- Hindi News
- National
- Diwali 2025; Ramayana Ayodhya Kand Story | Rama Kausalya Manthara Bharat
12 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

संवाद-1 : कैकेयी-मंथरा श्रीराम के राज्याभिषेक से पहले दासी मंथरा ने रानी कैकेयी से कहा- राम राजा बन गए तो आप दासी जैसी हो जाएंगी, भरत का अपमान होगा। कैकेयी बोलीं- राम मुझसे बहुत स्नेह करते हैं, वे भरत का भी अनादर नहीं करेंगे।
मंथरा ने कहा- राजसत्ता बदलते ही परिस्थितियां बदल जाती हैं। भरत बचपन से मामा के यहां रहे, इसलिए पिता दशरथ का उनसे कम स्नेह है। सौतन कौशल्या भी बैर निकालेंगी। इन कुतर्कों से कैकेयी की मति भ्रष्ट हो गई। उनमें असुरक्षा और ईर्ष्या पैदा हो गई।
चुनौती: परिवार, समाज व सोशल मीडिया पर मंथरा जैसे किरदार आज भी तुलना, गलतफहमी व ईर्ष्या फैलाते हैं। सीख : स्वविवेक सबसे महत्वपूर्ण होता है। किसी के कहने-सुनने भर से अपनी धारणा न बनाएं। तथ्य और तर्क के आधार पर फैसले लें, वरना दुष्परिणाम होंगे।

संवाद-2 : कैकेयी-दशरथ रानी कैकेयी को कोपभवन में देखकर राजा दशरथ ने कहा- जिस श्रीराम को दो घड़ी भी न देखने पर मैं जीवित नहीं रह सकता, उसकी शपथ खाकर कहता हूं कि आप जो कहेंगी, उसे पूर्ण करूंगा। कैकेयी बोलीं- आपने दो वर देने की प्रतिज्ञा की थी, वही चाहती हूं।
पहला- भरत का राज्याभिषेक। दूसरा- राम को 14 वर्ष का वनवास। {दशरथ ने कहा- आप ऐसे कथन मत निकालिए, मैं वचन से बंधा हूं, इसलिए पहला वर स्वीकार करता हूं, पर आपके पांव पड़ता हूं, राम को शरण दे दीजिए।
चुनौती: जब पुरानी प्रतिज्ञा और तत्काल भावनात्मक दबाव राज-धर्म/न्याय से टकराए, तो सही कैसे चुनें? सीख: नेतृत्व को विवशता नहीं, दृढ़ता दिखानी चाहिए। उसकी असली ताकत सही समय पर ‘ना’ कहने में है, अन्यथा मजबूत तंत्र भी ढह जाता है।

संवाद-3 : भरत-कैकेयी कैकेयीदेश में जैसे ही अयोध्या के दूत ने तुरंत प्रस्थान का समाचार सुनाया, तो भरत-शत्रुघ्न 7 रातों की यात्रा करके 8वें दिन अयोध्या पहुंच गए। पिता दशरथ को कक्ष में न पाकर जब भरत ने माता कैकेयी से कारण पूछा, तो उन्होंने वृतांत सुना दिया।
ऐसा सुनकर भरत ने आक्रोश में कहा- यदि श्रीराम आपको माता के रूप में न देखते होते, तो अभी आपका त्याग कर देता। मैं ऐसे राज्य को ठोकर मारता हूं। मैं वन से अपने निष्पाप भ्राता को वापस लौटा लाऊंगा और उनका दास बनकर रहूंगा।
चुनौती: कभी-कभी हमारे शुभचिंतक गलत तरीका अपनाकर हमें लाभ पहुंचाते हैं, ऐसे में क्या उचित है? सीख: उस स्वजन को उनकी गलती का अहसास जरूर कराएं। अनुचित लाभ को तुरंत अस्वीकार कर दें। जहां तक संभव हो उसे सुधारने की कोशिश करें।

संवाद-4 : श्रीराम-भरत वन में जैसे ही भरत ने श्रीराम को देखा तो उनके आंसू निकल पड़े। श्रीराम ने उन्हें गले लगा लिया। भरत ने कहा- मैं आपके चरणों में सिर रखकर याचना करता हूं कि आप राज्य ग्रहण करें।
श्रीराम ने कहा- महाराज दशरथ बहुत लोगों के सामने हम दोनों के लिए अलग-अलग दो आज्ञाएं देकर स्वर्ग सिधारे हैं। पिता ने हमारे हिस्से में जो दिया है, हमें उसी का उपभोग करना चाहिए। मृत्यु साथ ही चलती है, साथ ही बैठती है और मनुष्य के साथ ही वापस लौटती है। इसलिए तुम शोक का त्याग करो।
चुनौती: शोक/अपराधबोध/प्रेम में आकर नियम पलटने का दबाव, “अभी लौट आओ’… जैसे धर्म संकट पैदा होना। सीख: करुणा रहे, पर नियम और मर्यादा पहले है। सहानुभूति दिखाएं, पर प्रक्रिया न तोड़ें, यही सबके लिए उचित है। अवसर जरूर आएगा, इंतजार करें।
(श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में अयोध्याकांड के सर्ग से ये संवाद लिए गए हैं। कल पढ़ें तीसरे भाग में अरण्यकांड…)