नई दिल्ली5 घंटे पहले
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मामले की शुरुआत 2016 में में हुई थी, जिसके बाद 2019 में CBI ने चंदा, दीपक और वेणुगोपाल धूत के खिलाफ केस दर्ज किया था।
ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर को 64 करोड़ रुपए की रिश्वत लेने के मामले में दिल्ली की एक ट्रिब्यूनल ने दोषी करार दिया है। चंदा पर वीडियोकॉन ग्रुप को 300 करोड़ रुपए का लोन अप्रूव करने के एवज में यह रिश्वत लेने का आरोप था।
ट्रिब्यूनल ने कहा कि कोचर ने बैंक में अपने पद का दुरुपयोग किया और डिसक्लोजर नॉर्म्स का उल्लंघन किया। मामले की जांच करते हुए ED ने उनपर यह आरोप लगाया था। मामले की शुरुआत 2016 में हुई थी।
चंदा कोचर के पति को मिली थी रिश्वत की रकम
ट्रिब्यूनल ने पाया कि वीडियोकॉन को लोन मिल जाने के एक दिन बाद रिश्वत का पैसा वीडियोकॉन की एक यूनिट SEPL के खाते से कोचर के पति दीपक कोचर की एक कंपनी नूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड (NRPL) को दिया गया था।
ट्रब्यूनल ने कहा कि कागजों पर नूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड (NRPL) का स्वामित्व वीडियोकॉन के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत के पास दिखाया गया था, लेकिन इसका असल कंट्रोल दीपक कोचर के पास ही था। दीपक (NRPL) के मैनेजिंग डायरेक्टर भी थे। इसलिए अपीलकर्ताओं के आरोप सही हैं।

समझें पूरा मामला…
वीडियोकॉन को लोन देकर फ्रॉड
ICICI बैंक की ओर से वीडियोकॉन को दिए गए लोन के जरिए चंदा और दीपक कोचर ने फ्रॉड किया। ये लोन बाद में नॉन परफॉर्मिंग एसेट में बदल गए। इस मामले में दंपती के खिलाफ CBI, ED, SFIO और आयकर विभाग ने जांच शुरू की।
इसमें साल 2012 में वीडियोकॉन को दिया 3250 करोड़ रुपए का लोन शामिल है। आरोपों के अनुसार, वीडियोकॉन ग्रुप के पूर्व चेयरमैन वेणुगोपाल धूत ने कोचर की कंपनी नूपावर रिन्यूएबल्स में वीडियोकॉन को लोन मिलने के बाद करोड़ों रुपए का निवेश किया था।
लोन को एक कमेटी से मंजूरी दी गई थी, जिसमें चंदा कोचर भी एक मेंबर थीं। अक्टूबर 2018 में इस मामले को लेकर चंदा को इस्तीफा देना पड़ा था।
2016 में शुरू हुई थी मामले की जांच
इस मामले की जांच 2016 में शुरू हुई थी जब दोनों फर्मों, वीडियोकॉन ग्रुप और ICICI बैंक में एक निवेशक अरविंद गुप्ता ने लोन अनियमितताओं के बारे में चिंता जताई थी। गुप्ता ने RBI और यहां तक कि प्रधानमंत्री को इस बारे में लिखा था, लेकिन उनकी शिकायत पर उस समय कोई ध्यान नहीं दिया गया।
2019 में बैंक ने कहा था पूरा भरोसा है
24 जनवरी 2019 को FIR टॉप मैनेजमेंट के खिलाफ की गई शिकायत के बाद कई एजेंसियों का ध्यान इस ओर गया। हालांकि, उसी महीने बैंक ने बयान जारी कर कहा कि उन्हें चंदा कोचर पर पूरा भरोसा है।
वीडियोकॉन ग्रुप के लोन पास करने में चंदा की कथित भूमिका की जांच के बाद यह बयान दिया गया था। एजेंसियां अपनी जांच करती रहीं और बैंक पर बढ़ रहे प्रेशर के बाद उसने भी जांच शुरू की। इसके बाद CBI ने 24 जनवरी 2019 को FIR दर्ज की।
चंदा, दीपक, धूत समेत 4 कंपनियों का नाम
CBI ने लोन फ्रॉड मामले में चंदा कोचर, दीपक कोचर और वीडियोकॉन ग्रुप के वेणुगोपाल धूत के साथ-साथ नूपावर रिन्यूएबल्स, सुप्रीम एनर्जी, वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड समेत और वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड को आरोपी बनाया था।
कोचर की संपत्ति जब्ती को ट्रिब्यूनल ने सही ठहराया
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले में चंदा और दीपक कोचर की 78 करोड़ की संपत्ति जब्त की थी, जिसे 2020 में एक दूसरी अथॉरिटी ने छोड़ दिया था। लेकिन अब ट्रिब्यूनल ने ED के दावे को सही ठहराते हुए उस फैसले को पलट दिया और संपत्ति जब्त करने को सही ठहराया। इस मामले की शुरुआत 2016 में में हुई थी, जिसके बाद 2019 में CBI ने चंदा, दीपक और वेणुगोपाल धूत के खिलाफ केस दर्ज किया था।
2020 में दीपक कोचर को ED ने गिरफ्तार किया था
2020 में दीपक को ED ने गिरफ्तार किया था, लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई। 2022 में CBI ने चंदा और दीपक को गिरफ्तार किया था, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2023 में उनकी गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए जमानत दे दी थी। अब मौजूदा फैसले से चंदा कोचर के खिलाफ जांच और सख्त हो सकती है।
