप से चॉकलेट के दो बॉक्स ऑर्डर किए। दोनों ही फोन पर डिलीवरी का अनुमानित समय 11 मिनट दिखाई दिया।
आईफोन पर इन चॉकलेट के बॉक्स का बिल बना 958 रुपए और एंड्रॉइड पर ये बिल बना 944 रुपए। यानी दोनों फोन से किए ऑर्डर में 14 रुपए का अंतर दिखाई दिया। इससे साफ है कि सिर्फ कैब या फूड डिलीवरी पर नहीं बल्कि रोजमर्रा की जरूरत का सामान खरीदते समय भी आपका फोन आपकी जेब ढीली कर सकता है।

समझिए ‘डायनामिक प्राइसिंग’ का खेल इन चौंकाने वाले नतीजों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया- आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? इसका जवाब हमें मिला आईटी विशेषज्ञ यशदीप चतुर्वेदी से। उन्होंने बताया कि यह सब ‘डायनामिक प्राइसिंग ऐल्गोरिद्म’ का कमाल है।
यशदीप चतुर्वेदी बताते हैं, ‘फूड, ग्रॉसरी या कैब डिलीवरी एप्स में डायनामिक प्राइसिंग ऐल्गोरिद्म काम करता है। इसका मतलब यह है कि कीमतें फिक्स नहीं होतीं, बल्कि कई कारकों के आधार पर लगातार बदलती रहती हैं, जैसे- समय, लोकेशन, डिवाइस का प्रकार, उस समय की डिमांड और यूजर की पुरानी हिस्ट्री।
आईफोन यूजर मतलब ‘प्रीमियम ग्राहक’ इस खेल का सबसे बड़ा आधार यूजर की प्रोफाइलिंग है। जब कोई व्यक्ति एंड्रॉयड या आईफोन पर किसी ऐप पर रजिस्टर करता है, तो वह अपनी व्यक्तिगत जानकारी दर्ज करता है। यही जानकारी इन कंपनियों के बिजनेस मॉडल का आधार बनती है। अगर किसी प्लेटफॉर्म के ऐल्गोरिद्म को यह पता चलता है कि यूजर आईफोन इस्तेमाल कर रहा है, तो उसे तुरंत ‘प्रीमियम सेगमेंट’ का ग्राहक मान लिया जाता है।
कंपनियों की धारणा है कि आईफोन यूजर्स की खर्च करने की क्षमता अधिक होती है और वे कीमत को लेकर कम संवेदनशील होते हैं। इसी धारणा के कारण ऐल्गोरिद्म उन्हें कभी-कभी थोड़ी ज्यादा कीमत दिखा सकता है। कंपनियां लगातार अपने यूजर्स के डेटा का विश्लेषण करती हैं, जैसे कि वे कितना खर्च करते हैं, कब ऑर्डर करते हैं और किस तरह के ऑफर्स पर प्रतिक्रिया देते हैं।

प्राइज प्रोफाइल तैयार कर रही कंपनियां विशेषज्ञों के मुताबिक, अकाउंट रजिस्ट्रेशन, ईमेल, ऑनलाइन खरीदारी, वेबसाइट पर रुकने का समय, माउस मूवमेंट, स्क्रॉलिंग, वीडियो देखने की आदत जैसे संकेतों से कंपनियां आपका प्राइज प्रोफाइल बना लेती हैं। ये वह डेटा आधारित अनुमान है, जिससे कंपनियां यह जानती हैं कि कोई ग्राहक किसी प्रोडक्ट या सर्विस के लिए अधिकतम कितनी कीमत देने को तैयार है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, एआई आपके व्यवहार से आपकी प्राइज सेंसेटिविटी यानी कीमत को लेकर आपकी प्रतिक्रिया मापता है। यदि आप प्रोडक्ट जल्दी चाहते हैं तो फास्ट डिलीवरी पर ज्यादा कीमत लगेगी। अगर आप रेगुलर ग्राहक हैं, तो डिस्काउंट से बाहर रखा जा सकता है क्योंकि आप वैसे भी खरीदेंगे।

दूसरे देशों में कानून, लेकिन हमारे देश में नहीं विशेषज्ञ बताते हैं कि कई अमेरिकी राज्यों ने एआई आधारित प्राइजिंग को रेगुलेट करने के लिए कदम उठाए हैं। न्यूयॉर्क ने बिना बताए ऐल्गोरिद्म से तय कीमतों पर रोक लगाई है। ओहियो में 5 मिलियन डॉलर से ज्यादा कमाने वाली कंपनियों को यह बताना जरूरी है कि कीमत एआई से तय हुई है या नहीं।
ब्रिटेन में नया कानून कंपनियों पर गलत डिजिटल प्राइजिंग के लिए वैश्विक राजस्व का 10 फीसदी तक जुर्माना लगाने की अनुमति देता है। भारत में फिलहाल सर्विलांस यानी एआई आधारित मूल्य निर्धारण को लेकर कोई साफ कानून नहीं है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 और सूचना प्रौद्योगिक अधिनियम 2000 डेटा के दुरुपयोग पर सामान्य सुरक्षा प्रदान करते हैं।
कंपनियों द्वारा ऐल्गोरिद्म या एआई के जरिए ग्राहकों के व्यवहार का विश्लेषण कर अलग-अलग कीमत तय करने पर कोई सीधी रोक नहीं है। 2023 में पारित डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम उपभोक्ता की सहमति से डेटा संग्रह और उसके उपयोग पर नियंत्रण देता है, लेकिन इसमें भी एआई के जरिए मूल्य निर्धारण जैसे उभरते मामलों पर स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं हैं।
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