15 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

आज नवरात्रि की अंतिम तिथि आश्विन शुक्ल नवमी है। इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा की पूजा करने के साथ ही देवी कथाएं पढ़ने-सुनने की परंपरा है। देवी दुर्गा ने समय-समय पर अपने भक्तों के कष्ट दूर करने के लिए अलग-अलग अवतार लिए हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए देवी के अवतारों की 3 कथाएं…
श्रीकृष्ण और देवी योगमाया का अवतार
द्वापर युग में भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेने वाले थे। एक ओर कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और दूसरी ओर गोकुल में नंद बाबा के यहां यशोदा के गर्भ से योगमाया ने अवतार लिया। वसुदेव कंस के कारागार से बालक कृष्ण को लेकर गोकुल पहुंचे। उन्होंने कृष्ण को यशोदा जी के पास छोड़ दिया और वहां से नन्हीं बालिका को लेकर कारागार लौट आए थे।
कंस को जब देवकी की आठवीं संतान के बारे में खबर मिली तो वह तुरंत ही कारागार में पहुंच गया। कंस ने देवकी के पास उस नन्ही बालिका को उठा लिया और जैसे ही कंस ने उसे मारने की कोशिश की, बालिका उसके हाथ से छूटकर चली गईं। देवी ने जाने से पहले कंस से कहा था कि तुम्हारा वध करने वाला जन्म ले चुका है।
देवी दुर्गा ने तोड़ा देवताओं का घमंड
पौराणिक कथा है कि देवताओं को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। दुर्गा मां ने देवताओं का घमंड तोड़ने के लिए एक तेजपुंज के रूप में प्रकट हुईं। विराट तेजपुंज को देखकर सभी देवता हैरान थे। उन्होंने इस तेजपुंड का रहस्य जानने के लिए इंद्र ने पवन देव को भेजा।
पवन देव खुद को सबसे शक्तिशाली देवता मानते थे, तेजपुंज ने वायुदेव के सामने एक तिनका रखा और उस तिनके को उड़ाने की चुनौती दी। पूरी ताकत लगाने के बाद भी पवन देव उस तिनके को हिला न सके। पवन देव के बाद अग्निदेव उस तेजपुंज का रहस्य जानने पहुंचे। देवी ने उन्हें चुनौती दी कि वे इस तिनके को जलाकर दिखाएं, लेकिन अग्नि देव भी असफल हो गए।
इन दोनों देवताओं की हार के बाद देवराज इंद्र का घमंड टूट गया और उन्होंने तेजपुंज की उपासना की। इंद्र की उपासना से प्रसन्न होकर देवी मां वहां प्रकट हुईं और घमंड न करने की सलाह दी।
देवी भ्रामरी और अरुण दैत्य की कथा
अरुण नाम के एक दैत्य ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। अरुण ने वर मांगा कि युद्ध में कोई मुझे मार न सके, किसी अस्त्र-शस्त्र से मेरी मृत्यु न हो, कोई भी महिला-पुरुष मुझे मार न सके, न ही दो और चार पैर वाला कोई भी जीवन मेरा वध कर सके और मैं देवताओं पर विजय प्राप्त कर सकूं।
ब्रह्मा जी ने उसे ये सारे वरदान दे दिए। वरदान से वह बहुत शक्तिशाली हो गया था। उसका आतंक बढ़ने लगा। उसने देवताओं को भी पराजित कर दिया। देवताओं को दुखी देखकर आकाशवाणी हुई कि सभी देवता देवी भगवती को प्रसन्न करें। इसके बाद देवताओं ने देवी के लिए तप किया।
तपस्या से प्रसन्न होकर देवी प्रकट हुईं। देवी के छह पैर थे। देवी चारों ओर से असंख्य भ्रमरों यानी एक विशेष प्रकार की बड़ी मधुमक्खी से घिरी हुई थीं। भ्रमरों से घिरी होने के कारण देवताओं ने उन्हें भ्रामरी देवी कहकर पुकारा। देवी के असंख्य भ्रमर दैत्य अरुण के शरीर पर चिपक गए और उसे काटने लगे। अरुण असुर भ्रमरों के हमले से नहीं बच पाया और उसका वध हो गया।