कासरगोड2 घंटे पहलेलेखक: टीके हरीश
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तस्वीर में जिस लकड़ी के सांचे पर दीये रखे हैं, उसे ही पोलियंथ्रम पाला कहा जाता है।
केरल के उत्तरी छोर पर स्थित कासरगोड जिला भाषाओं और संस्कृतियों का संगम है। सात भाषाओं की धरती कही जाने वाली यह जगह अपनी विविध परंपराओं के लिए जानी जाती है। यहीं के तूलूभाषी क्षेत्र में दिवाली के दिन एक अलग त्योहार मनाया जाता है, जिसे ‘पोलियंथ्रा’ कहा जाता है।
कासरगोड जिले के हजारों घरों और शास्ता मंदिरों में दिवाली के दिन बालि पूजा की जाती है। एझिलम पाला पेड़ की 7 शाखाओं से लकड़ी का दीपस्तंभ बनाया जाता है, जिसे ‘पोलियंथ्रम पाला’ कहा जाता है।
पोलियंथ्रम को आंगन, कुएं या अस्तबल के पास सजाया जाता है। उस पर फूल, दीये और सजावट की जाती है। पूजा में मुरमुरा (लावा चावल) का भोग चढ़ाया जाता है।
तूलूनाडु के लोग मानते हैं कि इन तीन दिनों में राजा बालिंद्र (महाबली) प्रजा से मिलने आते हैं। इस अवसर पर लोग नए कपड़े पहनते हैं। घर सजाते हैं। दीप जलाकर महाबली का स्वागत करते हैं।
चिंगम महीने का दूसरा बड़ा त्योहार
इस पर्व की कथा भारत के अन्य हिस्सों में मनाई जाने वाली दिवाली से अलग है। इसका संबंध भगवान विष्णु के वामन अवतार और राजा महाबली की कथा से जुड़ा है। कथा के अनुसार, वामन अवतार के समय जब भगवान विष्णु ने महाबली को पाताल भेजा, तो उन्हें वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने की अनुमति दी। यही प्रसंग ओणम त्योहार का भी आधार है।
अंतर सिर्फ इतना है कि ओणम मलयालम महीने चिंगम (अगस्त-सितंबर) में मनाते हैं, जबकि पोलियंथ्रा दिवाली के दिन यानी थुलाम महीने की अमावस्या को मनाया जाता है।
बालिंद्र संधि से होता है गीत-संगीत
पूजा के साथ एक विशेष गीत और नृत्य होता है, जिसे ‘बालिंद्र संधि’ कहते हैं। गीत में महाबली के प्रति भक्ति और स्वागत के भाव होते हैं- ‘हे बली महाराज, यह भूमि आपकी है। सात समुंदर पार से भी आएं, हमारा आतिथ्य स्वीकार करें।’ यह उत्सव तीन दिन तक चलता है। अंत में राजा को विदा करते हुए गाया जाता है- ‘अगले वर्ष जल्दी आना।’ एक मान्यता यह भी- महाबली ने काली को स्वर्ण जंजीरों में बांध दिया था
परंपरा के अनुसार, काली महाबली को जीतने आई थीं। महाबली ने उन्हें स्वर्ण, रजत व लौह की जंजीरों से बांध दिया। फिर भगवान विष्णु वामन रूप में आए और महाबली को जीता। बता दें, केरल में सामान्यतः दिवाली बड़े पैमाने पर नहीं मनाई जाती, पर अब प्रवासी मजदूरों व उत्तर भारतीय समुदायों के कारण इसका उत्साह बढ़ा है।