Sawan month till 9th August, story of Lord shiva avtaar in hindi, story of sharabh avtar | सावन महीना 9 अगस्त तक: श्रीहरि की तरह शिव ने भी लिए हैं अवतार, नृसिंह का क्रोध शांत करने के लिए प्रकट हुए थे शरभदेव

2 घंटे पहले

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अभी सावन महीना चल रहा है और ये महीना 9 अगस्त तक रहेगा। इस महीने में पूजा के साथ ही भगवान शिव की कथाएं पढ़ने-सुनने का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों के मुताबिक जैसे भगवान विष्णु ने समय-समय पर अवतार लिए हैं, ठीक इसी तरह शिव जी ने भी 19 अवतार लिए हैं। जानिए भगवान शिव के 10 प्रमुख अवतार और उनसे जुड़ी कथाएं-

शरभ अवतार – जब शिव ने शांत किया भगवान नृसिंह का क्रोध

भगवान विष्णु ने जब हिरण्यकश्यपु का वध करने के लिए नृसिंह रूप धारण किया तो हिरण्यकश्यपु के वध के बाद भी भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ। सृष्टि में असंतुलन की स्थिति बनने लगी। तब शिव जी ने शरभ अवतार लिया। शरभ अवतार का स्वरूप विचित्र था, इसमें भगवान का आधा शरीर आधे शरभ आठ पैरों वाला ताकतवर जीव का और आधा शरीर पक्षी की तरह था। शरभदेव ने नृसिंह को शांत करने की कोशिश की, लेकिन जब वे नहीं माने तो शिव ने अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटा और आकाश में उड़ गए। इसके बाद भगवान नृसिंह शांत हुए।

पिप्पलाद मुनि – जिसने शनिदेव को दिया था शाप पिप्पलाद मुनि, दधीचि ऋषि के पुत्र, शिव जी के अवतार माने जाते हैं। जब उन्हें पता चला कि बचपन में उनके पिता शनि के अशुभ प्रभाव के कारण बिछड़ गए थे, तो उन्होंने शनिदेव को शाप देकर आकाश से गिरा दिया था। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद मुनि ने शनि को क्षमा किया, लेकिन उन्होंने शनिदेव के सामने ये शर्त रखी कि अब से वे किसी भी व्यक्ति को 16 वर्ष की उम्र तक कोई पीड़ा नहीं देंगे। शनि इस बात के तैयार हो गए और उन्हें अपना स्थान फिर से मिल गया।

नंदी अवतार – शिव के सबसे प्रिय सेवक शिलाद मुनि एक ब्रह्मचारी ऋषि थे। उन्होंने विवाह नहीं किया था तो एक दिन उनके पितरों ने शिलाद मुनि से संतान पैदा करने के लिए कहा, ताकि उनका वंश आगे बढ़ सके। इसके बाद शिलाद ने संतान पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की। तब शिव जी ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय बाद हल चलाते समय शिलाद मुनि को भूमि से एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। बाद में जब नंदी बड़े हुए तो शिव जी ने उन्हें अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर और शिव जी के प्रिय बन गए।

भैरव अवतार – जब शिव ने ब्रह्मा का अभिमान तोड़ा भैरव देव भी शिव जी के स्वरूप हैं। पौराणिक कथा है कि एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी खुद को श्रेष्ठ बता रहे थे, विवाद कर रहे थे। तभी वहां शिव जी तेजपुंज से एक व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए। उस समय ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम मेरे पुत्र हो। ये सुनकर शिव जी को क्रोध आ गया। तब शिव जी ने उस व्यक्ति से कहा कि काल की तरह दिखने की वजह से आप कालराज हैं और भीषण होने से भैरव हैं। कालभैरव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था। इसके बाद काशी में कालभैरव को ब्रह्महत्या के दोषी से मुक्ति मिली थी।

