दिवाली के पर्व पर जहां घर-आंगन में महालक्ष्मी की पूजा और सजावट की तैयारियां हो रही हैं, वहीं उज्जैन के चक्रतीर्थ श्मशान में देशभर से आए तांत्रिक और अघोरी मंत्र-यंत्र और टोटकों के जरिए लक्ष्मी प्राप्ति के लिए साधना में जुटे हैं। रातों को जलती चिताओं क
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यह अनूठी तंत्र साधना 16 अक्टूबर से शुरू हुई है, जो दिवाली की रात 20 अक्टूबर तक चलेगी। देश भर से पहुंचे तांत्रिक पांच दिन तक श्मशान में रहकर साधना कर रहे हैं। रात 12 बजे से शुरू होने वाली ये तंत्र क्रियाएं देर रात तक चलती हैं।

देशभर से पहुंचे तांत्रिक पांच दिन तक श्मशान में रहकर साधना कर रहे हैं।
रोजाना करीब तीन घंटे तक साधना करते हैं स्थानीय तांत्रिक भय्यू महाराज ने बताया कि वे भैरव मंदिर के पास जलती चिता से कुछ दूरी पर रोजाना करीब तीन घंटे तक साधना करते हैं। साधना में नींबू, मिर्च, मदिरा, मावा, फल, सिंदूर, अबीर, दीपक, फूल और कंडों का इस्तेमाल किया जाता है। माना जाता है कि इससे लक्ष्मी माता प्रसन्न होकर साधक को धन और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

तंत्र साधना 16 अक्टूबर से शुरू होकर दिवाली की रात 20 अक्टूबर तक चलेगी।
कुबेर और उलूक साधना का रहस्य भय्यू महाराज बताते हैं कि दीपावली के दौरान साधक अपने-अपने मकसद के अनुसार पूजन करते हैं। कोई भैरव पूजन करता है, कोई काली या लक्ष्मी प्राप्ति साधना। कई तांत्रिक धन प्राप्ति के लिए “कुबेर साधना” करते हैं।
वहीं कुछ साधक “उलूक साधना” भी करते हैं, जिसमें उल्लू को लक्ष्मी का वाहन मानकर उसकी प्रतीकात्मक पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि यह साधना अमावस्या की रात में की जाए तो व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
उज्जैन धार्मिक ही नहीं सिद्ध नगरी भी पंडित महेश पुजारी कहते हैं, उज्जैन केवल धार्मिक नगरी ही नहीं, बल्कि “सिद्ध नगरी” भी है। यहां सात्विक और तामसिक दोनों ही तरह की साधनाएं मान्य हैं। महाकाल मंदिर के दक्षिणमुखी स्वरूप के कारण उज्जैन का श्मशान तंत्र क्रियाओं के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है।
चौदस और अमावस्या की रात को तांत्रिकों के लिए यह स्थान अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। दीपावली की अमावस्या की रात को श्मशान में साधकों का जमावड़ा लगता है, जहां घंटों तंत्र क्रिया, भैरव पूजन और विशेष साधनाएं चलती हैं।

चौदस और अमावस्या की रात को तांत्रिकों के लिए यह स्थान शक्तिशाली माना जाता है।
साधना में कछुए और कौड़ी साधना का महत्व दीपावली पर चक्रतीर्थ श्मशान में “कछुए का पूजन” भी किया जाता है। कछुआ भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और स्थिरता का प्रतीक है। यहां पांच दिन तक कौड़ी साधना, रत्ती साधना, कुबेर साधना, गणेश साधना और गौरी-गणेश साधना जैसी अलग-अलग विधाएं की जाती हैं। कौड़ी साधना से धन की प्राप्ति होती है, जबकि रत्ती साधना व्यापार में स्थिरता और लाभ के लिए की जाती है।

प्रदोष काल में महालक्ष्मी पूजन की विधि पंडित अमर डिब्बेवाला ने बताया कि इस वर्ष 20 अक्टूबर को प्रदोष काल शाम 5:54 से रात 8:24 बजे तक रहेगा। इस दौरान महालक्ष्मी पूजन सर्वोत्तम रहेगा। पूर्व या पश्चिम दिशा में गोबर और गोमूत्र से चौका लेपन कर लाल वस्त्र बिछाएं, उस पर माता महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की मूर्तियां या चांदी के सिक्के स्थापित करें।
गंगाजल, पंचामृत और सुगंधित द्रव्यों से अभिषेक कर श्री सूक्त या कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद दीपक जलाकर धूप, नैवेद्य और आरती करें।
