Deepotsav 2025, the people of Braj started worshipping Govardhan parvat at the behest of Lord Krishna. goverdhan puja vidhi | गोवर्धन पूजा आज: दीपोत्सव का पांचवां दिन, भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर ब्रज के लोगों ने शुरू की थी गोवर्धन पर्वत की पूजा

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5 घंटे पहले

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आज (22 अक्टूबर, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा) दीपोत्सव के पांचवें दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा है। इस पर्व की कहानी भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। गोवर्धन पूजा खासतौर पर कृषि, खेती और दूध व्यापार से जुड़े लोगों के लिए महापर्व की तरह है। इस साल कार्तिक मास की अमावस्या दो दिन थी, इस कारण दीपोत्सव 6 दिनों का है। कल छठे दिन भाई दूज मनाई जाएगी।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, गोवर्धन पूजा पर्व मनाने के लिए भक्त मथुरा और गिरिराज जी पर्वत पहुंचते हैं। गिरिराज जी की पूजा और परिक्रमा करते हैं। जो लोग गिरिराज नहीं जा पाते हैं, वे अपने आंगन में ही गाय के गोबर से गिरिराज जी बनाकर पूजा करते हैं।

ऐसे कर सकते हैं घर पर ही गोवर्धन पर्वत की पूजा

  • गाय का गोबर लेकर आएं और उससे पर्वत की आकृति बनाएं। इसे गोवर्धन पर्वत मानकर फूलों से सजाएं।
  • दूध से बने मीठे पकवान का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें।
  • पूजा के अंत में जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा मांगे, फिर प्रसाद बांटें और खुद भी लें।
  • इस तिथि पर किसान अपने पशुओं की पूजा भी करते हैं। पशुओं को सजाते हैं। गोवर्धन पूजा हमें प्रकृति के लिए आभार मानने की प्रेरणा देने वाला पर्व है।

ये है गोवर्धन पूजा की कहानी

द्वापर युग में श्रीकृष्ण माता यशोदा और नंद बाबा के साथ ब्रज में रह रहे थे। उन दिनों अच्छी बारिश के लिए ब्रज के लोग देवराज इंद्र का पूजन करते थे।

इंद्र को इस बात की वजह से घमंड हो गया था। इंद्र का अहंकार दूर करने के लिए बालकृष्ण ने ब्रज के लोगों को समझाया कि वे इंद्र की नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करें, क्योंकि ब्रज लोगों की गायों का भरण-पोषण गोवर्धन पर्वत से ही होता है और गायों के दूध से ब्रज के लोगों की जीविका चलती है।

सभी लोगों को बालकृष्ण की ये बात समझ आ गई और उन्होंने इंद्र की पूजा बंद कर दी। इससे इंद्र को गुस्सा आ गया। उन्होंने ब्रज क्षेत्र में तेज बारिश शुरू कर दी।

बारिश की वजह से ब्रज में पानी-पानी हो गया था। तब सभी लोगों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। गांव के लोग पर्वत के नीचे खड़े हो गए। लगातार सात दिनों तक बारिश होती रही, इसके बाद जब इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने बारिश बंद की और श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस घटना के बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई है।

माना जाता है कि इस घटना बाद ब्रज के लोगों ने श्रीकृष्ण को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया था। ये परंपरा आज भी निभाई जाती है।

श्रीकृष्ण की भी करें विशेष पूजा

गोवर्धन पूजा पर्व पर भगवान श्रीकृष्ण की भी विशेष पूजा जरूर करें। बाल गोपाल का दूध, दही, घी, जल से अभिषेक करें।

अभिषेक के बाद पीले चमकीले कपड़े पहनाएं। भगवान का फूलों से श्रृंगार करें। चंदन से तिलक लगाएं। मोर पंख अर्पित करें।

धूप-दीप जलाएं, कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करें। माखन-मिश्री और तुलसी का भोग लगाएं। पूजा के अंत में क्षमा याचना करें। इसके बाद प्रसाद बांटें और खुद भी ग्रहण करें।

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