अश्वत्थामा – महाभारत का अमर योद्धा महाभारत के समय द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को शिव जी का ही अंशावतार माना जाता है। द्रोणाचार्य ने शिव जी को पुत्र रूप में पाने के लिए तप किया था। शिव जी ने उन्हें वर दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतार लेंगे। महाभारत युद्ध के अंत में अश्वत्थामा और अर्जुन ने एक-दूसरे को खत्म करने के लिए ब्रह्मास्त्र निकाल लिया था। उस समय वेद व्यास के समझाने पर अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र को वापस लेने की विधि नहीं जानते थे, तब अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र को अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर छोड़ दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से उत्तरा के गर्भ में पल रहे परीक्षित की रक्षा की। इसके बाद श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा की मणि निकाल ली और कलियुग के अंत भटकने का शाप दे दिया।

वीरभद्र – सती के आत्मदाह पर प्रकट हुआ शिव का क्रोध देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी देह त्याग दी थी। जब ये बात शिव जी को मालूम हुई तो उन्होंने क्रोधित होकर अपनी जटाओं से वीरभद्र को उत्पन्न किया और वीरभद्र को आदेश दिया कि वह दक्ष का अंत कर दे। वीरभद्र ने यज्ञ स्थल पर जाकर दक्ष का सिर काट दिया। बाद में सभी देवताओं की प्रार्थना पर शिव जी ने दक्ष के शरीर पर बकरे का सिर लगाकर उसे पुनर्जीवित किया था।

दुर्वासा मुनि – क्रोध के प्रतीक, शिव के अंश से जन्मे सती अनुसूइया और उनके पति महर्षि अत्रि ने पुत्र प्राप्त करने के लिए तप किया था। तप से प्रसन्न होकर उनके सामने ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी प्रकट हुए थे। तब तीनों भगवानों ने कहा था कि हमारे अंश से आपके यहां तीन पुत्र पैदा होंगे। इसके बाद अनुसूइया और अत्रि के यहां ब्रह्मा जी के अंश से चंद्र, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय और शिव जी के अंश से दुर्वासा मुनि ने जन्म लिया था।

हनुमान – राम जी का परम भक्त शिव जी का ये अवतार हनुमान जी को शिव जी का अंशावतार माना जाता है। सीता जी के वरदान से वे अजर-अमर हैं। हनुमान जी कभी बूढ़े नहीं होंगे और अमर रहेंगे। वे शिव के गुणों, बल, भक्ति और सेवा के प्रतीक हैं।

किरात अवतार – जब शिव ने अर्जुन की परीक्षा ली महाभारत में अर्जुन शिव जी से दिव्यास्त्र पाने के लिए तप कर रहे थे। उस समय एक असुर सूअर के रूप में अर्जुन को मारने के लिए पहुंच गया था। जब अर्जुन ने सूअर पर बाण छोड़ा तो उसी समय एक किरात वनवासी ने भी एक बाण सूअर को मारा था। एक साथ अर्जुन और किरात के दो बाण उस सूअर को लगे। इसके बाद अर्जुन और किरात के बीच सूअर पर अधिकार पाने के लिए युद्ध हुआ था। युद्ध में अर्जुन की वीरता देखकर शिव जी प्रसन्न हुए और अर्जुन को दिव्यास्त्र दिया था।

अर्धनारीश्वर – शिव और शक्ति का संयुक्त स्वरूप शिवपुराण के मुताबिक, ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर दी थी, लेकिन सृष्टि आगे नहीं बढ़ रही थी। तभी ब्रह्मा जी के सामने आकाशवाणी हुई कि उन्हें मैथुनी सृष्टि की रचना करनी चाहिए। इसके बाद ब्रह्मा जी ने शिव जी प्रसन्न करने के लिए तप किया। शिव जी अर्द्धनारिश्वर के रूप में प्रकट हुए यानी शिव जी का आधा शरीर पुरुष का और आधा शरीर स्त्री यानी देवी पार्वती का था। इसके बाद शिव जी ने अपने शरीर से शक्ति यानी देवी को अलग किया और इसके बाद से सृष्टि आगे बढ़ने लगी।

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